- 25 साल के लिए कंपनी ने मांगी परमिट
- 5 साल की परमिट ही देता ही है विभाग
- समिट के दौरान परिवहन विभाग और कंपनी के बीच हुआ था करार
- प्रदेश भर में इलेक्ट्रानिक बसों के संचालन के लिए बनी थी सहमति
- कंपनी ने ऐसी नियम और शर्ते रखी कि परिवहन विभाग बैक फुट पर
sanjeev.pandey@inext.co.in
LUCKNOW:
इंवेस्टर्स समिट के दौरान प्रदेश भर में इलेक्ट्रिक बसों के संचालन के लिए एसएल इंफ्रा लिमिटेड कंपनी के साथ हुआ करार परिवहन विभाग के गले की फांस बन गया है। कंपनी ने प्रदेश में बसों के संचालन को लेकर जो शर्ते परिवहन विभाग के सामने रखी हैं, उसे मानने में विभाग सक्षम नहीं है। परिवहन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक विभाग यदि इन शर्तो को मानता है तो उसे कई नए कानून बनाने होंगे। ऐसे में कंपनी की इन शर्तो के साथ प्रदेश में परिवहन इलेक्ट्रिक बसों के संचालन की योजना डिस्चार्ज होती दिखाई दे रही है। हालांकि परिवहन विभाग जल्द ही बैठक बुलाकर इस पर अंतिम निर्णय लेने की तैयारी में है।
एमओयू किया गया था साइन
इंवेस्टर्स समिट के दौरान परिवहन विभाग और एसएल इंफ्रा लिमिटेड के मध्य प्रदेशभर में इलेक्ट्रिक बसों के संचालन के लिए एमओयू साइन किया गया था। इस एमओयू के बाद परिवहन विभाग को उम्मीद थी कि इस योजना से जहां रोडवेज में बसों की कमी दूर हो जाएगी। वहीं यात्रियों का सफर आरामदायक बनेगा। प्रदेश भर में बढ़ते प्रदूषण से भी इस योजना से खासी राहत मिलेगी। इस योजना को अमल में लाने के लिए परिवहन विभाग के अधिकारी और कंपनी के प्रतिनिधियों के साथ लगातार बैठकें की। परिवहन विभाग ने कंपनी के प्रतिनिधियों से यह जानकारी मांगी कि वह यहां पर बसों के संचालन को लेकर क्या सुविधाएं चाहते हैं, उन नियम और शर्तो को बना कर भेज दें जिससे उनकी व्यवस्था की जा सके।
कंपनी की शर्ते बनी गले की फांस
इसके बाद कंपनी ने जो सेवा शर्ते भेजी, उसे देखकर परिवहन विभाग के अधिकारियों के होश उड़ गए। कंपनी ने एसी शर्तो का डिमांड की है जिनके लिए परिवहन विभाग को अपने ही नियमों में बदलाव करने पड़ेंगे। कंपनी ने अपनी बसों के लिए 25 साल के लिए परमिट मांगा है, जबकि परिवहन विभाग अधिकतम 5 सालों के लिए परिमट देता है। इसी तरह से कंपनी के अधिकारियों ने यात्री कर में छूट की मांग की है। रोडवेज ही इसका भुगतान करता है। ऐसे में इसमें भी छूट नहीं मिलेगी। कंपनी ने शर्त रखी है कि वह किराया भी खुद तय करेगी, लेकिन यह शासन स्तर से तय होता है। ऐसे कई प्वाइंट हैं जो परिवहन विभाग के लिए मानना आसान नहीं है।
कंपनी ने रखी है ये शर्ते
- परिवहन विभाग कंपनी की सभी गाडि़यों को 25 साल के लिए परमिट दे दे
- कंपनी की देखरेख में चलने वाली बसों में यात्री टैक्स नहीं पड़ेगा
- बसों की खरीद करने, परमिट के समय कंपनी से गुडस एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी) नहीं लिया जाएगा
- कंपनी की सभी गाडि़यों उन रूटों पर चलेंगी जिन पर रोडवेज की बसें चलती हैं
- कंपनी की गाडि़यां परिवहन निगम के बस अड्डों से ही संचालित की जाएंगी
- कंपनी अपने चालक और परिचालक खुद रखेगी
- बस किस रूट पर चलेगी, यह फैसला भी कंपनी करेगी
- रोडवेज बसों का किराया कुछ भी हो, कंपनी अपनी बसों के लिए किराया भी खुद तय करेगी
- कंपनी अपनी कमाई परिवहन निगम से शेयर नहीं करेगी
- कंपनी की बसों को चेक करने का अधिकार किसी सरकारी मशीनरी को नहीं होगा।
कंपनी की शर्तो के बारे में अभी जानकारी नहीं है। इसके लिए जल्द ही एक बैठक बुलाई जाएगी और तब इस पर मंथन होगा।
पी गुरु प्रसाद
ट्रांसपोर्ट कमिश्नर
उत्तर प्रदेश परिवहन विभाग