-आमी नदी को बचाने के लिए होता रहा है प्रदर्शन, अधिकारी सिर्फ देते रहे हैं आश्वासन

-सीईटीपी लगाने का प्रोजेक्ट तैयार, नहीं हो रही कार्रवाई, पाल्यूशन से खत्म होती जा रही आमी नदी

GORAKHPUR: विलुप्त होने के कगार पर खड़ी आमी नदी को बचाने के लिए पिछले दस साल में करीब दो सौ धरना प्रदर्शन हुए। अधिकारियों ने आश्वासन भी दिया, लेकिन हुआ कुछ नहीं। गीडा की फैक्ट्रियों के पाल्यूशन से आमी को बचाने के लिए कामन इनफ्लुवेंट टीटमेंट प्लांट लगाने में लापरवाही की जा रही है। पानी का प्रदूषण रोकने के लिए 35 एमएलडी की जगह सिर्फ पांच एमएलडी का प्लांट लगाने की तैयारी की भनक लगने से आंदोलनकारी गुस्से में हैं। लोगों ने चेताया है कि प्लांट लगाने का कोरम पूरा करना भारी पड़ेगा।

तीन दिनों से अनशन कर रहे आंदोलनकारियों ने जिम्मेदारों को जगाने के लिए मई माह में व्यापक आंदोलन छेड़ने की तैयारी कर ली है। आमी बचाओ मंच ने अपने आंदोलन का शेड्यूल भी तय कर दिया है। कार्यक्रम से जुड़े लोगों का कहना है हर बार मामले को अफसर किसी न किसी बहाने टाल जाते हैं।

कचरे से बंद हो रहे सोते, नल उगलते हैं गंदा पानी

सिद्धार्थनगर जिले के डुमरियागंज सिकहरा ताल से निकली आमी नदी गोरखपुर जिले में सोहगौरा के पास राप्ती में मिल जाती है। रुधौली से नदी में फैक्ट्रियों का पाल्यूशन शुरू हो जाता है। गीडा की दर्जनों फैक्ट्रियों सहित 50 से अधिक बड़ी फैक्ट्रियों का गंदा पानी आमी में बहकर मिलता है। गंदे पानी से नदी पूरी तरह प्रदूषण की चपेट में आ चुकी है। कचरे की वजह से नदी के सोते भी बंद होते जा रहे। आमी के प्रदूषण से दोनों ओर बसे पांच सौ से अधिक गांवों की आबादी प्रभावित हो रही है। ऐतिहासिक कबीर स्थली मगहर पर जाने वाले लोग भी इससे प्रभावित होते हैं। आमी नदी के किनारे कटका, कूड़ा भरत और जरलही गांव में लगे हैंडपंप से पानी में कचरा निकलता है। इस वजह से परेशान हाल लोगों ने आमी को बचाने का संकल्प लिया।

2009 से हो रहा आंदोलन

आमी बचाओ मंच के अध्यक्ष विश्वविजय सिंह की अगुवाई में आंदोलन की शुरुआत 2009 में हुई। अभी तक छोटे-बड़े करीब दो सौ आंदोलन हो चुके हैं। हर बार के आंदोलन में अधिकारी किसी तरह से मामले को टालने का प्रयास करते हैं।

लोकसभा और विधानसभा में आमी के पाल्यूशन का मामला उठने पर जिम्मेदार अफसरों की नींद खुली। कई बार आंदोलन के बाद 2014 में उत्तर प्रदेश जलनिगम ने करीब डेढ़ साल तक गीडा के पाल्यूशन से आमी पर पड़ने वाले प्रभाव की मानीटरिंग की। इसके बाद वर्ष 2016 में सीईटीपी का डीपीआर तैयार हुआ। जलनिगम ने अपने डीपीआर में बताया था कि परीक्षण के दौरान 26.597 एमएलडी का डिस्चार्ज होना पाया गया है। इसलिए कम से कम 35 एमएलडी का प्लांट लगाने की जरूरत है।

