रेटिंग : शून्य अर्थात अंडा

कहानी :

इतना सन्नाटा क्यों है भाई ?

लेखन और निर्देशन :
कहाँ से शुरू करूं, ऐसा लगता है की ये फिल्म बनाने के लिए सारी अब्बास मस्तान फिल्मों के वो सीन जो निकाल के फ़ेंक दिए गए गए थे। उनको जोड़ के रीशूट कर लिया गया और जो बन कर आया वो ही ये फिल्म है। फिल्म आपकी लॉजिक की पल पल परीक्षा लेगी और साथ ही आपके सब्र का इम्तिहान भी। पहले बता दिया जाए की ये नॉन सेंस फूलिश फिल्म, अब्बास मस्तान ने डायरेक्ट की है। हां जी वही अब्बास मस्तान जिन्होंने, बाज़ीगर, खिलाड़ी, रेस और ऐतराज़ जैसी फिल्में बनाईं। फिल्म शुरुआत से लेकर अंत तक बता नहीं पाती की आखिर ये किस बारे में है। लाउज़ी किरदार, भयंकर और मूर्खता से लबालब डॉयलॉग और बेहद खराब स्टाइलिंग के चलते ये फिल्म अन इन्टेन्शनल कॉमेडी बन जाती है। एक समय ऐसा भी आता है जब सामने वाली रो के लोग जोर जोर आवाज़ में गालियाँ देना शुरू कर देते हैं और आपका मन करता है की आप एक रेसिंग कार पे सवार होकर हाल के अन्दर आयें और सीधे जाके फिल्म के परदे में घुस कर परदे को फाड़ दें, ताकि फिल्म आगे न चल सके। अब इससे ज्यादा मैं और ऊपर वाले से किसी करिश्मे की प्रार्थना नहीं कर पाया।

 



अदाकारी :
मुस्तफा बर्मावाला इस फिल्म के हीरो हैं। क्यों? क्योंकि वो अब्बास के बेटे हैं। इस फिल्म को देख के लगता है, सही कहती है कंगना बहन, नेपोतिस्म यानी भाई भतीजावाद तो है, वरना लॉजिक ही नहीं है ऐसे अदाकारों को फिल्म की लीड में लिया जाए। उनकी एक्टिंग उतनी ही खराब है जैसे उत्तर प्रदेश में बिजली की समस्या। उनकी एक्टिंग उस टयूबलाइट की तरह है जिसका स्टार्टर शॉट हो गया हो। फिल्म में और भी दो नमूने हैं, मयुरेश वाडकर और ईशान शंकर, भगवान् इनको सद्बुद्धि दे। एक्टिंग इनके बस की बात नहीं है। काश कोई मुस्तफा, ईशान और मयुरेश से जाके कह दे...तुमसे न हो पाएगा। फिल्म की हीरोइन कियारा अडवानी जिनको हमने एम् एस धोनी में देखा था , उन्होंने अपनी पूरी इमेज इस फिल्म के साथ ‘धो’दी है। मेरा मन कर रहा था इस फिल्म की कास्टिंग टीम को चप्पल हाथ में लेके दौड़ा दूं....

म्यूजिक :

मैं खराब डायलॉग के कारण बहरा हो चुका हूँ। संगीत सुनने लायक नहीं रह गया। जो कुछ सुनने में आया वो भी कुछ और ही लग रहा था। तू चीज़ बड़ी है मस्त मस्त ऐसा सुनने में लगता है जैसे तू चीज़ बड़ी है अस्त व्यस्त...

मुझे तो उस इंसान के घर जाकर उसको दिलासा देने का मन कर रहा है जिसने इस फिल्म में पैसे लगाए हैं। अब आप हिमालय जा सकते हैं। वैसे तो क्वेश्चन पेपर अटेम्प्ट करने के भी नंबर होते हैं, पर जैसी ये फिल्म है, उसके लिए तो वो भी देने का मन नहीं कर रहा। अगर आप ये फिल्म देखने जा रहे हैं तो अपनी रिस्क पर जाइए। बाद में मत बोलना की वार्न नहीं किया था।

Review by : Yohaann Bhaargava
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