एनुअल फीस और अलग-अलग चार्ज के नाम पर हर साल स्कूल वसूल रहे मोटी रकम

एनुअल और मंथली फीस भरने में छूट रहे पेरेंट्स के पसीने

Meerut. पब्लिक स्कूलों की ओर से ली जा रही मनमानी फीस पेरेंट्स की जेब ढीली कर रही है. स्कूल अलग-अलग मद बनाकर धड़ल्ले से नए-नए चार्ज के नाम पर वसूली करने में जुटे हैं. एजुकेशन के नाम पर मोटी फीस जहां प्राइवेट स्कूलों के लिए वसूली का जरिया बन गई है वहीं इस फीस को जुटा पाने में पेरेंट्स का पूरा बजट बिगड़ जा रहा है.

10 से 15 हजार रूपये तक

पेरेंट्स के मुताबिक स्कूलों की ओर से हर साल एनुअल फीस के नाम पर मोटी रकम वसूली जाती है. यही नहीं स्कूलों ने इस साल कई चार्जेस में 20 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी भी कर दी है. कई स्कूल तो बढ़ाए चार्जेस की एवज में 10 से 15 हजार रूपये तक वसूल रहे हैं. जबकि कुछ स्कूलों में इन चार्जेस को क्वाटरली डिवाइड करते हुए वसूलना तय किया गया है. स्कूलों का कहना कि इस फीस में स्कूल लाइब्रेरी, वर्कशॉप, गेम्स, अवार्ड, लाइट, वॉटर, योगा, टर्म फीस, जेनरेटर फीस, सिक्योरिटी सिस्टम, फर्नीचर, गार्डनिंग, लैब, मेंटीनेंस फीस, हाउस टैक्स समेत तमाम चीजों का खर्च मैनेज करता है. हर साल महंगाई बढ़ रही है, जिससे ये सब खर्च भी बढ़ जाते हैं इसलिए फीस में वृद्धि करनी पड़ती है.

किस्तों में फीस

स्कूलों की ओर से नया सेशन शुरू होते ही एनुअल फीस के नाम पर पहले हजारों रूपये की वसूली और फिर मंथली फीस का बोझ पेरेंट्स की कमर तोड़ दे रहा है. कई स्कूलों ने फीस को किस्तों में भी डिवाइड कर दिया है. इसमें पहली किस्त अप्रैल से जून तक की है. दूसरी जुलाई से सितंबर तक है. तीसरी अक्टूबर से दिसंबर और चौथी जनवरी से मार्च तक की है. इसके अलावा मंथली फीस भी चार इंस्टालमेंट में डिवाइड करके ली जा रही है. कई स्कूलों में मंथली फीस 4 हजार रूपये तक ली जा रही है.

एडिशनल खर्च अलग

मंथली और एनुअली के अलावा स्कूलों द्वारा अन्य मदों में भी मोटा पैसा वसूल किया जा रहा है. इसमें टेक्नोलॉजी चार्ज, लैब चार्ज, स्मार्ट क्लासेज चार्ज, कंप्यूटर फीस आदि को जरिया बनाकर दो से ढाई हजार हर महीने वसूले जा रहे हैं.

इनका है कहना..

स्कूल हर साल बहुत ज्यादा फीस बढ़ा देते हैं. अलग-अलग मद में चार्ज वसूलते हैं. हमारे लिए घर चलाना मुश्किल हो गया है.

अजय जैन, पेरेंट्स

मिडिल क्लास फैमिली के लिए बच्चों को क्वालिटी एजुकेशन देना मुश्किल होता जा रहा है. एक-एक बच्चे की पढ़ाई का खर्च इतना ज्यादा है कि सैलरी कम पड़ने लगी है.

शालू त्यागी, पेरेंट्स

स्कूलों की मनमानी के आगे पेरेंट्स मजबूर हो जाते हैं. बच्चों को पढ़ाना है तो स्कूलों के खर्चे वहन करने ही पड़ते हैं. कितने भी नियम बन जाएं फीस कभी कम नहीं होती है.

विनीत, पेरेंट्स

महंगाई बढ़ती हैं तो स्कूलों पर भी भार आता है. खर्चो को मैनेज करना मुश्किल होता है इसलिए स्कूल नियमानुसार ही फीस में बढ़ोतरी करते हैं.

राहुल केसरवानी, सहोदय अध्यक्ष

अगर कोई स्कूल नियमों को तोड़कर अधिक फीस बढ़ाता है तो पेरेंट्स शिकायत कर सकते हैं. ऐसे स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.

गिरजेश कुमार चौधरी, डीआईओएस, मेरठ