कहानी
ये फ़िल्म हसीना पारकर की ज़िंदगी पर बेस्ड सुपरफ़िशल एकतरफा कोर्ट रूम ड्रामा है।

समीक्षा
मुम्बई में क्रिमिनल्स की एक बड़ी फेहरिस्त रही है, देश की फाइनेंसियल कैपिटल मुम्बई में समय समय पर क्रिमिनल्स ने कैपिटल इन्वेस्ट की है। फ़िल्म इंडस्ट्री में अंडरवर्ल्ड का पैसा लगाने का आरोप दाऊद की बहन हसीना पर मूल रूप से कई बार लगा है। ताज्जुब की बात तो ये है, की फ़िल्म इस बात का ज़िक्र ही नहीं करती। पारकर को विक्टम/गॉडमदर बनाके प्रोजेक्ट करती ये एक छिछली फ़िल्म है, जिसकी रिसर्च भी ठीक से नहीं की गई है। फ़िल्म के कोर्टरूम सीन और उनके आरग्युमेंटस बचकाने हैं और डायलाग पुरातन काल के लगते हैं। फ़िल्म का आर्ट डायरेक्शन मिसलीडिंग है और फ़िल्म के कॉस्टयूम भी कुछ खास नहीं हैं। फ़िल्म के वीएफएक्स फनी हैं, फ़िल्म की एडिटिंग भी बेहद खराब है। फ़िल्म कहीं कहीं वन्स अपॉन अ टाइम इन मुम्बई बनने की कोशिश करती है, कभी गॉडफादर, कभी सत्या तो कभी सरकार, अफ़सोस फ़िल्म बस लाउड बैकग्राउंड म्यूजिक की ऑडियो कैसेट बन के रह जाती है, मुझे तो ये भी समझने में खासी दिक्कत हो रही थी, की अंडरवर्ल्ड का महिमामंडन करना क्यों ज़रूरी है, क्या सब्जेक्ट्स का अकाल पड़ गया है।

अदाकारी
क्राइम फ़िल्म की लाइफ़लाइन होती उसके अदाकारों का काम। अगर उनके एक्सप्रेशंस आपके दिल में डर पैदा नहीं कर पाते तो आप फ़िल्म में खुद को इनवेस्टेड फील नहीं करते। फ़िल्म का एक्टिंग डिपार्टमेंट कॉमिकल है। कोर्टरूम सीन्स में ऐसा लगता है कि श्रद्धा कपूर को मुँह में ठूसे हुए वड़ापाव के काऱण उनको डायलॉग बोलने में खासी दिक्कत हो रही है, और बाकी के सीन्ज़ में ऐसा लगता है की उनको एक्टिंग स्कूल में दाखिला दिलवा दिया जाए, इतने मिस्प्लेस्ड एक्सप्रेशन मैंने काफी दिनों से किसी एक्ट्रेस के नहीं देखे, इसी तरह सिद्धांत के एक्सप्रेशन्स वैसे ही हैं जैसे सीधे रामलीला में काम करने के बाद फ़िल्म मिल गई हो। हसीना के पति के किरदार निभाने वाले सज्जन के अलावा कोई करैक्टर अपना काम ठीक से नहीं करता। फिल्मी इतिहास के सबसे खराब वकील और जज के किरदार भी आपको इसी फिल्म में देखने को मिलेगे।

फिल्म देखने की वजह! 
कुल मिलाकर ये फ़िल्म बननी ही नहीं चाहिए थी और अगर बनाना इतना ही ज़रूरी था तो फ़िल्म की रायटिंग और एक्टिंग टॉप नोच होनी चाहिए थी, हसीना का किरदार निभाने के लिए किसी दमदर एक्ट्रेस की ज़रूरत थी, विद्या बालन, प्रियंका, तब्बू या रानी मुखर्जी होती तो शायद खराब स्क्रिप्ट कवरअप हो जाती, और इस हसीना को देख के दर्शकों का पसीना नहीं छूटता। 
फ़िल्म का बॉक्स ऑफिस प्रेडिक्शन: अपनी कीमत वसूल ले तो बड़ी बात है।

रेटिंग : 1 स्टार

Review by: Yohaann Bhaargava
www.facebook.com/bhaargavabol

 

