हर साल इसी किले पर क्यों बिजली गिर रही है। इसका पता लगाने के लिए जल्द ही दिल्ली से साइंटिस्ट्स की एक टीम इस यहां का दौरा करनेवाली है।

मिथ या सच्चाई

इतिहासकारों की मानें तो छोटानागपुर और आदिवासी समाज के इतिहास में पिठोरिया गांव से मुंडा और नागवंशी राजवंश का गहरा प्रभाव रहा है। पिठोरिया क्षेत्र मुंडा शासन के प्रमुख राजा मुदरा मुंडा और नागवंशियों का केंद्र रहा था। पिठोरिया गांव 1831-32 में कोल विद्रोह के कारण चर्चा में आया।

नागपुरी संस्थान के निदेशक डॉ। बीपी केसरी बताते हैं कि पिठोरिया के राजा जयमंगल सिंह और उनके बेटे जगतपाल ने पिठोरिया को समृद्ध व्यापारिक और सांस्कृतिक केंद्र बनाया। जयमंगल सिंह के बाद उनके बेटे जगतपाल सिंह यहां के राजा बने। वे इस क्षेत्र में काफी लोकप्रिय थे। अपनी जनता की भलाई के लिए उन्होंने बहुत सारे काम किए, लेकिन उनकी एक गलती ने उन्हें खलनायक बनाते हुए झारखंड के इतिहास का जयचंद साबित किया।

जब अंग्रेजों की नजर पड़ी

छोटा नागपुर की भौगोलिक स्थिति के कारण अंग्रेजों को यहां अपने पांव फैलाने में काफी परेशानी हो रही थी। अंग्रेज यहां की भौगोलिक स्थिति से अनजान थे। इस कारण अंग्रेज अधिकारी आफट विल्किंसन को जब इस क्षेत्र को अपने कब्जे में लेने की जिम्मेदारी दी गई तो वह इस क्षेत्र में अपना पैर रखने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। लेकिन पिठोरिया के शासक जगतपाल सिंह ने अंग्रेजों का साथ दिया।

1857 के विद्रोह के समय जब ठाकुर विश्वनाथ शाहदेव और सुरेंद्रनाथ शाहदेव ने अंग्रेज शासन को उखाड़ फेंकने के लिए आक्रमण करना चाहा, तो पिठोरिया के शासक जगतपाल सिंह ने पिठोरिया घाटी को पत्थरों से बंद करके अंग्रेजों की रक्षा की। राजा जगतपाल सिंह ने विश्वनाथ शाहदेव और दूसरे क्रांतिकारियों के खिलाफ गवाही दी। इस कारण 16 अप्रैल 1858 को रांची जिला स्कूल के सामने कदंब के पेड़ पर  विश्वनाथ शाहदेव को फांसी दे दी गई।

और दे दिया शाप

मान्यता है कि विश्वनाथ शाहदेव ने जगतपाल सिंह को अंग्रेजों का साथ देने और देश के साथ गद्दारी करने पर यह शाप दिया कि आनेवाले समय में जगतपाल सिंह का कोई नामलेवा नहीं रहेगा और उसके किले पर हर साल उस समय तक वज्रपात होता रहेगा, जबतक यह किला पूरी तरह बर्बाद नहीं हो जाता। तब से हर साल पिठोरिया स्थित जगतपाल सिंह के किले पर वज्रपात हो रहा है। इस कारण यह किला खंडहर में तब्दील हो चुका है।

वैज्ञानिकों के लिए यह पता लगाना एक चुनौती बना हुआ है कि आखिर इस किले में एक ही जगह पर हर साल वज्रपात क्यों हो रहा है। इसी कारण जगतपाल सिंह का किला एक रहस्य बना हुआ है।

मुगल वास्तुकला की झलक

जगतपाल सिंह का लाल रंग का यह किला पत्थर, लाल रंग की गोल ईंट, सुर्खी और चूने से बनाया गया है। इस महल में लकडिय़ों का बड़े पैमाने पर यूज किया गया है। लगभग 30 एकड़ में फैले इस दो मंजिले महल और किले की बनावट पर मुगलकालीन वास्तुकला का प्रभाव देखने को मिलता है। माना जाता है कि इस किले में अपने समय में 100 कमरे और हॉल हुआ करते थे।

जगतपाल सिंह ने किले की मेहराबों और दीवारों पर खूबसूरत नक्काशी कराई थी। इतिहासकारों की मानें तो इसके लिए आगरा और जोधपुर से कलाकार बुलवाए गए थे। यहां की कलाकृतियों में पहाड़ों, जंगलों, नदियों और जानवरों का अक्स देखने को मिलता है। इस महल परिसर में एक कुआं है, जिसकी गहराई का आज तक कोई पता नहीं लगा पाया है। इस कैंपस में एक तालाब भी है, जहां पर रानियों के नहाने के लिए घाट बनाया गया है।

तालाब के बीच शिव मंदिर

महल के तालाब के बीचोबीच एक शिव मंदिर बनाया गया था। जगतपाल सिंह शैव थे और शिव के उपासक भी। इस कारण उनका परिवार शिव की पूजा करता था। आज भी तालाब के बीच यह मंदिर स्थित है, लेकिन अब यह खंडहर बन गया है। इस किले के पीछे एक छोटी नदी भी थी, लेकिन अब यह सूख कर समाप्त हो गई है। जगपाल सिंह ने महल के पास ही एक शिव मंदिर का निर्माण भी कराया था, जो आज भी मौजूद है और लोग यहां पूजापाठ करते हैं।