-इलाहाबाद हाई कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस कर रहे लोगों को अवेयर

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PRAYAGRAJ: 'कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों,' ये लाइनें इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस रहे सुरेन्द्र सिंह के संकल्प पर सटीक बैठती हैं. अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के दम पर उन्होंने अपने घर के पास स्थित पार्क का ऐसा कायाकल्प कर डाला कि हर कोई उनके इस जुनून का मुरीद हो गया.

कभी था अराजक तत्वों का अड्डा

जस्टिस सुरेन्द्र सिंह बताते हैं कि उनके पिताजी ने पार्क को देखते हुए ही न्यू मम्फोर्डगंज कॉलोनी में प्लॉट खरीदा था. पार्क कब अराजक तत्वों का अड्डा बन गया, किसी ने कभी ध्यान ही नहीं दिया. स्थिति इतनी भयावह हो गई कि चारों तरफ कूड़े का अंबार लगा रहता था. स्थिति यह हो गई कि लोग रात में घरों की खिड़कियां भी बंद रखने लगे थे.

2010 में लिया संकल्प

यह सब देख उन्होंने 2010 में पार्क के नए स्वरूप का संकल्प लिया और उसे पूरा करने में जुट गए. पहले तत्कालीन एडीए के अधिकारियों को बुलाकर उनसे पार्क डेवलप करने की बात कही. पर अधिकारियों ने हाथ खड़े कर दिए. इसके बाद उन्होंने पार्क डॉप्ट करने की बात कही, जिस पर अधिकारी तैयार हो गए. इसके बाद जस्टिस सुरेन्द्र सिंह ने अपने कजन ब्रदर के साथ मिलकर प्लान बनाया.

नहीं ली किसी से आर्थिक मदद

पार्क के सौंदर्यीकरण के लिए जस्टिस सुरेन्द्र सिंह ने किसी से भी आर्थिक मदद नहीं ली. सबसे पहले रिकॉर्ड से पार्क का नाम निकलवाया और शिवाजी पार्क के नाम बड़ा बोर्ड लगवाया. इसके बाद वॉल बाउंड्री को ठीक कराने में जुट गए. नए पेड़ लगाए और पेड़ों की रक्षा के लिए उन्होंने ट्री गार्ड की व्यवस्था की.

खेल से लेकर योग तक की व्यवस्था

जस्टिस सुरेन्द्र सिंह ने पार्क को चार हिस्सों में डिवाइड कराया. एक हिस्से में बेहतर घास तैयार कराई. बच्चों के खेलने के लिए एक हिस्सा और ओपेन जिम वगैरह भी बनवाया. किनारे-किनारे उन्होंने चितवन और अशोक के पेड़ खुद लगाए. साथ ही अपने वर्क में इवनिंग वॉकर्स को भी जोड़ा. उन्होंने बताया कि उनका संकल्प है कि वह हर साल कम से कम 50 से 100 पौधे लगाए. इसके लिए उन्होंने कौशांबी स्थित पैतृक गांव की जमीन का उपयोग शुरू कर दिया है.

कई लोग ले रहे प्रेरणा

जस्टिस सुरेन्द्र सिंह बताते हैं कि पार्क का कायाकल्प होने के बाद कई लोगों ने अपने क्षेत्र के बेकार पड़े पार्क को सजाने के लिए संपर्क किया. वह आर्थिक और सामाजिक रूप से सभी लोगों की मदद करते हैं.

बॉक्स

किसी की परवाह नहीं

वह बताते हैं कि पीठ पीछे कुछ लोग कहते थे कि जज साहब पागल हो गए हैं. लेकिन इन बातों से उन्हें फर्क नहीं पड़ता था. शुरू में उन्होंने ऐसे पेड़ का सेलेक्शन किया, जिसमें कम पानी की जरूरत हो और वह फूल व छाया देने लायक हो. कनस्टर रखकर डस्टबिन के रूप में प्रयोग करने के लिए लोगों को जागरूक किया. हाईकोर्ट के साथी जजेज को भी बुलाकर पौधे लगवाए. कमिश्नर राजन शुक्ला की मदद से वॉकिंग ट्रैक तैयार कराया.