- चार राज्यों के चुनाव में मिली सफलता से सपा-बसपा खेमे पर दबाव

- सीटों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस कर सकती है अपनी शर्ते लागू

LUCKNOW:

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली अप्रत्याशित बढ़त ने सूबे की गठबंधन की सियासत को भी नया मोड़ दे दिया है। चौबीस घंटे पहले तक विपक्षी गठजोड़ को लेकर जो तस्वीर धूमिल नजर आ रही थी, वह अब साफ होती नजर आने लगी है। कहना गलत न होगा कि कांग्रेस का पलड़ा भारी होने के बाद अब वह यूपी में इसे पूरी तरह भुनाने की स्थिति में आ चुकी है। वहीं सपा-बसपा के संभावित गठबंधन को भी यूपी फतह के लिए कांग्रेस की जरूरत आन पड़ी है। अब देखना यह है कि लोकसभा चुनाव से पहले तीनों दल क्या रणनीति अपनाते है।

बयानबाजी ने बिगाड़ा गठजोड़

दरअसल यूपी में विधानसभा चुनाव के दौरान सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ गठबंधन का फैसला तो लिया पर वह इसे लंबे समय तक बरकरार नहीं रख पाए। हाल ही में अखिलेश ने कांग्रेस के साथ भविष्य में किसी गठबंधन की संभावना को यह बोलकर नकार दिया कि इसके लिए वे काफी इंतजार कर चुके हैं। वहीं दूसरी ओर बसपा ने फिलहाल अपने पत्ते तो नहीं खोले हैं पर यह तय माना जा रहा है कि वह सपा के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव के रण में उतरने की तैयारी कर रही है। बसपा सुप्रीमो मायावती अधिकतर मामलों में भाजपा के साथ कांगे्रस को भी निशाने पर लेती रही हैं लिहाजा कांग्रेस का हाथ थामना इतना आसान नजर नहीं आ रहा है। इसमें सबसे बड़ी समस्या सीटों के बंटवारे को लेकर होगी जिसे लेकर मायावती ने पहले ही साफ कर दिया है कि वह सम्मानजनक सीटें न मिलने पर अकेले चुनाव लड़ना पसंद करेंगी।

बसपा में लौटा दम

वहीं मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव पर नजर डालें तो सपा के मुकाबले बसपा ने अच्छा प्रदर्शन किया है और मध्य प्रदेश में वह किंग मेकर की भूमिका में नजर आ रही है। चुनाव नतीजों से यह तस्वीर भी साफ हो जाएगी कि यूपी के इस पड़ोसी राज्य में बसपा की भूमिका क्या होगी। जानकारों की मानें तो बसपा सरकार बनाने की स्थिति में कांग्रेस का तवज्जो दे सकती हैं। इसके बदले में वह यूपी में लोकसभा चुनाव के दौरान सीटों के बंटवारे में अपनी शर्ते भी लागू करवाएगी। हालांकि कांग्रेस को यदि बसपा की जरूरत न पड़ी तो वह भी यूपी में सम्मानजनक सीटें मिलने पर ही गठबंधन में शामिल होगी।

कांग्रेस को कमतर आंकना गलत

बीते डेढ़ साल के सियासी घटनाक्रमों पर नजर डालें तो अब कांग्रेस को कमतर आंकना भाजपा की बड़ी भूल भी साबित हो सकता है। दरअसल तमाम मामलों को लेकर कांग्रेस ने बीते डेढ़ साल में विधानसभा से लेकर सड़क तक संघर्ष करने की रणनीति अपनाई है। कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर समेत तमाम नेता लगातार सक्रिय नजर आए हैं।