12 साल पुराना मामला

पटना के 12 साल पुराने फर्जी एनकाउंटर मामले में कोर्ट ने आज टयूजडे को अपना फैसला सुना दिया है. सिर्फ दो रुपये के लिए तीन स्टूडेंट्स को डकैत बताकर किए गए फर्जी एनकाउंटर मामले में सीबीआई के स्पेशल कोर्ट ने आठ पुलिसकर्मियों की सजा का ऐलान कर दिया. जिसमें कोर्ट ने तत्कालीन थाना प्रभारी शम्से आलम को फांसी की सजा, जबकि सात अन्य पुलिसकर्मियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है. कोर्ट ने पांच जून को इन्हें दोषी ठहराया था.

मामला

28 दिसंबर 2002 को विकास रंजन उसके दो और दोस्त हिमांशु और प्रशांत ने आशियानगर इलाके में एक पीसीओ से फोन किया था, लेकिन बिल दो रुपये ज्यादा आए तो तीनों ने दुकानदार से इसकी शिकायत की लेकिन दुकानदार ने और लोगों के साथ मिल कर इन तीनों की इतनी पिटाई की वो अधमरे से हो गए. जिसके बाद दुकानदारों ने फिर पुलिस को फोन किया. शास्त्रीनगर थाने की पुलिस ने आकर इन बच्चों को नजदीक से गोली मारी और डकैत बताकर इस घटना को मुठभेड़ करार दे दिया.

पूरा पटना उबल पड़ा

मामले की गंभीरता को देखते हुए इस मामले को लेकर उस टाइम पूरा पटना उबल पड़ा था. कई दिनों तक हिंसक आंदोलन चला और पुलिस को कई बार लाठी चार्ज करना पड़ा. लोग इस मामले की सीबीआई जांच की मांग कर रहे थे. आरजेडी चीफ लालू प्रसाद यादव ने इन स्टूडेंट्स के नाम से शहीद चौक बनाने का आश्वासन भी दिया था, लेकिन वो नहीं बन सका. इस मामले की गंभीरता को देखते हुए 14 फरवरी 2003 को राज्य सरकार ने मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी थी. 29 मार्च 2003 को सीबीआई ने चार्जशीट दायर की. इस मामले में शास्त्रीनगर थाने के तत्कालीन प्रभारी इंस्पेक्टर शम्से आलम और सात अन्य पुलिसकर्मियों पर हत्या का आरोप तय हुआ और आज उन्हें सजा दी गई.

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