- 'मिताली' बनाने का नहीं किसी को शौक

- पेरेंट्स को नहीं है सुविधाओं की जानकारी, जिसकी वजह से नहीं बढ़ाते कॉन्फिडेंस

- बेटियों के चाहने के बाद भी खिलाडि़यों को नहीं मिल पाता है प्लेटफॉर्म

GORAKHPUR: मिताली राज, दीप्ति शर्मा और पूनम यादव, ग‌र्ल्स के यह नाम आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। कड़ी मेहनत, लगन और देश के लिए कुछ कर गुजरने के जज्बे ने इन्हें इस मुकाम पर पहुंचाया है। यह तो हुई उनकी मेहनत की बात, मगर इनकी इस कामयाबी के पीछे कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिन्होंने अपनी बेटियों को इस मुकाम तक पहुंचाने के लिए काफी सेक्रीफाइज किया है। अपनी जरूरतों की लिस्ट को कम कर उन्होंने बेटियों को आगे बढ़ाने के लिए हर फैसिलिटी मुहैया कराई है। मगर अफसोस गोरखपुर की ग‌र्ल्स में टैलेंट और जज्बा दोनों होने के बाद भी कोई ऐसा हाथ बढ़ाने वाला नहीं मिलता, जिसकी वजह से बेटियां आगे बढ़ सकें और देश का नाम रोशन कर सकें। इसलिए जब तक बेटियों के लिए पेरेंट्स आगे नहीं आएंगे, तब तक कोई बात नहीं बन सकती।

पेरेंट्स का सपाेर्ट जरूरी

फीमेल क्रिकेट टीम ने व‌र्ल्डकप में जो कमाल दिखाया, उसके पीछे उनकी मेहनत के साथ ही पेरेंट्स सपोर्ट काफी अहम रहा है। इसकी वजह से ही वह पहले स्टेट, फिर नेशनल टीम का हिस्सा बन सकी हैं। गोरखपुर के पेरेंट्स इस मामले में काफी पीछे हैं। बेटियों की जिद पर एक-दो फीसद पेरेंट्स उन्हें क्रिकेट खेलने की इजाजत तो दे देते हैं, लेकिन इसके लिए जरूरी फैसिलिटी मुहैया कराने की बात आती है, तो वह हाथ खड़ा कर लेते हैं। इस वजह से बेटियां चाहकर भी कोई कमाल नहीं दिखा पाती और हायर लेवल पर पहुंचते-पहुंचते उनकी जिद जवाब दे जाती है।

जरूरी है पेरेंट्स सपोर्ट

खेल में ग‌र्ल्स को बढ़ावा देने के लिए पेरेंट्स सपोर्ट काफी जरूरी है। खासतौर पर क्रिकेट की बात की जाए तो इसमें इक्विमेंट्स महंगे होते हैं, जिसकी वजह से ग‌र्ल्स अपनी पॉकेट मनी से इसे बियर नहीं कर पातीं। क्रिकेट एसोसिएशन या प्राइवेट संस्थान सिर्फ बुनियादी फैसिलिटी मुहैया कराती हैं। इसका इस्तेमाल वह सिर्फ उसी स्पॉट पर कर सकती हैं, ऐसी कंडीशन में बेहतर परफॉर्मेस के लिए उनके पास खुद का किट होना जरूरी हो जाता है। क्योंकि क्रिकेट का सही मायने में फायदा स्टेट टीम में सेलेक्ट होने के बाद ही मिलता है, जहां का सफर तय करने के लिए खिलाड़ी को खुद ही मेहनत करने के साथ ही इनवेस्टमेंट करना पड़ता है।

एसोसिएशन में कोचिंग फ्री

गोरखपुर में ग‌र्ल्स क्रिकेट एसोसिएशन की बात की जाए, तो यहां खिलाडि़यों को कोचिंग फ्री ऑफ कॉस्ट दी जाती है। इसके अलावा सभी खिलाडि़यों को खेलने के लिए बॉल और बाकी किट भी मुहैया कराया जाता है, लेकिन इसके लिए उन्हें सेंट एंड्रयूज कॉलेज ग्राउंड पर जीसीए के कैंप में आना पड़ता है। जो ग‌र्ल्स यहां नहीं आ पाती हैं, वह अपना पैसा खर्च कर प्राइवेट एकेडमी में ट्रेनिंग हासिल करती हैं। गोरखपुर की कई एकेडमी में ग‌र्ल्स के लिए फ्री ऑफ कॉस्ट कोचिंग की व्यवस्था है, लेकिन उन्हें बाकी किट अपना ही इस्तेमाल करना पड़ता है, जिसकी वजह से उनके पेरेंट्स का सपोर्ट और जरूरी हो जाता है।

