RANCHI : राज्य सरकार ने नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (सीएजी) को 5471 करोड़ रुपए का हिसाब नहीं दिया है। शनिवार को सीएजी की रिपोर्ट विधानसभा के पटल पर रखी गई। इस रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। एक ओर जहां सरकार भारी-भरकम राशि के खर्च का हिसाब देने में विफल रही है, वहीं दूसरी ओर बजट में किये गए प्रावधान के तहत खर्च की जाने वाली राशि पर्सनल और पीएल एकाउंट में भी रखी गयी। विधानसभा को रिपोर्ट सौंपने के बाद झारखंड के महालेखाकार सी नेडुन्चेलियन ने मीडिया को ऑडिट रिपोर्ट की जानकारी दी।

सोलह वर्षो से कई विभागों का डीसी बिल बकाया

राज्य गठन के वर्ष 2000 से लेकर वर्ष 2016 तक 17,081 करोड़ रुपये के एसी बिल (आकस्मिक विपत्र) के विरुद्ध सरकार के विभिन्न महकमों ने महज 11,610 करोड़ रुपये के डीसी बिल (विस्तृत आकस्मिक विपत्र) ही एजी को उपलब्ध कराए हैं। एसी बिल के तहत विशेष परिस्थिति में कोषागार से अग्रिम के तौर पर राशि की निकासी कर खर्च किया जाता है। लेकिन इस खर्च का ब्योरा डीसी बिल के तौर पर 25 दिनों के भीतर देना होता है। सरकारी विभागों ने ऐसी 5471 करोड़ रुपये की राशि का कोई लेखा-जोखा ही नहीं दिया।

राशि नहीं हो सके लैप्स

सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में सरकारी राशि को व्यक्तिगत खातों में भी रखने की विसंगति को पकड़ा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मार्च 2016 के अंत तक 5217.97 करोड़ रुपये की भारी भरकम राशि को व्यक्तिगत खातों में डाला गया था। यह राशि बजट की राशि को लैप्स होने से बचाने के लिए इन खातों में डाली जाती है जो कि वित्तीय नियमों का उल्लंघन है।

विभागों ने बनाया बचत का रिकार्ड

राज्य सरकार ने वित्तीय वर्ष 2015-16 के बजट में खर्च की जगह बचत के नए रिकार्ड कायम कर दिए। सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2015-16 के दौरान बजट की 17,524.86 करोड़ रुपये की राशि पड़ी रह गई, जो कि कुल बजट की 24 प्रतिशत है। सीएजी की मानें तो यह सरकार के अनुचित बजट आकलन की ओर इशारा करती है।

चार विभाग एक हजार करोड़ नहीं कर सके खर्च

स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग, ग्रामीण विकास विभाग, महिला एवं बाल विकास विभाग, श्रम-नियोजन व स्वास्थ्य विभाग ऐसे सरकारी महकमें रहे जिनकी बजट की 1000 करोड़ रुपये से अधिक की राशि खर्च नहीं हो सकी। कुछ विभागों को बजट में भारी भरकम राशि दी गई, वहीं कुछ ऐसे विभाग भी रहे जिन्हें राशि की जरूरत थी लेकिन उन्हें पर्याप्त राशि नहीं मिली।

ऐसी-ऐसी गड़बडि़यां पकड़ी गईं

- वर्ष 2015-16 के दौरान सामाजिक सेवाओं में 6,790 करोड़ और आर्थिक सेवाओं में 1,578 करोड़ रुपये कम व्यय हुए।

- वर्तमान वित्तीय वर्ष में राजकोषीय घाटा 11,523 करोड़ रुपये तक बढ़ गया। यह सकल राज्य घरेलू उत्पाद का 4.8 प्रतिशत के करीब रहा। जो कि निर्धारित सीमा 3.5 प्रतिशत से अधिक है।

- वर्ष 2015-16 के दौरान पूंजीगत व्यय वर्ष 2014-15 के 5,543 करोड़ के विरुद्ध बढ़कर 8,159 करोड़ पर पहुंच गया।

- 2015-16 के दौरान 49 अवसरों पर आकस्मिक निधि से 164.52 करोड़ रुपये की अग्रिम निकासी ऐसे कार्यो के लिए की गई जो न तो अप्रत्याशित थे और न आकस्मिक।

- वित्तीय वर्ष 2014-15 में सहायता अनुदान के रूप में मिली राशि के विरुद्ध 22,325.68 करोड़ रुपये के उपयोगिता प्रमाण पत्र मार्च-16 तक बकाया रहे।