-नेपाल ने 90 परसेंट हानिकारक मेडिसिन हटाई तो एनडेंजर्ड स्पेसीज वल्चर को बचाया

देहरादून, एनडेंजर्ड स्पेसीज में शामिल वल्चर (गिद्धद्ध) की मौत का रेशियो में लगातार हो रही वृद्धि की सबसे बड़ी वजह हाईटेंशन बिजली की लाइनें व टॉसिक एलीमेंट्स (कैमिलकलल) हैं. जिसके कारण विलुप्त प्रजाति में शामिल हो चुके वल्चर के अस्तित्व के अस्तित्व पर खतरा बना हुआ है. यह बात साइंटिस्ट की रिसर्च में सामने आया है. दावा किया जा रहा है कि आगामी दिनों पर इस पर कदम न उठाए गए तो वल्चर का नामोनिशन भी मिट सकता है. लेकिन, प्रकृति प्रेमियों के लिए खुशी की खबर यह भी है कि साइंटिस्ट्स ने जब इस पर पहल की तो वल्चर के मौत के रेशियो में सुधार देखने को मिला. साइंटिस्ट़्स ने वल्चर को बचाने के लिए अब पॉवर कार्पोरेशन, डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन, एमिनल हैजबेंड्री डिपार्टमेंट से हेल्प मांगी है और इन डिपार्टमेंट्स ने फुल सपोर्ट देने का भी भरोसा दिया है. साइंटिस्ट वल्चर को बचाने के लिए पब्लिक अवेयरनेस पर भी जाेर दे रहे हैं.

वल्चर बचाने को जुटे साइंटिस्ट

नेचर साइकिल का प्रमुख अंग माने जाने वाले वल्चर की लगातार घट रही संख्या को देखते हुए उसे विलुप्त प्रजाति में शामिल किया जा चुका है और देश के कुछ राज्यों में इसको बचाने के लिए ब्रीडिंग सेंटर्स तक संचालित हो रहे हैं. खास बात यह है कि ब्रीडिंग सेंटर्स में पड़ोसी मुल्क नेपाल भी काफी आगे है. वल्चर की संख्या में लगातार आ रहे डाउनफाल को लेकर व‌र्ल्ड अर्थ डे पर दून यूनिवर्सिटी दून विवि, हिमालयन इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबल एनवायरन्मेंट एंड रिसर्च सोसायटी, उत्तराखंड फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के अधिकारियों व तमाम राज्यों के साइंटिस्ट्स के बीच वल्चर को बचाने पर मंथन हुआ. वर्कशाप का टॉपिक था 'भारत-नेपाल सीमापार गिद्धों के संरक्षण पर हितध्ारकों की वर्कशाप'.

और गहरा जाएगा संकट

स्टेट बायोडायवर्सिटी के अध्यक्ष व पीसीसीएफ डा. धनंजय मोहन ने कहा कि एनडेंजर्ड वल्चर का संरक्षण एनवायरन्मेंट के लिए बहुत जरूरी है. लेकिन इसके लिए देश के भीतर व सीमापार से सभी हितधारकों को एक मंच पर आना होगा. नेपाल सरकार से प्रतिनिधित्व करने वाले फॉरेस्ट मिनिस्ट्री के डिप्टी सेक्रेटरी हरिभद्र आचार्य व बर्ड कंजर्वेशन नेपाल के कृष्ण प्रसाद भुसाल का कहना था कि वल्चर सहित दूसरे वाइल्डलाइन एनिमल्स सीमाओं में बंधे नहीं होते हैं, ऐसे में दोनों देशों की जिम्मेदारी होती है कि आपस में कॉर्डिनेशन बने. प्रो. बीसी चौधरी ने कहा कि उत्तराखंड में एनडेंजर्ड वल्चर की संख्या में ग्रोथ देखने को मिली है. लेकिन मरे हुए एनिमल्स की डंपिंग हाईटेंशन बिजली के लाइनों के नीचे व आस-पास होने के कारण सबसे ज्यादा नुकसान वल्चर को हो रहा है. करंट लगने से उनकी मौत हो रही है. हाल ऐसा ही रहा तो आने वाले दिनों में वल्चर पर संकट और गहरा सकता है.

