-जप तप, यज्ञ, दान व अनुष्ठान का सिलसिला शुरू

ALLAHABAD: बुधवार से पुरुषोत्तम मास (मलमास) का आरंभ हो गया। पुरुषोत्तम मास के पहले दिन लोगों ने भगवान श्री हरि विष्णु को प्रसन्न करने के लिए जप तप, यज्ञ, दान व्रत, कीर्तन, अनुष्ठान इत्यादि जैसे आयोजन किए। अपने मनोरथ को पूर्ण करने के लिए लोगों ने विष्णु मंदिरों में जाकर ध्वज, पताका का अर्पण भी किया। मंदिरों में भगवान की प्रसन्नता के लिए बेल पत्र में राम नाम लिखकर भगवान भोलेनाथ को अर्पण कर उनके सन्मुख विष्णु सहस्त्र नाम का पाठ किया गया।

पवित्र नदी में स्नान, दीपदान भी

अधिकमास पर किए जाने वाले कर्मो की बावत श्री निम्बार्काचार्य प्रयाग पीठाधिपति गोस्वामी श्री विष्णुकांत जी महाराज कहते हैं कि इस मास में जो भी मनुष्य भागवत श्रवण गीतापाठ, पंचाधर, अष्ठाक्षर, दशाक्षर, अष्ठादशाक्षर आदि मंत्रों का श्रद्धा से श्रवण एवं जप करेगा। उसे लाख करोड़ नहीं बल्कि अनन्त फल की प्राप्त होगी। कहा कि इस मास में पवित्र नदी में स्नान, सुगन्धित पुष्पों से पूजन तथा दीपदान का का सिलसिला भी शुरू हो गया है। कहा कि मंजरी सहित तुलसी से श्री शालिगराम, गोपाल जी, राम जी, नारायण भगवान को दिव्य स्त्रोतों के साथ सहस्त्रार्चन से समस्त पापों का नाश होता है।

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इसलिए कहा जाता है अधिकमास

हर तीन साल में एक बार एक अतिरिक्त माह का प्राकट्य होता है। इसे अधिकमास, मलमास या पुरुषोत्तम मास के नाम से जाना जाता है। अधिकमास चंद्र वर्ष का एक अतिरिक्त भाग है। इसका प्राकट्य सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष के बीच अंतर का संतुलन बनाने के लिए होता है। भारतीय गणना पद्धति के अनुसार प्रत्येक सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 06 घंटे का होता है। वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। दोनों वषरें के बीच लगभग 11 दिनों का अंतर होता है जो हर तीन वर्ष में लगभग 01 मास के बराबर हो जाता है। इसी अंतर को पाटने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास अस्तित्व में आता है। जिसे अतिरिक्त होने के कारण अधिकमास का नाम दिया गया है।

इसलिए दिया गया है मलमास नाम

हिंदू धर्म में अधिकमास के दौरान सभी पवित्र कर्म वर्जित माने गए हैं। माना जाता है कि अतिरिक्त होने के कारण यह मास मलिन होता है। इसलिए इस मास के दौरान हिंदू धर्म के विशिष्ट व्यक्तिगत संस्कार जैसे नामकरण, यज्ञोपवीत विवाह और सामान्य धार्मिक संस्कार जैसे गृहप्रवेश, नई बहुमूल्य वस्तुओं की खरीद आदि आमतौर पर नहीं किए जाते हैं। मलिन मानने के कारण ही इस मास का नाम मलमास पड़ गया है।

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पुरुषोत्तम मास क्यों और कैसे पड़ा नाम

अधिकमास के अधिपति स्वामी भगवान विष्णु माने जाते हैं। पुरुषोत्तम भगवान विष्णु का ही एक नाम है। इसीलिए अधिकमास को पुरुषोत्तम मास के नाम से भी पुकारा जाता है। कहा जाता है कि भारतीय मनीषियों ने अपनी गणना पद्धति से हर चंद्र मास के लिए एक देवता निर्धारित किए। लेकिन इस अतिरिक्त मास का अधिपति बनने के लिए कोई देवता तैयार ना हुआ। ऐसे में ऋषि मुनियों ने भगवान विष्णु से आग्रह किया कि वे ही इस मास का भार अपने ऊपर लें। भगवान विष्णु ने इस आग्रह को स्वीकार कर लिया और इस तरह यह मलमास के साथ पुरुषोत्तम मास भी बन गया।

वर्जन

पुरुषोत्तम मास पुरुषोत्तम ब्रह्म भगवान श्रीकृष्ण का पवित्र महीना है। इस माह में भगवदीय उत्सव एवं सतसंग में सम्मिलित होकर सभी मनोवांछित फल प्राप्त कर सकते हैं।

-गोस्वामी विष्णुकांत जी महाराज, जगतगुरू श्री निम्बार्काचार्य पीठ महाजनी टोला