BAREILLY: मां एक ऐसा व्यक्तित्व है जिसे शब्दों में पिरोया नहीं जा सकता है. जी हां क्योंकि मां ने कभी अपने बच्चों की दोस्त बनकर तो कभी मार्गदर्शक बनकर उन्हें जिंदगी के उतार-चढ़ाव से लड़ने की ताकत दी. ऐसी ही एक कहानी है शहर के सिविल लाइंस निवासी डेजी सिंह और उनके बेटे अक्षय कुमार की. स्वास्थ्य विभाग में कार्यरत डेजी के दो बेटे हैं. जॉब की व्यस्तता के चलते बड़े बेटे अक्षय को उन्होंने लखनऊ में रहने वाले उसके ताऊ के पास भेज दिया था. अक्षय लखनऊ के सेंट डोमेनिक स्कूल में आठवीं में पढ़ते थे. मां से हफ्ते में एक या दो बार ही फोन पर बात हो पाती थी. परिवार से दूरी के चलते धीरे-धीरे अक्षय डिप्रेशन का शिकार हो गया.

लेटर देखा तो उड़ गए होश
मार्च 2012 में डेजी जब अपने बेटे से मिलने लखनऊ पहुंची तो अक्षय ने उनसे रुख नहीं मिलाया. मां थी बेटे का मन समझने में समय नही लगा. सोचा बच्चा है रूठ गया होगा. वह अक्षय के कमरे की सफाई करने लगी. उन्होने जैसे ही बेटे के बेड का गद्दा हटाया वहां एक लेटर रखा था जिसमें लिखा था कि मरी जिंदगी खराब हो चुकी है. लेटर के नीचे खून लगा हुआ था. लेटर को पढ़कर डेजी के पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई. लेकिन न वह घबराई और न हिम्मत हारी. ठान लिया कि अब बेटे को अकेले नहीं छोड़ेंगी और हर जतन करके अवसाद के इस अंधेरे उसे निकालकर लाएंगी. फिर वह अक्षय को लेकर बरेली आई. करीब एक साल तक उसे खुद से दूर नही होने दिया.

दोस्त बनकर दिया साथ
बरेली आने के बाद भी अक्षय गुमसुम घर में रहने लगा. लेकिन डेजी उसे रोज नई कहानियां और बाहर घुमाने लेकर जातीं जिससे अक्षय अपने बीते हुए दिन को भुला सके. ऐसा हुआ भी दो साल के लंबे संघर्ष के बाद आज अक्षय के लिए अपनी मां से बड़ा श्रद्धेय कोई और नहीं है.

तो अधूरा लगता है दिन
अक्षय बताते हैं कि मां मेरी सबसे अच्छी दोस्त हैं एक समय ऐसा था कि मेरी जीने की इच्छा मानो खत्म हो गई थी. लेकिन मां के प्यार से आज जिंदगी खुशहाल है.

बच्चे फूल होते हैं
डेजी सिंह कहती हैं कि बच्चे फूलों की तरह होते हैं दुलार कम होने से वह मुरझाने लगते हैं जिससे जिंदगी में कई गलत फैसले भी बच्चे ले लेते हैं. जिससे परिवार टूट जाता है. इसलिए बच्चों को प्यार रूपी अमृत से सींचना बहुत जरुरी है.