पेरेंट्स न डालें दबाव

क्रिकेट खेलने वाली ग‌र्ल्स रेग्युलर प्रैक्टिस नहीं कर पाती हैं, जिसकी वजह से उनकी परफॉर्मेस का ग्राफ ऊपर नहीं आ पाता। इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार पेरेंट्स और स्कूल मैनेजमेंट हो सकता है। स्कूल लेवल पर क्रिकेट न होने की वजह से खिलाड़ी खुद ही प्रैक्टिस करते हैं, लेकिन जब इंपॉर्टेट मैचेज होते हैं, तो वह खिलाड़ी को प्रैक्टिस के लिए नहीं छोड़ते। वहीं पेरेंट्स भी स्कूल छोड़कर प्रैक्टिस के सख्त खिलाफ होते हैं, जिनकी वजह से उनकी परफॉर्मेस नहीं बेहतर हो पाती और उनका टैलेंट डिस्ट्रिक्ट लेवल पर ही दम तोड़ देता है। जबकि अगर पेरेंट्स सपोर्ट करें और उनकी लाडली स्टेट लेवल तक पहुंच जाए, तो इसके बाद सारा खर्च स्पो‌र्ट्स एसोसिएशन उठाता है और खिलाड़ी का टैलेंट खुद ब खुद निखर जाता है।

बॉक्स -

काफी फायदेमंद है स्पो‌र्ट्स

स्पो‌र्ट्स ग‌र्ल्स के लिए काफी फायदेमंद है। लिमिटेड कॉम्प्टीटर होने की वजह से इसमें आगे बढ़ने के मौके खूब होते हैं। क्रिकेट की बात करें तो यूपी की टीम में सेलेक्ट होने के बाद सारा खर्च स्पो‌र्ट्स एसोसिएशन उठाता है। खिलाड़ी के किट बैग से लेकर उनके खाने-पीने, रहने और टूर की व्यवस्था भी वहीं करते हैं। वहीं इस लेवल पर पहुंचने के बाद खिलाडि़यों को एज कैटेगरी के हिसाब से फिक्स स्टाइपेंड भी मिलने लगता है। वहीं अगर उनकी उम्र 18 साल से ऊपर है, तो रेलवे, एयर इंडिया में नौकरी के ऑफर्स भी आने लगते हैं। वहीं टीम इंडिया का हिस्सा बनने के बाद तो उन्हें कुछ सोचने की भी जरूरत नहीं है।

गोरखपुर क्रिकेट एसोसिएशन की ओर से ग‌र्ल्स को सभी बुनियादी सुविधाएं भी मुहैया कराई जाती हैं। मगर इसके लिए उन्हें यहां ग्राउंड पर आना जरूरी है। कुछ ग‌र्ल्स खुद ही प्रैक्टिस करती हैं, जिनके पेरेंट्स उन्हें बुनियादी सुविधाएं मुहैया नहीं करा पाते। इसकी वजह से उनका टैलेंट लोकल लेवल से आगे नहीं आ पाता।

- शफीक सिद्दीकी, ज्वाइंट सेक्रेटरी, गोरखपुर क्रिकेट एसोसिएशन

पेरेंट्स और स्कूल कुछ हद तक ग‌र्ल्स क्रिकेट को पीछे ढकेलने के लिए जिम्मेदार हैं। एसोसिएशंस ग‌र्ल्स के लिए फ्री ऑफ कॉस्ट कोचिंग की व्यवस्था मुहैया कराते हैं। मगर पेरेंट्स उन्हें बुनियादी सुविधा मुहैया नहीं कराते, वहीं स्कूल उन्हें जरूरत पर रीलीव नहीं करते, जिसकी वजह से लड़कियां पीछे रह जाती हैं।

- सुनील राणा, सेक्रेटरी, एसोसिएशन फॉर क्रिकेट इन गोरखपुर