लंदन में सऊदी दूतावास द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि देश की ओलंपिक कमेटी इस बात का फैसला करेगी कि कौन-सी महिला खिलाड़ी ओलंपिक के लिए क्वालिफाई कर सकती है। इस फैसले से हाल के उन अफवाहों को विराम मिलेगा जिसमें कहा जा रहा था कि लिंग भेद के आधार पर पूरी सऊदी टीम को अयोग्य करार दे दिया जा सकता है।

सऊदी अरब के कई धार्मिक परंपरावादी आज भी महिलाओं के खेल में हिस्सा लेने का विरोध करते हैं। देश में खेलों में महिलाओं की हिस्सेदारी की कोई सार्वजनिक परंपरा नहीं रही है.  सऊदी अधिकारियों का कहना है कि ओलंपिक खेल अब कुछ ही हफ्ते दूर हैं और ऐसे में केवल एक महिला खिलाड़ी शो जंपर डाल्मा रूश्दी ही ऐसी है जो ओलंपिक के स्तर की है।

लेकिन उन्होंने ये भी कहा कि कुछ और खिलाड़ी भी हो सकती हैं जो ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व कर सकती हैं लेकिन उन्हें देश की परंपरा के अनुकूल कपड़े पहनने होंगे। इसका मतलब ये है कि खिलाड़ियों को ढीले-ढाले कपड़े पहनने होंगे और चेहरे पर हिजाब लगाना होगा जिससे बाल ढके रहें लेकिन चेहरा खुला रह सके।

बड़ा कदम

इस रेगिस्तानी मुल्क में महिलाओं को ओलंपिक में भाग लेने की अनुमति देना एक बड़ा कदम है। देश में महिलाओं की किसी भी सार्वजनिक भूमिका का तगड़ा विरोध होता आया है लेकिन ओलंपिक में भागीदारी के फैसले ने परंपरागत मान्यताओं को बदल दिया है।

अभी अप्रैल महीने तक ऐसे संकेत मिल रहे थे कि सऊदी अरब के शासक धार्मिक परंपरावादियों का पक्ष स्वीकार करते हुए महिलाओं को खेल में हिस्सा लेने की अनुमति नहीं देंगे। लेकिन पिछले छह हफ्तों में सुल्तान अब्दुल्ला की अध्यक्षता में परोक्ष रूप से इस मुद्दे पर अच्छी-खासी बीतचीत हुई है। सऊदी सुल्तान लंबे समय से समाज में महिलाओं की सक्रिय भागीदारी के पक्षधर रहे हैं।

कुशल सुधार

जेद्दा में अधिकारियों का कहना है कि मध्य जून में सुल्तान अब्दुल्ला, युवराज, विदेश मंत्री और धार्मिक नेताओं के बीच इस बात पर सहमति बन गई थी कि महिलाओं के खेल में हिस्सा लेने पर लगे प्रतिबंध को हटा लिया जाना चाहिए। इस संबंध में सिर्फ घोषणा होनी बाकी थी लेकिन उसे युवराज नयेफ के आकस्मिक निधन की वजह टाल दिया गया।

एक वरिष्ठ सऊदी अधिकारी ने बीबीसी को बताया कि, ''ये बेहद संवेदनशील मुद्दा है। सुल्तान अब्दुल्ला बहुत कुशलता से संतुलन बनाते हुए सुधार की शुरुआत करना चाहते हैं। जैसे कि पहले उन्होंने शुरा (सलाहकार) परिषद में महिलाओं की भागीदारी की अनुमति दे दी ताकि ओलंपिक से जुड़ा फैसला सुधार का ही हिस्सा लगे.''

अधिकारी ये स्वीकार करते हैं कि अगर महिलाओं को ओलंपिक में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जाती तो उससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि खराब होती। ऐसा पहली बार नहीं है कि सऊदी शासक ने घरेलू विरोध के बावजूद ऐसे विवादास्पद सुधार का समर्थन किया है। 1960 में सुल्तान फैसल ने देश में टेलिविजन की शुरुआत की थी.वो लड़कियों की शिक्षा के पक्षधर थे, हालांकि बाद में उनकी हत्या कर दी गई थी। आज हालात ये हैं कि सऊदी अरब में पुरुषों से ज्यादा महिलाओं के पास स्नातक की डिग्री है।

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