उपवास और प्रार्थना आपस में संबंधित हैं। लगभग हर धर्म और दुनिया की हर परंपरा में उपवास और प्रार्थना को एक साथ जोड़ा गया है। आपके उपवास करने से कोई भगवान प्रसन्न नहीं होते, उससे केवल हम अपने शरीर को विषाक्त तत्वों से मुक्त कर रहे हैं। जब शरीर विषाक्त पदार्थों से मुक्त होकर शुद्ध हो जाता है, तो विचार सकारात्मक हो जाते हैं। जब शरीर में बहुत सारे विषाक्त पदार्थ होते हैं, और पैनक्रिया, यकृत और आंत सभी भरे होते हैं, तो आपके विचार भी नकारात्मक और अस्पष्ट होते हैं। अत: शरीर पर शुद्ध प्रभाव डालने के लिए उपवास किया जाता है, न कि भगवान को प्रसन्न करने के लिए।

हम अपने यकृत, पेट और पैनक्रिया से बहुत अधिक काम कराते हैं। यदि अंगों के लिए श्रम अदालत होती, तो ये सभी अंग उस अदालत में आपके खिलाफ शिकायत कर देते। हम उन्हें बिल्कुल आराम करने की अनुमति नहीं देते हैं। हम रात तक पूरे दिन खाते-पीते हैं, और अपनी पाचन प्रणाली से अत्यधिक काम कराते हैं। उन्हें कुछ आराम की जरूरत है और इसके लिए आपको उपवास करने की आवश्यकता है। 

आप अपनी स्कूल की कक्षाओं के बारे में सोचो। आप किस अवधि में बहुत सतर्क महसूस करते हैं? पहले कुछ सत्र, या सिर्फ दोपहर के भोजन से पहले। यदि आपने भारी नाश्ता किया हो तो पहला सत्र भी उबाऊ हो सकता है। और दोपहर के भोजन के ठीक बाद आप सबसे भारी और सुस्त महसूस करते हैं! 

ऐसे न करें उपवास

उपवास के कुछ नियम भी हैं, लेकिन लोग इन नियमों का भी पालन नहीं करते हैं। लोग सोचते हैं कि उपवास का मतलब है कि वे कुछ चीजें खा सकते हैं और कुछ चीजें नहीं खा सकते। आप बहुत सारे मेवे और फल खा सकते हैं, लेकिन पका हुआ भोजन, यानी चावल-रोटी नहीं खाते हैं। यह उपवास नहीं है। कुछ लोग उबले हुए आलू और मिठाई खा लेते हैं और कहते हैं कि वे उपवास कर रहे हैं। वे खुद को बेवकूफ बना रहे हैं। कभी-कभी, कुछ लोग जो पूरे दिन उपवास करना चाहते हैं, सूर्योदय से पहले उठते हैं और खुद को भोजन से ठूंसते हैं। फिर वे पूरे दिन खाली पेट रहते हैं और जैसे ही सूर्यास्त होता है, फिर से वे खुद को खाने से भर लेते हैं। यह उपवास का बिल्कुल अच्छा तरीका नहीं है।

उपवास और प्रार्थना आपस में संबंधित हैं। लगभग हर धर्म और दुनिया की हर परंपरा में उपवास और प्रार्थना को एक साथ जोड़ा गया है। आपके उपवास करने से कोई भगवान प्रसन्न नहीं होते, उससे केवल हम अपने शरीर को विषाक्त तत्वों से मुक्त कर रहे हैं। जब शरीर विषाक्त पदार्थों से मुक्त होकर शुद्ध हो जाता है, तो विचार सकारात्मक हो जाते हैं। जब शरीर में बहुत सारे विषाक्त पदार्थ होते हैं, और पैनक्रिया, यकृत और आंत सभी भरे होते हैं, तो आपके विचार भी नकारात्मक और अस्पष्ट होते हैं। अत: शरीर पर शुद्ध प्रभाव डालने के लिए उपवास किया जाता है, न कि भगवान को प्रसन्न करने के लिए।

हम अपने यकृत, पेट और पैनक्रिया से बहुत अधिक काम कराते हैं। यदि अंगों के लिए श्रम अदालत होती, तो ये सभी अंग उस अदालत में आपके खिलाफ शिकायत कर देते। हम उन्हें बिल्कुल आराम करने की अनुमति नहीं देते हैं। हम रात तक पूरे दिन खाते-पीते हैं, और अपनी पाचन प्रणाली से अत्यधिक काम कराते हैं। उन्हें कुछ आराम की जरूरत है और इसके लिए आपको उपवास करने की आवश्यकता है। 

आप अपनी स्कूल की कक्षाओं के बारे में सोचो। आप किस अवधि में बहुत सतर्क महसूस करते हैं? पहले कुछ सत्र, या सिर्फ दोपहर के भोजन से पहले। यदि आपने भारी नाश्ता किया हो तो पहला सत्र भी उबाऊ हो सकता है। और दोपहर के भोजन के ठीक बाद आप सबसे भारी और सुस्त महसूस करते हैं! 