क्लीन गंगा में शािमल है आमी

आमी नदी को नेशनल मिशन फार क्लीन गंगा वाटर रिसोर्सेज में शामिल किया जा चुका है। पांच फरवरी 2016 को भारत सरकार को तत्कालीन पर्यावरण मंत्री की ओर से शिकायतकर्ता विश्वविजय सिंह को पत्र भेजकर इस बात से अवगत कराया था कि गंगा नदी और उसकी सहायक नदियों में आमी भी शामिल है। नेशनल मिशन फार क्लीन गंगा वाटर रिसोर्सेज मंत्रालय, रीवर डेवलपमेंट एवं गंगा रीजुनिवेशन के तहत इस प्रकरण को देखा जा रहा है। उधर, डीपीआर बनने पर सीईटीपी लगाने के लिए गीडा ने बजट का अभाव दिखा दिया। गीडा की ओर से केंद्र सरकार से बजट की मांग की जा चुकी है। आंदोलन से जुड़े लोगों का कहना है कि गीडा डेवलपमेंट चार्ज लेता है। इसके बावजूद भारत सरकार से बजट मांगा जा रहा है।

अगले आंदोलन की रूपरेखा

15 मई को सभी तहसील मुख्यालयों पर धरना- प्रदर्शन की तैयारी

30 मई को अधिकारियों का घेराव, प्रदर्शन

15 जून को गीडा कार्यालय पर बेमियादी हड़ताल

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गीडा में सीईटीपी लगाने के लिए हुए प्रमुख्ा आंदोलन

13 अप्रैल 2018: आमी बचाओं मंच की ओर सीईटीपी लगाने के लिए तीन दिनी अनशन

20 अगस्त 2015: आंदोलन में कई संगठनों के लोग शामिल हुए।

07 जुलाई 2014: आमी बचाओ संकल्प यात्रा डुमरियागंज से सोहगौरा तक निकाली गई।

02 जुलाई 2014: गोरखपुर खजनी रोड के छताई पुल पर चार घंटे तक सड़क जाम, 15 के खिलाफ मुकदमा

दिसंबर वर्ष 2012 : गीडा आफिस पर पांच दिनों का आमरण अनशन

15 मई 2011: राष्ट्रगौरव के पेपर में आमी के बारे में प्रश्न पूछा गया था। 68वें प्रश्न के रूप में आमी बचाओ मंच के कार्य के संबंध में सवाल किया गया था।

20 अप्रैल 2011 :कटका में अफसरों को बंधक बनाया गया। काली पोतकर अफसरों को साड़ी पहनाकर घुमाया गया। अगुवा नेता सहित सौ लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया गया।

25 जुलाई 2009: जिले के सभी तहसीलों पर धरना, प्रदर्शन

27 अप्रैल 2009: हरपुर बुदहट में विचार गोष्ठी का आयोजन

31 मार्च को 2009: क्षेत्रीय प्रदूषण कार्यालय पर अधिकारियों को बंधक बनाया गया था।

27 मार्च 2009 : महिलाओं ने डीएम गोरखपुर घड़े में आमी का पानी भेंट किया था।

02 मार्च 2009 : सोहगौरा से मगहर तक आमी मुक्ति के लिए महापद यात्रा निकाली गई थी। तब यात्रा में शामिल सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा था अब आमी का अपमान का बर्दाश्त नहीं, आमी के चीरहरण पर चुप रहने वालों को इतिहास माफ नहीं करेगा।

23 फरवरी 2009 में फाइन आर्ट के छात्रों ने रेत की कलाकृति बनाकर आमी को प्रदूषण से मुक्त कराने का अभियान चलाया।

06 फरवरी 2009 को छताई गांव से हस्ताक्षर अभियान शुरू किया गया।

आमी को लेकर प्रशासन और सरकारें कभी गंभीर नहीं हुई। सेंटर पाल्यूशन कंट्रोल बोर्ड, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल और विशेषज्ञों की सलाह का लगातार उल्लंघन किया जा रहा है। इससे आमी नदी मृत प्राय हो चुकी है। इसके लिए प्रदूषण नियंत्रण कार्यालय के अधिकारी, स्थानीय प्रशासन और गीडा के अधिकारी जिम्मेदार हैं। उनके भ्रष्ट गठजोड़ के कुचक्र और साजिश को कामयाब नहीं होने दिया जाएगा। इसके लिए कानूनी लड़ाई के साथ-साथ सड़क की लड़ाई को तेज किया जाएगा।

विश्व विजय सिंह, अध्यक्ष आमी बचाओ मंच