-दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट की मुहिम को पैरेंट्स ने सराहा

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PRAYAGRAJ: बचपन यानी अल्हड़ और मौजमस्ती का जीवन। लेकिन आज यह सिर्फ कहानियों और कल्पनाओं तक सीमित होकर रह गया है। सच यह है कि आज के दौर में बच्चों के नाजुक कंधों पर प्राइवेट स्कूलों ने जबर्दस्त बोझ डाल दिया है। बच्चों का बचपन इसी बोझ के तले दबकर रह गया है। दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट की तरफ से सिटी के डिफरेंट रिनाउंड स्कूल्स में 'भारी बस्ता' कैंपेन चलाया गया। इस दौरान चौंकाने के वाले फैक्ट्स सामने आए।

पैरेंट्स की भी दिखी चिंता

दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट की तरफ से सिटी के 10 स्कूलों में यह अभियान चलाया गया। पैरेंट्स ने इस अभियान की काफी तारीफ की। वहीं बच्चे खुद और बैग का वजन कराने को लेकर उत्साहित दिखे। हालांकि इस दौरान उनका दर्द भी जुबां पर छलक उठा और वो बोल पड़े, 'अंकल, मेरा बैग बहुत भारी हैक्लासरूम से लेकर बाहर तक आने में ही हालत बिगड़ जाती है.'

क्लास के साथ बढ़ रहा बोझ

जूनियर सेक्शन के बच्चों के वजन के दौरान एक बात काफी कॉमन दिखी। हर बढ़ती क्लास के साथ बच्चों के बैग का वजन भी बढ़ता गया। ऐसा लगभग सभी स्कूलों में देखने को मिला। हालांकि इस दौरान बच्चों के वजन अलग-अलग रहे।

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बॉक्स

गठन तक ही सीमित रह गई कमेटी

सूबे में सत्ता परिवर्तन के बाद सरकार की तरफ से प्राइवेट स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाने के लिए अध्यादेश पारित किया गया था। इसके अंतर्गत डिस्ट्रिक्ट लेवल निगरानी कमेटी बनायी गई थी। इसमें चेयरमैन डीएम व सचिव डीआईओएस थे। नया सत्र शुरू हुए कई महीने बीत गए, लेकिन आज तक कमेटी की ओर से कोई मीटिंग नहीं हुई है। ऐसे में स्कूलों की मनमानी बदस्तूर जारी है। इस बारे में अधिकारियों से पूछने पर वह समय न मिलने का हवाला देते रहे हैं।

-------------------------वर्जन

मेरी बेटी का बैग इतना भारी है कि अगर मुझे उठाना पड़े, तो मुझे भी दिक्कत होती है। स्कूल अपने आगे किसी की सुनते नहीं। पैरेंट्स भी यहां मजबूर ही रहते हैं।

-आरए गुप्ता, अभिभावक

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स्कूल मनमाने ढंग से किताबों की लिस्ट बनाकर दे देते हैं। अगर बच्चा स्कूल में उनके हिसाब से बुक्स न ले जाए तो उसे पनिशमेंट मिलती है। पैरेंट्स भी मजबूर होते है। लेकिन बोझ बच्चों को उठाना पड़ता है। गाइड लाइन की किसी को परवाह नहीं।

रंजीता, पैरेंट्स

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सरकार भी गाइडलाइन बनाकर भूल गई है। कभी किसी स्कूल में जांच नहीं करायी गई। ऐसे में स्कूल तो मनमानी करेंगे ही। पैरेंट्स की स्कूल सुनने को तैयार नहीं होते है।

-राजीव मिश्रा

प्राइवेट स्कूल कमीशनखोरी के चक्कर में प्राइवेट पब्लिशर्स के साथ मिलकर एक ही विषय की कई किताबें उपलब्ध कराते हैं। उनको अनिवार्य भी कर रखा है। स्कूलों को इससे कोई मतलब नहीं कि बच्चों पर कितना बोझ बढ़ रहा है।

-सुनील कुमार

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स्कूलों का यह कहना है

सीबीएसई कहता है एनसीईआरटी की बुक्स यूज करें। लेकिन एनसीईआरटी की पूरी बुक्स उपलब्ध ही नहीं होती हैं। जरूरी है कि एक सब्जेक्ट की एक ही किताब चले और सप्ताह में सिर्फ दो सब्जेक्ट में होमवर्क मिले। इससे किताबों के साथ कॉपियों का बोझ कम होगा। इसके लिए प्रॉपर गाइडलाइन बनें।

-जया सिंह

प्रिंसिपल, डीपी पब्लिक स्कूल

एनसीईआरटी की बुक्स मिलती नहीं। स्कूल भी मजबूरी में प्राइवेट पब्लिशर की बुक्स लेने के लिए कहते हैं। सरकार को इसके लिए व्यवस्था करनी चाहिए, जिससे कुछ वास्तव में बच्चों की मदद हो सके। कई जगह तो कमीशनखोरी के चक्कर में भी बच्चों का बोझ बढ़ता है।

-राजीव मिश्रा

डायरेक्टर, इलाहाबाद पब्लिक स्कूल, चौफटका

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