कानपुर। प्रयागराज कुंभ में गंगा, यमुना और पौराणिक सरस्वती के संगम पर तीसरा व अंतिम शाही स्नान पूरा हुआ। इस दाैरान करीब डेढ़ करोड़ से अधिक लोगों ने यहां स्नान किया।
शाही स्नान के लिए यहां पर एक दिन पहले से ही लोगों का हुजूम जुटना शुरू हो गया था। बसंत पंचमी के दिन यहां सुबह तड़के से ही लोग संगम में डुबकी लगाने लगे थे।
इसके अलावा शाही स्नान के अवसर पर सभी अखाड़ों के साधुओं ने भी संगम में डुबकी लगाई। इस दाैरान कुंभ में नागा साधुओं ने भी सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा।
अखाड़ों का शाही जुलूस अपनी भव्यता बिखरेता हुआ दिखाई दिया। मेला के अंतिम शाही स्नान पर्व क्या नागा संन्यासी, क्या संत-महात्मा क्या उनके अनुयायी। हर कोई बासंतिक रंग में रंगा हुआ था।
हाथों में गेंदे का फूल और संत-महात्माओं के पूरे शरीर को सुशोभित करती फूलों की माला के बीच जब एक-एक कर अखाड़ों ने शाही स्नान के लिए जुलूस निकाला तो हर-हर महादेव, बोल बम-बोल बम, जय सियाराम और जय-जय श्रीराम के गगनभेदी उद्घोष हो रहा था।
संन्यासी परंपरा के अखाड़ों के बाद वैरागी परंपरा के अन्तर्गत आने वाले अखिल भारतीय श्रीपंच निर्मोही अनि अखाड़ा, दिगम्बर अनि व निर्वाणी अनि अखाड़ा का एक के पीछे क्रम के अनुसार जुलूस शाही स्नान के लिए निकला।
वहीं शाही स्नान के समापन के बाद हजारों की संख्या में श्री तेहराभाई त्यागी खालसा अखाड़ों में वैरागियों ने अपराह्न 1 बजे से धूनि रमाना आरंभ कर दिया।
करीब दो घंटे तक चले इस अनुष्ठान में बैरागी अपने चारों ओर उपलों की आग जलाता है, और मुख्य गुरुस्वरूप अग्निकुंड से आग को लेकर अपने आसपास छोटे-छोटे अग्नि पिंड प्रज्वलित करता है।
हर अग्नि पिंड में रखी जाने वाली अग्नि को चिमटे में दबाकर वैरागी अपने ऊपर से घुमाता और फिर पिंड में रखता हैं। इसके साथ ही साधक पैरों पर कपड़ा डालकर गुरुमंत्र का उच्चारण करता है।
प्रयागराज में करीब 3200 हेक्टेयर क्षेत्रफल में फैले मेला क्षेत्र में हर ओर से सिर्फ श्रद्धालु ही श्रद्धालु नजर आ रहे थे। कुंभ में अंतिम शाही स्नान पर हेलीकाॅप्टर से पुष्प वर्षा हुई।
एजेंसी इनपुट सहित।
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