-10 साल में करीब 18 हजार की नहीं लौटी रिपोर्ट

-मौत की वजह जानने में देरी, नहीं मिल पा रहा इंसाफ

GORAKHPUR: जिले में संदेहास्पद हाल में होने वाली मौतों का राज दफन रह जाता है। डेडबॉडी की बिसरा जांच रिपोर्ट के इंतजार में पुलिस जांच पूरी नहीं कर पा रही। समय से मौत की गुत्थी न सुलझने पर कोर्ट में मुकदमों का बोझ बढ़ता जा रहा है। 10 साल के अंदर करीब 18 हजार लोगों की मौत की सही वजह सामने नहीं आ सकी। लैब में भेजे गए नमूनों की जांच की पैरवी करने में पुलिस महकमा पीछे रह गया। अफसरों का कहना है कि बिसरा रिपोर्ट मंगाने के लिए पत्राचार किया जाता है। लैब पूरा होने पर आधी से अधिक समस्याएं खत्म हो जाएगी।

मौत की वजह जाने को प्रिजर्व करते बिसरा

किसी भी घटना में मौत की वजह स्पष्ट रूप से सामने नहीं आने पर डॉक्टरों का पैनल बिसरा प्रिजर्व कर लेता है। पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों की टीम डेडबॉडी की हड्डियां, लीवर, किडनी, पैंक्रियाज, गाल ब्लैडर सहित शरीर के अन्य अंगों को काटकर निकाल लेती है। उसे केमिकल की मदद से जार में सुरक्षित रख लेते हैं। गोरखपुर में जांच की सुविधा उपलब्ध न होने से बिसरा सैंपल को संबंधित थानों की रिपोर्ट वाराणसी, लखनऊ और आगरा के फॉरेसिंक लैब में भेजते हैं। किसी भी सैंपल को कलेक्ट कर उसे लैब में भेजने फिर वहां से रिपोर्ट को मंगाने में होने वाली देरी से ज्यादातर मामले दबे रह जाते हैं। रिपोर्ट के अभाव में पुलिस की विवेचना भी पेडिंग रहती है। मेडिकल कॉलेज के पोस्टमार्टम हाउस में हजारों की तादाद में जार नजर आएंगे। कर्मचारियों का कहना है कि इन सभी रिपोर्ट पेडिंग होने से सुरक्षित करना मजबूरी है।

कड़ी हो पैरवी तो पूरी होती जांच

संदेहास्पद तरीके से होने वाली मौतों की वजह जानने के लिए बिसरा जांच महत्वपूर्ण हो जाता है। जांच के बाद ही मौत की वजह सामने आ पाती है। इसलिए पुलिस डेडबॉडी को पोस्टमार्टम के लिए भेजकर मौत की वजह जानने की कोशिश करती है। लेकिन इसके बावजूद कई बार पोस्टमार्टम में तथ्य सामने नहीं आ पाते। बिसरा से संबंधित जांचों में उन्हीं मामलों की रिपोर्ट आसानी से आ पाती है जिनमें पुलिस कड़ी पैरवी करती है। हाई प्रोफाइल मामलों के अलावा कुछ गिने-चुने मामलों में मृतक के परिजनों की पैरवी पर काम होता है। अन्य केसेज को सुलझाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाता। कई अन्य मामलों में गनशॉट, बर्न, रेप इत्यादि में भी जांच के लिए सैंपल बाहर भेजना पड़ता है।

बन जाता लैब तो मिलती राहत

बिसरा जांच सहित अन्य के लिए गोरखपुर में लैब बनाने की डिमांड चल रही थी। 2017 में लैब का निर्माण कार्य शुरू कराया गया है। जिला अस्पताल इमरजेंसी के सामने पुरानी जेल की भूमि पर चार मंजिला लैब में अत्याधुनिक सुविधाओं को मुहैया कराया जाएगा। प्रदेश सरकार की तरफ से मॉर्डन लैब बनाने के लिए करीब 30 करोड़ रुपए का बजट जारी किया गया था। लेकिन निर्माणदायी संस्था की लापरवाही से काम पूरा नहीं हो सका है। लैब बनने के इंतजार में पुलिस अधिकारी हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं।

लैब के निर्माण पर मिलेगी यह सुविधा

- केमिस्ट्री

- डॉक्यूमेंट्स

- बॉयोलाजी

- बैलिस्टिक

- फिजिक्स

- क्राइम सीन मैनेजमेंट

- मेडिकोलीगल

- कंप्यूटर फारेसिंक

- फोटो सेक्शन से जुड़ी जांच

- सीरोलॉजी

- टॉक्सिोलाजी

यह हाेता नुकसान

-जांच रिपोर्ट के अभाव में मौत की सही वजह सामने नहीं आ पाती।

-रिपोर्ट की कमी से मुकदमों की विवेचना पूरी नहीं हो पाती है।

-विवेचना पेडिंग होने से मुकदमों के निस्तारण में कमी आती है।

-पीडि़त व्यक्ति थाने से लेकर कोर्ट तक का चक्कर लगाते फिरते हैं।

-अदालतों में मामलों की सुनवाई में काफी देरी होने से न्याय की उम्मीद टूटती है।

- मुकदमे में गलत नामजदगी होने पर निर्दोष के खिलाफ सबूत नहीं ि1मल पाता।

वर्जन

मौत की वजह जानने के लिए डेडबॉडी का पोस्टमार्टम कराया जाता है। कई बार मौत की वजह स्पष्ट नहीं होती। इस लिए पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर बिसरा प्रिजर्व कर लेते हैं। बिसरा की जांच के लिए लैब में भेजा जाता है। लेकिन जांच प्रक्रिया में होने वाली विलंब से रिपोर्ट समय से नहीं मिल पाती। इस वजह से कई बार मुकदमों के निस्तारण में प्रॉब्लम आती है।

-विनय कुमार सिंह, एसपी सिटी

बिसरा रिपोर्ट बहुत जरूरी होती है। बिना रिपोर्ट के मुकदमे की सुनवाई पूरी नहीं हो पाती है। इस आधार पर न्यायालय की तरफ से जिम्मेदार संस्थान को कारण बताओ नोटिस जारी किया जा सकता है। आखिर किन वजहों से रिपोर्ट आने देरी हो रही है।

-शक्ति प्रकाश श्रीवास्तव, एडवोकेट