श्री श्री रविशंकर। होली रंगों का त्योहार है। जिस प्रकार प्रकृति रंगों से भरी हुई है, उसी प्रकार हमारी भावनाएं भी विभिन्न रंगों से जुड़ी हुई हैं। प्रत्येक व्यक्ति रंगों का एक फव्वारा है, जो रंग बदलता रहता है। आपकी भावनाएं अग्नि की तरह आपको जलाती हैं। जब यही भावनाएं रंगों का फव्वारा बन जाती हैं, तो इससे आपके जीवन में आकर्षण उत्पन्न हो जाता है। विभिन्न रंगभरे दृष्टांत और कहानियों से पुराण भरे हुए हैं। इनमें होली से जुड़ी हुई एक कहानी है। एक असुर राजा हिरण्यकशिपु चाहता था कि प्रत्येक व्यक्ति उसकी पूजा करे। उसका बेटा प्रह्लाद भगवान नारायण का भक्त था, जिन्हें राजा अपना कट्टर शत्रु मानता था। इससे राजा बहुत क्रोधित हुआ और वह चाहता था कि उसकी बहन होलिका उसे प्रह्लाद से छुटकारा दिला दे। होलिका को अग्नि सहन करने की शक्ति प्राप्त थी और वह प्रह्लाद को गोदी में लेकर जलती हुई चिता पर बैठ गई। होलिका अग्नि में भस्म हो गई और प्रह्लाद बच गया।हिरण्यकशिपु स्थूल का प्रतीक है, जबकि प्रह्लाद भोलेपन, श्रद्धा एवं परमानंद का प्रतीक है। आत्मा केवल भौतिक जगत के प्रेम तक ही सीमित नहीं है। हिरण्यकशिपु को वह सभी आनंद चाहिए, जो भौतिक जगत से प्राप्त होते हैं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। व्यक्तिगत जीव-आत्मा सदैव भौतिक जगत के बंधन में नहीं रह सकती है।

holi 2019: इसमें बसते हैं 'जीवंतता और आनंद के रंग': श्री श्री रविशंकर

होलिका इसका प्रतीक है

अंतत: जीवात्मा नारायण परमात्मा की ओर स्वाभाविक रूप से जाती ही है।होलिका भूतकाल के बोझ का प्रतीक है, जो प्रहलाद के भोलेपन को समाप्त करना चाहती थी। प्रह्लाद, जो नारायण भक्ति में गहराई से डूबा हुआ था, अपने सभी पूर्व संस्कारों को भस्म करने में सफल रहा और उसमें नए रंगों के साथ आनंद का फव्वारा फूट पड़ा। उसका जीवन एक उत्सव बन गया। भूतकाल के भस्म होते ही आपके जीवन में एक नई शुरुआत हो जाती है। आपकी भावनाएं अग्नि की तरह आपको जलाती हैं। जब ये आनंद का फव्वारा बन जाती हैं, तो इससे जीवन में आकर्षण उत्पन्न हो जाता है। अज्ञान में भावनाएं परेशान करती हैं और ज्ञान में वही भावनाएं जीवन में रंग भर देती हैं।प्रत्येक भावना किसी एक रंग से जुड़ी हुई है। लाल रंग क्रोध से, हरा रंग जलन से, पीला रंग उत्साह और प्रसन्नता से, गुलाबी रंग प्रेम से, नीला रंग विशालता से, सफेद रंग शांति से, गेरुआ रंग त्याग से और बैंगनी रंग ज्ञान से जुड़ा हुआ है।होली की तरह जीवन भी रंगों से भरा हुआ होना चाहिए, उदासीन नहीं। जब प्रत्येक रंग स्पष्टता से दिखाई देता है, तभी सारे रंग दिखाई देते हैं। जब सारे रंग घुल-मिल जाते हैं, तो सब कुछ काले रंग में बदल जाता है। इसी प्रकार हम जीवन में बहुत सारी भूमिकाएं निभाते हैं। प्रत्येक भूमिका और भावना को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने की आवश्यकता है।

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जीवन में भूमिकाएं मिलाने पर होती हैं गलतियां

भावनात्मक भ्रम व समस्याएं उत्पन्न करता है। यदि आप एक पिता हैं, तो आपको पिता की तरह व्यवहार करना चाहिए। आप अपने ऑफिस में एक पिता की तरह व्यवहार नहीं कर सकते हैं। जब आप अपने जीवन में भूमिकाओं को मिला देते हैं, तो आप गलतियां करना आरंभ कर देते हैं। आप जीवन में जो भी भूमिका निभाएं, उसे पूर्णता के साथ निभाएं। विविधता में सामंजस्य आपके जीवन को जीवंत, आनंद से भरपूर और अधिक रंगीन बनाता है। आप जीवन में जिस आनंद का अनुभव करते हैं, वह आपकी आत्मा की गहराई से ही आता है। यह तब संभव है, जब आप उन बातों को छोड़ देते हैं, जिन्हें आप पकड़कर बैठे हुए हैं और स्थिर एवं केंद्रित हो जाते हैं। यही ध्यान है। ध्यान कोई कार्य नहीं है, यह कुछ भी न करने की कला है! ध्यान में किया गया विश्राम उस विश्राम से अधिक गहरा होता है, जो आपको गहरी नींद में मिलता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि ध्यान में आप सभी इच्छाओं से परे चले जाते हैं। यह मस्तिष्क को ठंडक प्रदान करता है और संपूर्ण शरीर-मन तंत्र की मरम्मत करता है।उत्सव मनाना आत्मा का स्वभाव है और जो उत्सव मौन में मनाया जाता है, वही सच्चा उत्सव है। यदि उत्सव के साथ पवित्रता को जोड़ दिया जाए, तो वह उत्सव संपूर्ण बन जाता है।

