धातु शानो शौकत का सामान और लिक्विड ट्रांसर्पोटेशन का साधन। बात हो रही है गोल्ड और पेट्रोल की। आज के हालात में सोने से ज्यादा कीमती पेट्रोल हो गया है। पिछले दो दशक में सोने का भाव नौ गुना बढ़ा लेकिन उसका आम पब्लिक पर कोई असर नहीं पड़ा, लेकिन पेट्रोल का भाव नौ गुना हुआ तो पूरे देश में शोर मचा है। कोई सेंट्रल गवर्नमेंट से समर्थन वापस लेने की धमकी दे रहा है तो पब्लिक सरकार और तेल कंपनियों को कोस रही है।
पिछले साल भर के दौरान अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमत में इतना उतार चढ़ाव नहीं आया होगा जितना साल भर के अंदर तेल की कीमतों में इजाफा हुआ है। पिछले एक साल की बात करें तो 11 बार तेल की कीमतों में बढ़ोत्तरी हुई और कीमत लगभग डेढ़ गुना हो गयी है। वहीं पब्लिक का मानना है कि जबसे सेंट्रल गवर्नमेंट में यूपीए की सरकार आयी है तब से तेल की कीमत दो गुनी से ज्यादा हो गयी है।
सोने की रफ्तार पर पेट्रोल
पिछले दो दशक में सोना और पेट्रोल एक रफ्तार से बढ़ा है। 1989 में पेट्रोल की कीमत साढ़े आठ रुपये पर लीटर थी। वहीं सोने की कीमत 3140 रुपये प्रति दस ग्राम थी। आज पेट्रोल की कीमत साढ़े आठ रुपये से बढ़ कर 73 रुपये पहुंच गयी है। यानी लगभग नौ गुना बढ़ोत्तरी। वहीं सोने की कीमत में नौ गुना इजाफा हुआ है। 1989 के मुकाबले सोने की कीमत तीन हजार रुपये से बढ़ कर 26 हजार रुपये से ज्यादा हो गयी है।
डेढ़ साल में बढ़े तेईस रुपये
सिर्फ 2010 और 2011 की बात करें तो पेट्रोल के दाम में 15 बार परिवर्तन हुआ है। 6 फरवरी 2010 को पेट्रोल की कीमत लखनऊ में पचास रुपये 63 पैसे थी। और चार नवम्बर को पेट्रोल के मूल्यों में इजाफे के साथ लखनऊ में पेट्रोल की कीमत 72.99 रुपये हो गयी है। यानी बीस महीने में तेइस रुपये की बढ़ोत्तरी अबतक तेल के दामों में हो चुकी है।
जिम्मेदार कौन?
पेट्रोल के दामों में लगातार हो रही बढ़ोत्तरी का सीधा असर आम पब्लिक पर पड़ रहा है। सेंट्रल गवर्नमेंट के मिनिस्टर्स का कहना है कि उनका नियंत्रण पेट्रोल के दामों पर नहीं है। ऐसे में कंपनियां अपनी मनमानी पर उतर आयीं तो पेट्रोल के दाम पर लीटर सौ रूपये पार करने में ज्यादा समय नहीं लगेगा। लेकिन अब तक हुए पेट्रोल के दामों में इसका जिम्मेदार कौन होगा? इसका जवाब किसी के पास नहीं हैं।
सरकार होती है जिम्मेदार
वैसे इस बारे में जब आम पब्लिक से बात की गयी तो ज्यादातर लोग इस प्राइस राइज के लिए सेंट्रल गवर्नमेंट चला रही कांग्रेस पार्टी को जिम्मेदार बता रहे हैं। गोमतीनगर के प्रीतम सेठ का कहना है कि सेंटर में कांग्रेस पार्टी की गवर्नमेंट बनने के बाद से पेट्रोल के दामों में दो गुने से ज्यादा, डीजल के दाम लगभग दो गुने, गैस के दाम डेढ़ गुने से ज्यादा और केरोसिन आयल डेढ़ गुना बढ़ गया। अब बर्दाश्त सेबाहर हो रहा है। गाड़ी खड़ी करके साइकिल निकालने की नौबत जल्द ही आने वाली है। इंदिरानगर के अंकित श्रीवास्तव कहते हैं कि तेल के दामों बढ़ाने की जिम्मेदार सरकार ही होती है। बदनामी के डर से सरकार अपना पल्ला झाड़ रही है। ब्रजेश यादव का कहना है कि हमने अपने दोस्त से एग्रीमेंट कर लिया है कि आफिस दोनों साथ साथ जाएंगे। और एक ही बाइक में दोनों आफिस के लिए पेट्रोल शेयर कर लेंगे। बाकी अपने काम बाइक से करेंगे। इससे थोड़ा बहुत तो असर पड़ेगा ही।
2004 में क्या थी पोजीशन
मार्च 2004 में चुनाव हुए थे जिसके बाद यूपीए बहुमत में आयी थी। और उसकी सरकार बनी थी। मार्च 2004 में पेट्रोल की कीमत 33 रुपये 71 पैसे थी। आज यह दो गुने से ज्यादा बढ़ गयी है। यानी 72.99 पैसे। वहीं 2004 में डीजल 21 रुपये 74 पैसे था। अब लगभग 42 रुपये है। केरोसिन आयल की कीमत मार्च 2004 में नौ रुपये थी अब यह कीमत लगभग 15 रुपये है। वहीं मार्च 2004 में गैस सिलेंडर की कीमत 241 रुपये थी अब एक सिलेंडर की कीमत 400 रुपये हो चुकी है।
भारत से कम है पड़ोसी देशों में पेट्रोल की कीमत
भारत के पड़ोसी देशों में पेट्रोल की कीमत भारत से कहीं कम है। यहां तक चीन और पाकिस्तान में पेट्रोल की कीमत भारत में पेट्रोल की कीमत के आधी है। आर्थिक दृष्टि से पिछड़े देश नेपाल में तेल की कीमत भारतीय रुपये के हिसाब से लगभग 65.23 रुपये, मुट्ठी भर के देश श्रीलंका में 44.51 रुपये, पाकिस्तान में 38.78 रुपये, चीन में 37.31 रुपये और बांग्लादेश में 36.12 रुपये में एक लीटर पेट्रोल मिल रहा है। यह सभी दर भारतीय रुपये के हिसाब से है।
एक नजर पिछले बीस महीनों में 15 बार बढ़े पेट्रोल के दामों पर
तारीख दाम
06 फरवरी 2010 50.63
01 अप्रेल 2010 51.16
26 जून 2010 54.85
02 जुलाई 2010 53.87
08 सितम्बर 2010 54.97
10 सितम्बर 2010 54.87
21 सितम्बर 2010 55. 25
02 नवम्बर 2010 56.05
09 नवम्बर 2010 56.39
16 दिसम्बर 2010 59.51
16 जनवरी 2011 62.15
15 मई 2011 67.42
01 जुलाई 2011 67.69
16 सितम्बर 2011 71.09
04 नवम्बर 2011 72.99