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LUCKNOW : आज कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं हैं जहां ग‌र्ल्स का दबदबा न हो। सारी विषम परिस्थितियों को दरकिनार कर नये कीर्तिमान रच रही हैं। इतना ही नहीं वह समाज के उत्थान में भी बढ़चढ़कर हिस्सा ले रही हैं। अपने साथ ही अन्य लोगों को भी समाज में कदम से कदम मिलाकर चलने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं। आज हम आपको नेशनल ग‌र्ल्स डे पर कुछ ऐसी ही बेटियों से रूबरू कराने जा रहे हैं जिन्होंने खुद तो एक मुकाम हासिल किया। साथ ही समाज के लिए भी एक नजीर बन गई हैं। पेश है एक रिपोर्ट

गांव के टैलेंट को बाहर लाना सपना
दिव्या काकरान - रेसलर-

लड़की होने के कारण मेरे पिता ने रेसलिंग में जाने से मना किया, लेकिन मैंने रेसलर बनने की ठान ली। इसके लिए मैंने दिनरात एक कर दिया और मेरी मेहनत रंग लाई। मेरी मेहनत उस समय सफल हुई जब कॉमनवेल्थ गेम में मुझे गोल्ड मिला। लड़कियां रेसलिंग की दुनिया में आगे आए इसके लिए मैं फ्री में करीब 30-40 लड़कियों को रेसलिंग सीखा रही हूं। यहां उनको फ्री में ग्लूकोज और जरूरत का सामान भी दिया जाता है। गांव में भी रेसलिंग सेंटर खोलने का प्लान है ताकि गांव का टैलेंट भी बाहर आये।

कैंसर पीडि़तों के लिए लड़ रही जंग
सपना उपाध्याय - समाजसेविका

कैंसर जैसी बीमारी से लड़ना आसान नहीं। ऐसे में यदि कोई मददगार हाथ थाम ले तो उनकी मुश्किलें काफी कम हो जाती हैं। मैंने लोगों के इस दर्द को कम करने की ठानी और एक संस्था के जरिये उनका दर्द कम करने में जुट गई। मेरी छोटी सी कोशिश से जब उनके चेहरे पर मुस्कान आती है तो मुझे काफी सुकून मिलता है। धीर-धीर कारवां बढ़ता चला गया और लोग मेरी मुहिम से जुड़ते गये। उनकी मदद से कैंसर पीडि़त बच्चों के रहने, खाने, शिक्षा, करियर को नई राह दी। साथ ही पीडि़त परिवार के बच्चों को शादी कर उनकी जिंदगी रोशन की। अबतक 300 एनरोल्ड हो चुके हैं, जिसमें 170 सर्वाइवर बच्चें हैं। मेरा मकसद इन पर दया करना नहीं है बल्कि इन्हें मजबूत करना है। इनके लिए अमोहा क्राफ्ट की शुरुआत की गई है ताकि इन्हे रोजगार मिल सके।

महिलाओं को साक्षर बनाना उद्देश्य
शबाना आजमी - गर्वमेंट टीचर
समाज की तस्वीर बदलने मे सबसे अहम रोल एक शिक्षक का होता है। इसमें महिला शिक्षा सबसे अहम है। मैंने एक दिन अपने बच्चों को होमवर्क दिया। अगले दिन वह होमवर्क करके नहीं लाए, वजह पूछी तो बताया कि उनके पैरेंट्स पढ़े लिखे नहीं हैं। यह बात मुझे घर कर गई। उसके बाद मैंने अपने खर्च पर उन्हें महिलाओं को पढ़ाना शुरू किया। आज तीन सेंटर चल रहे हैं, जहां 3 साल से लेकर बुजुर्ग महिलाओं को शिक्षित किया जा रहा है। इतना ही नहीं उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए भी प्रयास कर रही हूं ताकि हमारे समाज में कोई अनपढ़ न रह जाएं।

ताकि वह समाज में सिर उठाकर जी सकें
शालिनी सिंह- समाज सेविका
एक दिन मैं अपनी बेटियों को स्कूल छोड़ने जा रही थी तभी रास्ते में मैंने मलिन बस्तियों के बच्चों को कूड़ा बीनते देखा। मेरे मन में उनके लिए कुछ करने की इच्छा हुई। ऐसे में मैंने वर्ष 2017 में एक संस्था के जरिये मलिन बस्तियों के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया। आज स्मार्ट क्लास के जरिये बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। बच्चों को यहां पर सारी मूलभूत सुविधाएं भी दी जा रही है। इसके साथ ही उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए काम किया जा रहा है ताकि वह समाज में सम्मान की जिंदगी व्यतीत कर सकें।

गरीब बच्चों को दिलाया उनका हक
समीना बानो - एक्टिविस्ट
आज के समय में शिक्षा गरीब तबके के लिए सपने जैसी होती जा रही है जबकि सभी को समान शिक्षा का अधिकार है। गरीब तबके के बच्चों को शिक्षा दिलाने के लिए लगी हुई हूं ताकि उन्हें भी उच्च शिक्षा मिल सके। मेरे पिता एयरफोर्स में थे इसलिए इंजीनियरिंग और मैनेजमेंट करने के बाद अमेरिका गई, लेकिन नौकरी छोड़कर वापस आ गई। मुझे शिक्षा का अधिकार कानून के बारे में पता चला, जिसके बाद मैंने गरीब बच्चों को उनका हक दिलाने के लिए मुहिम शुरू कर दी। साथ ही कानून में बदलाव के लिए सुप्रीम कोर्ट तक लड़ाई लड़ी। मेहनत रंग लाई, जहां 2013 में महज 54 एडमिशन हुऐ थे आज बढ़कर 42 हजार के पार हो गये हैं।