भगवान शिव का श्रृंगार, विवाह, तपस्या और उनके गण - सब अद्वितीय हैं। उनके विवाह, तपस्या और भक्तों पर कृपा की कई कथाएं प्रचलित हैं। ये स्थल तीर्थ के रूप में जाने और पूजे जाते हैं। ऐसी प्रबल मान्यता है कि भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हिमालय के मंदाकिनी इलाके में त्रियुगीनारायण गांव में संपन्न हुआ था। यहां एक पवित्र अग्नि भी जलती रहती है। इसके बारे में कहा जाता है कि यह त्रेतायुग से लगातार जल रही है और इसी के सामने भगवान शिव ने मां पार्वती के साथ फेरे लिए थे।

गौरी कुंड, जहां पार्वती ने किया कठोर तप

सावन विशेष: इस गांव में हुआ था शिव-पार्वती का विवाह,जहां आज भी जल रही ज्योति
पार्वती ने कठोर तपस्या के बाद शिव को पति रूप में पाया था। उन्होंने जिस स्थान पर तपस्या की उसे गौरी कुंड कहा जाता है, जो उन्हीं के एक नाम पर है। हर साल यहां दूर-दूर से अनेक श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं और स्वयं का जीवन धन्य समझते हैं।

रूद्रप्रयाग जिले में है त्रियुगीनारायण गांव
शिव-पार्वती के विवाह के समय भाई की सभी रस्में भगवान विष्णु ने और पंडित की रस्में ब्रह्माजी ने पूरी की थीं। विवाह में बहुत महान तपस्वी, ऋषि-महर्षि भी शामिल हुए थे। यहां पास ही तीन कुंड बने हैं जो ब्रह्मा, विष्णु और शिवजी के नाम पर हैं। विवाह समारोह में शरीक होने से पहले तीनों ने इन कुंडों के पवित्र जल से स्नान किया था। यूं तो शिव का नाम ही अत्यंत पवित्र है लेकिन उस स्थान की पवित्रता तो निर्विवाद है जहां स्वयं शिव और पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। यह गांव उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले में स्थित है। यह धार्मिक पर्यटन के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।

मंदिर में है शिव-पार्वती विवाह का वेदी स्थल

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कहा जाता है कि इस मंदिर की स्थापना शंकराचार्य ने की थी। यहां भगवान विष्णु वामन रूप में पूजे जाते हैं। मंदिर में अखंड दीप जलता रहता है और इसी के पास शिव-पार्वती की प्रतिमाएं हैं। मंदिर के आंगन में एक शिला लगी हुई है। कहा जाता है कि यह शिव-पार्वती विवाह का वेदी स्थल है। मंदिर में स्थित हवन कुंड की अग्नि में घृत, जौ, तिल और काष्ठ अर्पित किया जाता है।

गौरी कुंड का भस्म है पवित्र
मान्यता है कि भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए त्रियुगीनारायण मंदिर से आगे गौरी कुंड कहे जाने वाले स्थान में माता पार्वती ने तपस्या की थी, जिसके बाद भगवान शिव ने इसी मंदिर में माता पार्वती से विवाह किया था। यहां की भस्म बहुत पवित्र मानी जाती है और इससे तिलक किया जाता है। हर साल सितंबर में बावन द्वादशी के दिन यहां पर मेले का आयोजन किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि भगवान केदारनाथ की यात्रा से पहले यहां दर्शन करने से प्रभु प्रसन्न होते हैं।

-ज्योतिषाचार्य पंडित श्रीपति त्रिपाठी

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