मरकर भी नहीं भुला सकीं
सोलो प्ले की शुरुआत शमशान में पड़ी महिला कादम्बिनी की लाश के साथ होती है। जो रानीहाट के जमींदार की विधवा बहू की होती है। लाश को बिना जलाए ही घर वाले छोड़कर चले जाते हैं। अचानक लाश हिलने लगती है और पता लगता है कि जो लाश दफनाई थी वह मृत नहीं जीवित है। कादम्बिनी कहती है कि 'मैं मर कर जीवित हो गईÓ जिसे जीते जी कोई सुख नसीब नहीं हुआ और जो मरकर भी सदियों के डर को दूर नहीं कर सकी। लेकिन कादम्बिनी को कोई जीवित मानने को तैयार नहीं होता। प्ले आगे बढ़ता है और विधवा को खुद को प्ले के लास्ट में मरकर यह साबित करना पड़ता है कि वह जिंदा थी। इस मौके पर डॉ। बृजेश्वर सिंह, डॉ। गरिमा सिंह, शिखा सिंह, नवीन कालरा मौजूद रहे।