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PATNA : पटना की पहचान के रूप में जाना जाने वाला वर्षो पुराना पाटलि वृक्ष से ही पाटलिपुत्र शहर अस्तित्व में आया. कभी यहां पाटलि वृक्ष के जंगल होते थे. समय के साथ पाटलिपुत्र शहर का नाम बदलकर पटना कर दिया गया और पाटलि के पेड़ भी कम होते गए. सम्राट अशोक के समय में पाटलि के पेड़ों को कई जगहों पर लगाया गया था जिसके बीज से निकलने वाले पौधे आज भी पटना में कई जगहों पर पाटलिपुत्र के इतिहास को दर्शा रहे हैं. डीजे आई नेक्स्ट की इस रिपोर्ट में पढि़ए पाटलिपुत्रा से पटना तक सफर.

पटना म्यूजियम है सबसे पुराना पाटलि वृक्ष

इतिहासकारों की माने तो अजातशत्रु के समय में शहर के अधिकांश हिस्से में पाटलि वृक्ष का जंगल हुआ करता था. समय के साथ-साथ शहर की आबादी बढ़ने के कारण पाटलि वृक्ष जंगल खत्म कर दिए गए. जंगलों की जगह बहुमंजिला इमारतें खड़ी हो गई हैं. पटना म्यूजियम में पाटलि का पेड़ उस समय की निशानी है जिसके बीज से राजधानी के अन्य हिस्सों में पाटलि वृक्ष लगाया गया.

कई जगहों पर है पाटलि वृक्ष

पाटलि वृक्ष पर मंडराते खतरे को देखते हुए राज्य सरकार ने बुद्धा स्मृति पार्क में सैकड़ों पाटलि के पौधे लगाए गए थे. जू, पटना सिटी, पाटलिपुत्र इंडस्ट्रीयल एरिया सहित कई जगहों पर लगे पाटलि वृक्ष पटना के इतिहास को दर्शा रहे हैं. इतिहासकारों की माने तो शहर में जहां-जहां पाटलि वृक्ष लगे हैं वहां इसके महत्व को लिखित तौर पर दर्शनों की आवश्यकता है. जिससे आम पब्लिक अपने शहर की पहचान को आसानी से जान पाएंगे.

प्राचीन ग्रंथों में भी है पाटलि का जिक्र

पाणिणी के अष्टाध्यायी, पतंजलि के महाभाष्य जैसे प्राचीन ग्रथों में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि वज्जियों से लंबे संघर्ष के दौरान वैशाली से रक्षा के लिए पाटलिग्राम में अजातशत्रु ने सैन्य बस्ती बसायी. कालांतर में किला निर्माण किया. बाद में उसके पुत्र उदयिन द्वारा यहां मगध साम्राज्य की राजधानी स्थानांतरण की गयी. उसी के साथ स्थल का नामकरण पाटलिग्राम से पाटलिपुत्र हो गया. मध्यकाल में मुसलमानों के शासन आरंभ होने के साथ इसका अपभ्रंश पटना नाम से सामने आया.

गंगा का तटीय भाग है अनुकूल

प्राचीन पाटलिपुत्र गंगा और सोन के मुहाने पर बसा था. दोनों नदियों के द्वारा ढो कर लायी गयी कछारी मिट्टी और उससे संबंधित जलवायु पाटली वृक्षों के बहुत अनुकूल थी. इसके कारण यहां अपने आप बड़ी तेजी से ये वृक्ष बढ़े और फैले.