11 बजकर 45 मिनट पर गई लाइट

2 बजकर 15 मिनट पर आई बिजली

7 लोग फंसे रहे लिफ्ट में

- सात मरीज और तीमारदार लिफ्ट में रहे कैद

- सवा दो बजे बिजली आने पर ही खुल सकी लिफ्ट

LUCKNOW:

संजय गांधी पीजीआई की नई ओपीडी में बुधवार दोपहर पौने 12 बजे बिजली जाते ही सभी लिफ्ट रुक गई। जेनरेटर से बैकअप मिलने के बाद भी एक लिफ्ट आगे नहीं बढ़ी, यह लिफ्ट तीसरे और चौथे फ्लोर के बीच फंस गई। नौबत कटर मशीन से लिफ्ट काटने तक की आई लेकिन बिजली न आने के कारण कटर मशीन भी नहीं चली। सवा दो बजे बिजली आपूर्ति बहाल होने पर ही लिफ्ट खुल सकी।

मची चीख पुकार

बुधवार दोपहर पौने 12 बजे अचानक बिजली गई तो ओपीडी में अंधेरा छा गया। बैकअप से सभी लिफ्ट से पेशेंट और अटेंडेंट बाहर आ गए लेकिन एक लिफ्ट बीच में ही फंस गई। 5-7 मिनट तक जब लिफ्ट नहीं खुली तो हंगामा मच गया। इस लिफ्ट में सात लोग फंसे थे।

आधे घंटे बाद आधा फीट खुली लिफ्ट

आधे घंटे तक इस लिफ्ट का गेट खोलने की कोशिश की जाती रही लेकिन सिर्फ चौथे फ्लोर से आधा फीट का रास्ता ही बनाया जा सका। इसके बाद भी ढाई घंटे तक लिफ्ट को खोलने की कोशिश की जाती रही लेकिन सफलता नहीं मिली। जिस कारण लिफ्ट में मौजूद सात मरीज और तीमारदार अंदर ही फंसे रहे। सवा दो बजे जब बिजली आई तक लिफ्ट को चलाकर खोला गया।

किडनी पेशेंट बेहोश

लिफ्ट में किडनी की गंभीर समस्या से जूझ रही प्रेम कुमारी भी फंसी थीं। उनके साथ उनके पति पूर्णमासी भी थे। उन्होंने बताया कि अंदर ऑक्सीजन की कमी और गर्मी से प्रेम कुमारी बेहोश होकर गिर पड़ी। लिफ्ट खुलने पर भी एक बार गिरीं तो परिजनों और कर्मचारियों ने उन्हें संभाला।

ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर आए

उनकी गंभीर हालत को देख कर्मचारी ऑक्सीजन सिलेंडर लेकर आए लेकिन जल्दबाजी में वे मॉस्क लाना ही भूल गए। इसके बाद कर्मचारी नेता सुनीता सिंह और डायरेक्ट कैंप के कर्मचारी अमर सिंह प्रेम कुमारी को व्हील चेयर से नेफ्रोलॉजी की ओपीडी लेकर गए और डॉक्टर को दिखाया। ऑक्सीजन मिलने पर उनकी हालत में सुधार आया।

बाक्स

परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल

एक दूसरे मरीज की बेटी व अन्य रिश्तेदार का बाहर रो रो कर बुरा हाल था। अंदर फंसे विपिन कुमार मिश्र ने लिफ्ट से बाहर आने पर बताया कि ऐसा लग रहा है कि उन्हें दूसरी जिंदगी मिल गई है।

कोट

करीब दो घंटे से लिफ्ट में लोग फंसे हैं। लिफ्ट को खोला नही जा पा रहा है।

कोट

बहुत देर से लोग इसमें फंसे हैं। यहां कोई देखने वाला ही नहीं है। मरीजों के घरवालों का रो रोकर बुरा हाल है।

संभो देवी