-शहर में साइबर क्राइम्स के बढ़ते मामलों से निपटने के लिए पुलिस के पास नहीं हैं जरूरी संसाधन

-न तो साइबर एक्सपर्ट, न हैकर्स, मामलों की विवेचना के लिए नहीं है बजट का भी कोई इंतजाम

-साइबर ठगी के मामलों में नतीजा जीरो, ज्यादातर मामलों को एफआर लगाकर कर दिया जाता है बंद

KANPUR : साइबर क्रिमिनल्स किस कदर शातिर हो चुके हैं इसका अंदाजा आईआईटी के खाते से रकम उड़ाने की घटना से लगाया जा सकता है। दुनिया में टेक्नोलॉजी का एक्सपर्ट माना जाने वाला आईआईटी साइबर फ्रॉड से नहीं बच सका तो आम आदमी के लिए यह कितना मुश्किल होगा? दूसरा पुलिस के पास साइबर क्राइम को रोकने के लिए कोई तैयारी नहीं है। टेक्नोलॉजी जहां साल दर साल अपडेट होकर जी, टूजी, थ्री जी से फोर जी तक पहुंच गई है। वहीं शहर की पुलिस ए जीओ जीसुनो जी तक ही सीमित है। न तो उनके पास साइबर एक्सप‌र्ट्स हैं और ना इसके लिए कोई बजट। इसी का पूरा फायदा उठाते हैं साइबर क्रिमिनल्स। उन्हें अच्छी तरह पता होता है कि पुलिस उन तक पहुंच ही नहीं सकती। पुलिस वारदात के बाद मामले की रिपोर्ट तो दर्ज कर लेती है लेकिन जांच आगे न बढ़ने से ज्यादातर मामलों में एफआर लगा दी जाती है। अब तक साइबर क्राइम्स में रिजल्ट रेट 1 परसेंट से भ्ाी कम है।

खुलासे में फिसड्डी

शहर की पुलिस साइबर क्राइम के मामलों का खुलासा करने में फिसड्डी है। पुलिस शायद ही साइबर क्राइम के किसी मामले का खुलासा कर पाई है। अगर मामला चर्चित या बड़ा क्राइम होता है तो पुलिस मामले के ठंडा पड़ने तक उसकी जांच जारी रखती है। इसकी पुष्टि पुलिस रिकॉर्ड से हो सकती है। आइये आपको बताते है कि पुलिस क्यों साइबर क्राइम का खुलासा करने में असफल होती है।

तीन से चार गुना बढ़ा ग्राफ

देश में नोटबंदी के बाद साइबर क्राइम का ग्राफ तीन से चार गुना बढ़ गया है। शहर में औसतन साइबर क्राइम का एक से दो मुकदमा हर दिन दर्ज होता है। जबकि इन मुकदमों की जांच के लिए पुलिस विभाग के पास विवेचक ही नहीं है। जो विवेचक हैं भी वो टेक्नोलॉजी में इतने एक्सपर्ट नहीं हैं किसी मामले में नतीजे तक पहुंच सकें। एक विवेचक के पास 15 से 20 मुकदमे हर समय रहते हैं। इन सबके बीच विवेचक पर मामले को निस्तारित करने का भी दबाव रहता है। दबाव बढ़ने पर विवेचक फाइनल रिपोर्ट लगाकर मुकदमे को ही बंद कर देते हैं।

सेट फॉर्मूले पर काम

रिटायर्ड पीपीएस अफसर जितेंद्र सिंह बताते हैं कि आईटी एक्ट के मामलों का खुलासा करने के लिए हैकर की जरूरत पड़ती है। पुलिस विभाग में हैकर की कोई पोस्ट नहीं है। विवेचक को ही अपने लेवल से प्राइवेट हैकर को ढूंढकर उससे संपर्क करना पड़ता है। पुलिस कर्मियों को ट्रेंड करने के लिए हैकर से वर्कशॉप तो करवाई जाती है, लेकिन नए-नए सॉफ्टवेयर आने से पुलिस अपडेट नहीं हो पाती है। वे सेट सॉफ्टवेयर और फार्मूले पर काम करते हैं। सफलता मिलती है तो ठीक, वरना फाइनल रिपोर्ट लगाकर केस बंद।

