-दो दशक में 100 से ज्यादा बंदी और कैदी मांग चुके है

-इस समय केवल एक कैदी ने मांगी है पैरोल

KANPUR : सुप्रीम कोर्ट से सजायाफ्ता फिल्म अभिनेता संजय दत्त पैरोल पर जेल से बाहर हैं। उनकी पैरोल दो बार बढ़ाया भी जा चुकी है। आई नेक्स्ट ने ये जानने की कोशिश की कि कानपुर शहर में कितने लोगों को पैरोल मिल पाती है। आप जान कर चौंक जाएंगे कि कानपुर जेल में पिछले दो दशक से किसी सजायाफ्ता कैदी को पैरोल पर नहीं छोड़ा गया है, जबकि यहां पर सैकड़ो बन्दी और कैदी पैरोल पर छोड़े जाने के लिए प्रार्थना पत्र दे चुके हैं। हालांकि यहां पर विचाराधीन बंदियों को पैरोल मिलती रही है वह भी सिर्फ 72 घंटे के लिए। इस समय एक कैदी ने संजय दत्त की तरह पैरोल पर छोड़े जाने के लिए एप्लाई किया है।

हर साल औसतन पांच बन्दी

कानपुर जेल में पिछले बीस साल में सैकड़ों बन्दी और कैदी पैरोल के लिए प्रार्थना पत्र दे चुके हैं, लेकिन किसी को भी शासन से पैरोल नहीं दी। रिकार्ड के मुताबिक यहां पर हर साल औसतन पांच कैदी पैरोल पर छोड़े जाने के लिए एप्लीकेशन देते हैं। पिछले साल यहां पर पांच कैदियों ने पैरोल के लिए शासन में एप्लीकेशन दी थी, जिसे खारिज कर दिया गया। इस साल हत्या युक्त डकैती के एक मुल्जिम ने पैरोल मांगी है। जिसमें शासन ने जेल प्रशासन से पांच बिन्दुओं पर रिपोर्ट मांगी है।

संजय दत्त की तरह बनाया 'ग्राउण्ड'

जेल की सलाखों के पीछे कैद हत्या युक्त डकैती के मुल्जिम द्वारा शासन में पैरोल के लिए जो एप्लीकेशन दी है उसमें उसने बीमार मां की देखभाल और जेल में अपने अच्छे चाल-चलन का हवाला दिया है।

सीनियर एडवोकेट कौशल किशोर शर्मा ने बताया कि किसी बन्दी या कैदी को ब्लड रिलेशन में किसी के मरने, बीमार होने, शादी या उसकी देखरेख के ग्राउण्ड में मिली है। फिल्म अभिनेता संजय दत्त को पत्नी की बीमारी के ग्राउण्ड के आधार पर पैरोल मिली है। इसी तरह कानपुर जेल के कैदी ने मां की बीमारी का हवाला दिया है। संजय दत्त को बार-बार पैरोल दिए जाने के खिलाफ सबसे बड़ा तर्क यही दिया जाता है कि उसको उदाहरण बनाकर बहुत से कैदी वैसी ही मांग कर सकते हैं।

डीएम भी दे सकते हैं पैरोल

जेल में बन्द किसी भी कैदी को पैरोल पर छोड़ने का पॉवर जिलाधिकारी के पास भी है। हालांकि वह सिर्फ अधिकतम 72 घंटे की पैरोल दे सकते हैं। यह पैरोल कैदी के ब्लड रिलेशन में किसी के मरने, बीमारी होने और शादी में दी जाती है। हालांकि डीएम बमुश्किल इसका यूज करते है। अगर कैदी के परिजन डीएम से मिलकर एप्लीकेशन भी देते हैं, तो उसमें वह जेल से रिपोर्ट मंगवाते हैं। जिसमें समय बरबाद होने से उसको पैरोल पर छोड़ने का मकसद ही खत्म हो जाता है।

