पॉलिथीन अभियान

- पॉलिथीन दे रही कैंसर, शुगर और हार्ट अटैक जैसे घातक रोग, जड़ों में पॉलिथीन आने से पौधे भी जल्द ही टूट जाते हैं

- प्लास्टिक कचरे से कृषि योग्य भूमि भी हो रही बंजर

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KANPUR : शहर में धरा और मानव शरीर के अंदर तक समा चुकी पॉलिथीन के दुष्प्रभाव अब बीमारियों के रूप में सामने आने लगे हैं। इसमें मौजूद कार्बन और अन्य केमिकल शरीर में प्रवेश कर ब्लड के साथ बॉडी में घूमते रहते हैं, जो आगे चलकर कैंसर का बड़ा कारण बनते हैं। पीने के पानी से लेकर, चाय और अन्य खाद्य पदार्थ पॉलिथीन में पैक करके बेचे जा रहे हैं। एक स्टडी में सामने आया है कि पॉलिथीन में रखा खाद्य पदार्थ और पानी पीने से एंडोक्राइन डिसरेप्टर डिजीज होने से हार्मोन असंतुलित हो जाते हैं।

धरा के अंदर समाई पॉलिथीन

पॉलिथीन ने कानपुर की धरती के अंदर भी प्रदूषण फैलाया है। इसके चलते मिट्टी की उर्वरा शक्ति कमजोर हो गई है। इसके अलावा बारिश के मौसम में भी वाटर रिचार्ज नहीं हो पा रहा है। वजह साफ है कि पॉलिथीन मिट्टी के अंदर तक समा चुकी है। इससे पानी को जमीन के अंदर जाने से रोकने में पॉलिथीन बड़ा कारक बन चुकी है। भूगर्भ जल विज्ञानी भी इस पर गहरी चिंता व्यक्त कर चुके हैं। उनका कहना है कि जमीन के अंदर पॉलिथीन की एक मोटी लेयर बनती जा रही है। जिससे पूरे वेग से पानी मिट्टी के अंदर नहीं जा पा रहा है।

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मिट्टी में होने वाले दुष्प्रभाव

-मिट्टी में पॉलिथीन की मात्रा अधिक होने से मृदा कणों का आवागमन रुक जाता है।

-पॉलिथीन को जलाने पर यह नष्ट नहीं होती, बल्कि मिट्टी की ऊपरी सतह पर चिपक जाती है, इससे पानी नीचे नहीं जा पाता।

-पॉलिथीन मिट्टी के दोस्त कहे जाने वाले कीट, केचुए और फफूंद को पूरी तरह से समाप्त कर देती है।

-पौधों की जड़ों के बीच मिट्टी आने से जड़ों की पकड़ कमजोर हो जाती है और पेड़ जल्दी उखड़ जाते हैं।

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शरीर पर पड़ रहा प्रभाव

-60 परसेंट तक पॉलिथीन में पैक हो रहे हैं खाद्य व पेय सामग्री।

-पॉलिथीन में खाद्य सामग्री रखने से कार्बन और केमिकल शरीर में पहुंच रहे।

-पॉलिथीन में खाद्य पदार्थो के खाने से लिवर, पेनक्रियाज और हार्ट प्रभावित हो रहा है।

-डायबिटिज, हार्ट अटैक, हार्मोन डिस्बैलेंस और कैंसर जैसी बीमारियां बना रही गंभीर रोगी।

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आंकड़ों के आइने से

-50 टन पॉलिथीन की रोजाना शहर में खपत।

-10 टन पॉलिथीन रोजाना सड़कों पर फेंकी जाती है।

-50 माइक्रॉन से ऊपर का प्रोडक्शन 80 टन रोजाना।