हानिकारक मेडिसिन भी खतरा

एनिमल हैसबेंड्री के एडिशन डायरेक्टर डा. अशोक कुमार व सीनियर वैटनरी डाक्टरों ने बताया कि वल्चर की लगातार हो रही मौत के पीछे टॉकसिक एलीमेंट्स यानि हानिकारक मेडिसिन जिम्मेदार हैं, जिनका प्रयोग ज्यादा हो रहा है. गवर्नमेंट को इस पर कंट्रोल करना चाहिए. मृत एनिमल निस्तारण कमेटी हरिद्वार व दून के मेंबर्स में हाजी इकराम व राजेश कुमार ने समस्याएं उठाई. कहा, डिस्ट्रिक्ट एडमिन को पशुओं के मरने के बाद के लिए जरूरत पड़ने वाली जगह के लिए व्यवस्था करनी चाहिए. जिसके आस-पास हाईटेंशन बिजली के तार न हों. राष्ट्रीय सुशासन केंद्र मसूरी के डा. अनिल मिश्रा ने हर स्टेट में डिस्ट्रिक्ट लेवल पर अधिकारियों की ट्रेनिंग जरूरी है. इस दौरान बांबे नुचरल हिस्ट्री सोसायटी, नेशनल ट्रस्ट फॉर नेचर कंजर्वेशन नेपाल, नेशनल सेंटर फॉर गुड गवर्नेस मसूरी, यूपीसीएल, स्टेट ड्रग कंट्रोलर, बायोडायबर्सिटी के मेंबर्स, जेडएसआई, दून विवि के तमाम साइंटिस्ट, स्टूडेंट्स ने पार्टिसिपेट किया.

नेपाल को मिली सक्सेस

दून विवि के शोधकर्ता खीमानंद बलोदी ने कहा कि नेपाल व भारत में वल्चर की 9 स्पेसीज एक समान हैं. उत्तराखंड से नेपाल व नेपाल से उत्तराखंड वल्चर का मूवमेंट होता है. नेपाल ने 90 परसेंट तक हानिकारक मेडिसिन जैसे डाइक्लोफेनिक, एक्सलोफेनिक आदि हटा दी हैं तो नेपाल में वल्चर को बचाने में सक्सेस मिली है.

प्रमुख बिन्दु

-साइंटिस्ट के सर्वे में खुलासा वल्चर को हाईटेंशन व मेडिसीन से खतरा.

-नेपाल ने कॉलर आईडी से पता लगाया, नेपाल का वल्चर उत्तराखंड से हिमाचल व जेएंडके तक पहुंचा.

-उत्तराखंड के वल्चर का भी रूट नेपाल तक.

-वल्चर के 9 स्पेसीज, जिसमें 4 क्रिटिकल एनडेंजर्ड

-इसमें एक एनडेंजर्ड, 3 नियर थ्रिटेंड और एक लिस्ट कनसर्न में शामिल.

-सर्वे में खुलासा, वल्चर 1990 से 2010 तक बेहद कम नजर आए.

-लेकिन गत 5 वर्षो में यानि 2018 तक 30 व्हाइट वल्चर की संख्या दिखी.

-यह सर्वे दून, हरिद्वार व उधमसिंह नगर तक नजर आई.

-2014 से 2018 तक पांच सालों 178 वल्चर मरे मिले.

-एनिमल्स के लिए यूज होने वाली मेडिसीन बन रही है वल्चर का दूसरा सबसे बड़ा खतरा.

-जिससे वल्चर की किडनी हो जाती है खराब.

-उत्तराखंड में एनिमल्स के लिए यूज होने वाली मेडिसीन पर हो प्रतिबंध.

-अवैध तरीके से बाजारों में बिक रही हैं ऐसी मेडिसिन.