क्त्रन्हृष्ट॥ढ्ढ: रिम्स में मरीजों को चढ़ाने के लिए नार्मल स्लाइन और डीएनएस तक नहीं है. और सरकार इसे एम्स बनाने का सपना देख रही है. करोड़ों रुपए का बजट होने के बाद भी एडमिट मरीजों को बाहर से दवाएं खरीदनी पड़ रही हैं. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि प्रबंधन हॉस्पिटल को अपग्रेड करने के नाम पर केवल आईवॉश कर रहा है. बताते चलें कि पिछले साल रिम्स का बजट 374 करोड़ रुपए का था. इसके बावजूद हॉस्पिटल में नार्मल स्लाइन का नहीं होना चिंता का विषय है.

मंत्री से भी की थी कंप्लेन

सर्जरी वार्ड में एक मरीज के परिजन ने डीएनएस जैसा मामूली स्लाइन भी हॉस्पिटल में नहीं मिलने की कंप्लेन की थी. साथ ही कहा था कि गरीब तबके के लोग यहां भी इलाज नहीं करा सकेंगे, तो कहां जाएंगे. इसके बाद स्वास्थ्य मंत्री ने अधिकारियों को मामला देखने का निर्देश दिया था.

इमरजेंसी में एनएस की शॉर्टेज

इमरजेंसी किसी भी हॉस्पिटल का रीढ़ होता है, जहां मरीजों की जान बचाने के लिए सभी जरूरी दवाएं और इक्विपमेंट्स होते हैं. लेकिन इमरजेंसी में कुछ दिन पहले नार्मल स्लाइन की भी शॉर्टेज हो गई थी. इसके बारे में ड्यूटी में तैनात डॉक्टरों ने रात को जानकारी भी दी थी. इसके बाद इमरजेंसी में तत्काल स्टोर से एनएस उपलब्ध कराया गया था.

......

परिजनों की जुबानी

सर्जरी वार्ड के डॉ. आरएस शर्मा की यूनिट में पेशेंट एडमिट हैं. अधिकतर दवा बाहर से खरीदकर ला रहे हैं. स्लाइन भी ये लोग बाहर से ही मंगवा रहे हैं. आखिर हमलोग हर दवा बाहर से कैसे ला पाएंगे जो हॉस्पिटल में मिल जाती है. इसके लिए डॉक्टरों और नर्सो को सोचना चाहिए. हमारे पास तो इलाज के भी पैसे नहीं है तो दवा कहां से लाएंगे.

सुरेश कुमार

हमारा पेशेंट मेडिसीन वार्ड में है. डॉ. साहब देखने आए तो स्लाइन चढ़ाने के लिए लिखकर चले गए. अब सिस्टर ने पर्ची बनाकर स्लाइन बाहर से लाने को कहा है. इलाज कराना है तो दवाई तो बाहर से खरीदनी ही पड़ेगी. लेकिन सरकारी हॉस्पिटल में तो सभी सुविधाएं मुफ्त मिलती हैं, इसके बावजूद दवा बाहर से लाना सवाल तो है ही.

राजीव