कहानी

ये फ़िल्म हसीना पारकर की ज़िंदगी पर बेस्ड सुपरफ़िशल एकतरफा कोर्ट रूम ड्रामा है।

 

समीक्षा

मुम्बई में क्रिमिनल्स की एक बड़ी फेहरिस्त रही है, देश की फाइनेंसियल कैपिटल मुम्बई में समय समय पर क्रिमिनल्स ने कैपिटल इन्वेस्ट की है। फ़िल्म इंडस्ट्री में अंडरवर्ल्ड का पैसा लगाने का आरोप दाऊद की बहन हसीना पर मूल रूप से कई बार लगा है। ताज्जुब की बात तो ये है, की फ़िल्म इस बात का ज़िक्र ही नहीं करती। पारकर को विक्टम/गॉडमदर बनाके प्रोजेक्ट करती ये एक छिछली फ़िल्म है, जिसकी रिसर्च भी ठीक से नहीं की गई है। फ़िल्म के कोर्टरूम सीन और उनके आरग्युमेंटस बचकाने हैं और डायलाग पुरातन काल के लगते हैं। फ़िल्म का आर्ट डायरेक्शन मिसलीडिंग है और फ़िल्म के कॉस्टयूम भी कुछ खास नहीं हैं। फ़िल्म के वीएफएक्स फनी हैं, फ़िल्म की एडिटिंग भी बेहद खराब है। फ़िल्म कहीं कहीं वन्स अपॉन अ टाइम इन मुम्बई बनने की कोशिश करती है, कभी गॉडफादर, कभी सत्या तो कभी सरकार, अफ़सोस फ़िल्म बस लाउड बैकग्राउंड म्यूजिक की ऑडियो कैसेट बन के रह जाती है, मुझे तो ये भी समझने में खासी दिक्कत हो रही थी, की अंडरवर्ल्ड का महिमामंडन करना क्यों ज़रूरी है, क्या सब्जेक्ट्स का अकाल पड़ गया है।

 

अदाकारी

क्राइम फ़िल्म की लाइफ़लाइन होती उसके अदाकारों का काम। अगर उनके एक्सप्रेशंस आपके दिल में डर पैदा नहीं कर पाते तो आप फ़िल्म में खुद को इनवेस्टेड फील नहीं करते। फ़िल्म का एक्टिंग डिपार्टमेंट कॉमिकल है। कोर्टरूम सीन्स में ऐसा लगता है कि श्रद्धा कपूर को मुँह में ठूसे हुए वड़ापाव के काऱण उनको डायलॉग बोलने में खासी दिक्कत हो रही है, और बाकी के सीन्ज़ में ऐसा लगता है की उनको एक्टिंग स्कूल में दाखिला दिलवा दिया जाए, इतने मिस्प्लेस्ड एक्सप्रेशन मैंने काफी दिनों से किसी एक्ट्रेस के नहीं देखे, इसी तरह सिद्धांत के एक्सप्रेशन्स वैसे ही हैं जैसे सीधे रामलीला में काम करने के बाद फ़िल्म मिल गई हो। हसीना के पति के किरदार निभाने वाले सज्जन के अलावा कोई कैरेक्टर अपना काम ठीक से नहीं करता। फिल्मी इतिहास के सबसे खराब वकील और जज के किरदार भी आपको इसी फिल्म में देखने को मिलेगे।

 

 

फिल्म देखने की वजह! 

कुल मिलाकर ये फ़िल्म बननी ही नहीं चाहिए थी और अगर बनाना इतना ही ज़रूरी था तो फ़िल्म की रायटिंग और एक्टिंग टॉप नोच होनी चाहिए थी, हसीना का किरदार निभाने के लिए किसी दमदर एक्ट्रेस की ज़रूरत थी, विद्या बालन, प्रियंका, तब्बू या रानी मुखर्जी होती तो शायद खराब स्क्रिप्ट कवरअप हो जाती, और इस हसीना को देख के दर्शकों का पसीना नहीं छूटता। 

फ़िल्म का बॉक्स ऑफिस प्रेडिक्शन: अपनी कीमत वसूल ले तो बड़ी बात है।

 

रेटिंग : 1 स्टार

 

Review by: Yohaann Bhaargava

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