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चारों ओर ईश्वर की उपस्थिति महसूस करनी चाहिए

केवल शरीर और मन ही नहीं बल्कि आत्मा भी उत्सव मनाती है।उत्सव मनाते समय मन प्राय: ईश्वर को भूल जाता है। हमें अपने चारों ओर ईश्वर की उपस्थिति एवं ईश्वरीय प्रकाश का अनुभव करना चाहिए। आपके भीतर उस शक्ति का अनुभव करने की इच्छा होनी चाहिए, जिसके कारण सारा संसार चलता है। इसके लिए आपको हृदय के साथ प्रार्थना करनी चाहिए। यदि आपका मन कहीं और है, तो यह प्रार्थना नहीं है।अपने जीवन की गुणवत्ता को सुधारने का एक महत्वपूर्ण साधन है प्रार्थना। जब आप जीवन में अवरोधों का सामना कर रहे हों, तो वहां प्रार्थनाएं चमत्कार कर सकती हैं। प्रार्थना दो स्थितियों में होती है या इन दोनों स्थितियों के मेल में होती है। जब आप बहुत कृतज्ञ महसूस करते हैं या जब आप बिल्कुल असहाय महसूस करते हैं। यदि आप कृतज्ञ नहीं हैं और आप प्रार्थना कर रहे हैं, तो आप दुखी हो जाएंगे। यह महसूस करना कि 'मैं सौभाग्यशाली हूं' , आपको अपनी असफलताओं से उबरने में आपकी सहायता करता है। जब एक बार आप यह मान लेते हैं कि आप सौभाग्यशाली हैं, तो सारी शिकायतें, असंतोष एवं असुरक्षा की भावनाएं समाप्त हो जाती हैं। आप जो कर सकते हैं, वह आप करते हैं। जो आप नहीं कर सकते हैं, उसके लिए आप प्रार्थना करते हैं! आप एक आजाद चिडि़या की तरह हैं। आप पूर्णरूप से मुक्त हैं। ऐसा महसूस करें कि आप एक चिडि़या की तरह उड़ रहे हैं। इसे आपको अपने भीतर महसूस करना होगा। यदि आप स्वयं को बंधन में बंधा हुआ मानते हैं, तो आप बंधन में ही रहेंगे। अभी मुक्त हो जाएं। बैठ जाएं और संतोषी बनें। इस जीवन में हमने बहुत कुछ पाया है, ऐसा सोचें। हम इस बात को तभी समझ सकते हैं, जब हम थोड़ा समय अपने लिए निकालेंगे और आत्मा का जीर्णोद्धार करेंगे।

मुठ्ठियों को खोलने से डरें मत

आप अपनी मुट्ठियों को खोलने से डरते हैं। आपके पास ऐसा क्या है, जिसके लिए आपने अपनी मुट्ठियों को बंद किया हुआ है? आपके पास कुछ भी नहीं है। अपनी मुट्ठियों को खोलें और फिर आप देखेंगे कि सारा आकाश आपकी हथेलियों में है। आध्यात्मिकता कोई धार्मिक अनुष्ठान या कोई कार्य नहीं है। यह अस्तित्व की सबसे सुखद एवं उत्थान की अवस्था है। इस अवस्था में आप देख पाते हैं कि यह सारा संसार एक आत्मा या चेतना है। इस अवस्था में उत्सव सहज ही होता है और जीवन रंगों से भर जाता है। होली के दिन हमारे जीवन को भी उत्साह और प्रेम के रंगों से खिल जाना चाहिए। हमारा चेहरा प्रसन्नता से चमकना चाहिए और हमारी आवाज में मधुरता की प्रतिध्वनि होनी चाहिए। जीवन का रंग ऐसा होना चाहिए, जो ईश्वर में गहरी श्रद्धा के कारण उत्पन्न होता है। आप जो करते हैं या आप जो भी देते हैं, प्रकृति उससे कहीं अधिक आपको लौटा देती है। यदि आप दूसरों को दुख देते हैं, तो आपको भी दुख मिलता है।

दूसरों को बांटने पर दोगुना मिलता है

यदि आप खुशी देते हैं, तो आपको भी खुशी मिलती है। यदि आपके पास कुछ है, जिसे आप दूसरों के साथ बांटते हैं, तो वह कई गुना होकर आपको वापस मिलता है।आपके देने के इस स्वभाव में क्या बाधा है? यह लोगों के प्रति आपकी द्वेष की भावना है। पृथ्वी पर सभी प्राणियों की आवश्यकता है। वे इस संसार को और भी अधिक रंगीन बनाते हैं। वे आपमें कुछ विशेष भावनाओं को जाग्रत करते हैं और आप देखिए कि आप किस प्रकार से क्रिया या प्रतिक्रिया करते हैं। आपका लक्ष्य क्या होना चाहिए? उन्हें बताएं। 'जागो! हंसो और मुस्कुराओ।' हमें ऐसा बनना चाहिए कि हम जहां पर भी जाएं, वहां पर प्रेम और प्रसन्नता की सुगंध फैलाएं। घटनाओं या परिस्थितियों की परवाह किए बिना आप स्वयं में स्थिर एवं स्थापित हो जाएं। आप प्रसन्न और परमानंद से परिपूर्ण रहें। यदि हमारे भीतर संतोष है, तो हम न केवल अपनी इच्छाओं को पूर्ण करने में सक्षम हो जाते हैं, बल्कि हमारे द्वारा दूसरों की इच्छाएं भी पूर्ण हो जाती हैं। होली आनंद, उल्लास और खुशी का त्योहार है। जीवन का यह रंग हमें समाज और राष्ट्र के लिए कुछ अच्छा कार्य करने की प्रेरणा देता है।

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