कोर्ट से भी मिल सकती है पैरोल

सजायाफ्ता मुजरिमों को पैरोल शासन या प्रशासन ही दे सकता है लेकिन विचाराधीन बंदियों को पैरोल सिर्फ कोर्ट दे सकता है।

बार एसोसिएशन के पूर्व महामंत्री एडवोकेट इंदीवर बाजपेई के मुताबिक पैरोल को कानूनी भाषा में 'शार्ट टर्म बेल' कह सकते हैं। जेल में बन्द विचाराधीन बन्दी (जिस पर जुर्म का आरोप सिद्ध न हुआ हो) को ब्लड रिलेशन में किसी के मरने या शादी होने पर कोर्ट से 24 से 72 घंटों की पैरोल मिल सकती है, लेकिन यह कोर्ट के विवेक पर निर्भर करता है। इसके लिए बन्दी को कोर्ट में एप्लीकेशन देनी होती है। जिसके बाद उसके वकील कोर्ट को बताते है कि उसने क्यो पैरोल मांगा है। कोर्ट से उसको पैरोल मिलती या नहीं, यह कोर्ट के विवेक पर निर्भर है।

इस तरह चलती है पैरोल की फाइल

एडवोकेट कौशल किशोर शर्मा ने बताया कि कोई भी कैदी पैरोल के लिए जेल या शासन में एप्लीकेशन दे सकता है। अगर वह जेल में एप्लीकेशन देता है, तो उसे जेल प्रशासन शासन भेज देते है। जिसके बाद शासन से डीएम, जेल और थाने से पांच बिन्दुओं में रिपोर्ट मांगी जाती है। जिसके बाद फाइल फिर शासन भेज दी जाती है। जिसके बाद शासन रिपोर्ट के आधार पर पैरोल का आदेश देता है। जेल प्रशासन से उसके जेल में रहने की समय के चाल चलन, उसको पहले पैरोल दी जा चुकी है या नहीं, उस पर कोई अन्य मुकदमा दर्ज है या नहीं, अगर दर्ज हो है, तो किस धारा में है आदि की रिपोर्ट मांगी जाती है। इसी तरह थाने से उसके परिवार के बारे में रिपोर्ट मांगी जाती है।

थाने में लगानी पड़ती है हाजिरी

शासन या कोर्ट से किसी भी बन्दी या कैदी को पैरोल पर छोड़ा जाता है, तो उसको कुछ शर्तो का पालन करना पड़ता है। इसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने पांच प्वाइंट तय किए है। जिसके तहत उसको हर दिन थाने में हाजिरी लगानी होती है। वह बिना परमीशन शहर के बाहर नहीं जा सकता है। वह बिना परमीशन किसी भी एक्टीविटी में भाग नहीं ले सकता है। वह आम आदमी की तरह बाहर रह सकता है, लेकिन वह किसी अपराध में संलिप्त पाया जाता है, तो उसको तुरन्त गिरफ्तार कर जेल भेज दिया जाता है। इसके अलावा अगर कोर्ट कोई पाबंदी लगाता है, तो पैरोल पर रिहा बन्दी को उसका पालन करना पड़ता है।

पिछले सात साल में पैरोल के लिए दी गई एप्लीकेशंस का रिकार्ड

ईयर पैरोल मांगने वाले बंदियों की संख्या

2008 07

2009 03

2010 05

2011 04

2012 06

2013 05

2014 01 (फरवरी तक)

मुंबई (महाराष्ट्र)) में पैरोल का अलग नियम है। यहां पर शासन, कोर्ट और डीएम को पैरोल देने का अधिकार है। इसमें शासन और डीएम कैदी को पैरोल देते हैं। जबकि कोर्ट से विचाराधीन बंदी को पैरोल मिलता है। जरूरी नहीं है कि उनको पैरोल मिल जाए। मेरे कार्यकाल में अभी तक किसी भी कैदी को पैरोल नहीं दी गई है।

-पीडी सलोनिया, जेल अधीक्षक