ऐसे न करें उपवास

उपवास के कुछ नियम भी हैं, लेकिन लोग इन नियमों का भी पालन नहीं करते हैं। लोग सोचते हैं कि उपवास का मतलब है कि वे कुछ चीजें खा सकते हैं और कुछ चीजें नहीं खा सकते। आप बहुत सारे मेवे और फल खा सकते हैं, लेकिन पका हुआ भोजन, यानी चावल-रोटी नहीं खाते हैं। यह उपवास नहीं है। कुछ लोग उबले हुए आलू और मिठाई खा लेते हैं और कहते हैं कि वे उपवास कर रहे हैं। वे खुद को बेवकूफ बना रहे हैं। कभी-कभी, कुछ लोग जो पूरे दिन उपवास करना चाहते हैं, सूर्योदय से पहले उठते हैं और खुद को भोजन से ठूंसते हैं। फिर वे पूरे दिन खाली पेट रहते हैं और जैसे ही सूर्यास्त होता है, फिर से वे खुद को खाने से भर लेते हैं। यह उपवास का बिल्कुल अच्छा तरीका नहीं है।

वैज्ञानिक तरीके से रखें उपवास,जानें ऐसा करने से क्या होते हैं लाभ?

वैज्ञानिक रूप से हो उपवास

उपवास वैज्ञानिक रूप से होना चाहिए। जूस और पानी के साथ कुछ फल लेने चाहिए ताकि शरीर में एंजाइम उत्पन्न हो जाएं। इससे अपचा हुआ भोजन पच जाता है। उपवास में बहुत देर रात में नहीं खाना चाहिए क्योंकि उसे पचाने के लिए पाचन अग्नि उस समय नहीं होती है। लोग अवैज्ञानिक तरीके से उपवास करते हैं। उपवास तर्कसंगत होना चाहिए। यहूदी, ईसाई, मुस्लिम, हिंदू -लगभग हर परंपरा के लोग इस तरह के गलत उपवास करते हैं। उन सभी को उपवास के वैज्ञानिक तरीके को जानना चाहिए। शास्त्रों में उपवास के आयुर्वेदिक तरीके का स्पष्ट उल्लेख किया गया है। थोड़े से फल, रस, पानी और नींबू के साथ उपवास करना उपयुक्त है। यदि शरीर की क्षमता हो तो केवल पानी पर भी एक या दो दिन उपवास किया जा सकता है। निर्जला एकादशी का व्रत नींबू पानी से ही खत्म किया जाना चाहिए। इसके बारे में हमें लोगों को शिक्षित करने की आवश्यकता है. शाम को जब पूरे दिन के व्रत के बाद खाएं, तो हमेशा सलाद, फल और कुछ हल्का खाना लेना चाहिए; जिससे पाचन प्रणाली को आराम मिले। 

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कब करना चाहिए उपवास?

जरूरी नहीं है कि जब कोई धार्मिक मौका हो तो ही आप व्रत करें। शरीर की अंदरूनी गंदगी को साफ करने और पाचन क्रिया को बेहतर बनाने के लिए आप कभी भी अपनी सुविधानुसार व्रत कर सकते हैं। व्रत करने से हमारा दिमाग भी स्वस्थ रहता है। इससे डिप्रेशन और मस्तष्कि से जुड़ी कई समस्याओं में भी फायदा होता है। यही कारण है कि हमारे शास्त्रों में उपवास को धर्म से जोड़ा गया है। यदि आप भरे पेट पर ध्यान करते हैं, तो आप सो जाएंगे। यही कारण है कि उपवास पर जोर दिया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जब आप उपवास कर रहे होते हैं, तो अपनी प्रार्थनाएं प्रभावकारी ढंग से बोल सकते हैं क्योंकि तब आपका शरीर शुद्ध होता है और आपके मस्तिष्क को पर्याप्त विश्राम मिला होता है। जब शरीर शुद्ध होता है, तो उस समय आपकी प्रार्थना प्रमाणिक और गहरी हो जाती है। आपका पेट खाली होने पर आपका ध्यान सबसे अच्छा होता है।

-श्रीश्री रविशंकर 


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