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जांच के लिए नहीं है बजट

साइबर क्राइम के ज्यादातर मामलों की जांच में यह सामने आता है कि साइबर क्रिमिनल ने किसी दूसरे शहर में बैठकर एकाउंट से पैसे ट्रांसफर या अन्य क्राइम किया है। इसकी जांच के लिए विवेचक को उस शहर में कई बार जाना होता है। इसके लिए पुलिस विभाग में कोई बजट नहीं है। विवेचक को अपने पास से ही पैसे खर्च कर जांच के लिए जाना होता है। इससे बचने के लिए विवेचक जांच आगे नहीं बढ़ाते हैं और फाइनल रिपोर्ट लगा देते हैं।

पुलिस से कई गुना आगे

साइबर क्राइम करने वाले ठग बेहद शातिर होते है। वे पकड़े न जाएं, इसके लिए वे पुख्ता तैयारी कर वारदात करते हैं। तभी तो आईआईटी जैसे संस्थान को भी शिकार बना लेते हैं। वे सैकड़ों किमी दूर बैठकर दूसरे शहर अपराध करते है। जब तक मामला पुलिस तक पहुंचता, पुलिस जांच शुरू करती और उस शहर तक पहुंचती है, काफी देर हो चुकी होती है। शातिर वहां से गायब हो चुके होते हैं। साइबर ठग हमेशा फेक आईडी से सिम लेकर क्राइम करते हैं। बैंक में खाता भी फेक आईडी से खुलवाते हैं। इससे पुलिस उन तक नहीं पहुंच पाती है। इसके अलावा साइबर ठग हमेशा टेक्नोलॉजी से अपडेट रहते हैं। वे नए सॉफ्टवेयर का यूज करते है। इस वजह से भी वे पकड़े नहीं जाते है। कई बार दूसरे देश से हैकर्स वारदात को अंजाम देते हैं जिन्हें पकड़ना लगभग नामुमकिन होता है।

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इस तरह झांसा देकर ठगी करते है

-बैंक कर्मी बनकर फोन कर खाता बंद होने का झांसा देते है, इनाम निकलना, आधार कार्ड अपडेट कराना, नौकरी और सर्वे का झांसा देते है।

-विभिन्न माध्यमों से लुभावने विज्ञापन प्रकाशित कराकर, क्रेडिट कार्ड बनाने का झांसा देकर खाते की जानकारी हासिल करना

-एटीएम बूथ पर मदद के नाम पर कार्ड बदलकर पैसे पार करना, सोशल मीडिया में फेक आईडी से दोस्ती कर खाते की जानकारी हासिल करना

-बैंक में क्लोन चेक और कंपनी के मेल हैक कर जानकारी जुटाकर खाते से पैसे पार करना

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ये सावधानी बरतें

- कोई फोन पर किसी योजना के तहत खाता या एटीएम कार्ड की जानकारी मांगे तो उसे न दें। बैंक की पासबुक, एटीएम कार्ड सुरक्षित रखें।

-मोबाइल पर कोई ओटीपी (वन टाइम पासवर्ड) पूछे तो उसे न बताएं, इंटरनेट बैंकिंग में भी पिन या पासवर्ड न दें।

-जिस एटीएम बूथ पर सीसीटीवी कैमरे या गार्ड हो, उसी एटीएम बूथ से पैसे निकलें, अपना एटीएम कार्ड किसी को न दें।

-एटीएम कार्ड का इस्तेमाल करने से पहले सुनिश्चित करें, कि कोई आपके आसपास न हो। ट्रांजेक्शन पूरा होने के बाद कैंसिल का बटन जरूर दबाएं।

- लॉटरी, निकलने, लकी ड्रा या ऐसे ही किसी लालच से संबधित मेल ओपन करें, ओपन करते ही डाटा हैक हो जाता है

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ठगी होने पर क्या करें

अपन आप साइबर ठगी का शिकार हो जाते है तो सबसे पहले आप हेल्पलाइन में फोन कर कार्ड को ब्लाक करवा दें। बैंक जाकर खाते में ट्रांजेक्शन बंद करवा दें। इसके बाद पुलिस की साइबर सेल में जाकर शिकायत दर्ज कराएं।