RANCHI: अस्मत के लुटेरों ने बेटियों की आबरू लूटी आबरू लूट हत्या कर दी विरोध में कैंडल जले सैंडल मार्च निकला और न्याय के लिए बेटियां सड़क पर उतर आई। क्या केन्द्र और क्या राज्य सरकार दोनों स्तरों पर बेटियों की सुरक्षा को लेकर सवाल भी उठे। केन्द्र ने पॉक्सो एक्ट में बदलाव के लिए कैबिनेट की मुहर लगवा दी। फिर भी वही सवाल जिन्दा है कि कितनी सुरक्षित हैं हमारी बेटियां? हर पिता, हर अभिभावक आखिर क्यों अपनी बेटियों को लेकर पहले से ज्यादा फिक्रमंद नजर आ रहा है? सकारात्मक सामाजिक सोच के बीच असामाजिक तत्वों की क्यों घुसपैठ हो रही है? सवाल-दर-सवाल पूछे जा रहे हैं, लेकिन जवाबों में सिर्फ एक ही जवाब, जांच की जा रही है। सोमवार को भी अल्बर्ट एक्का चौक पर ऐसी ही निर्भया को इंसाफ दिलाने के लिए मानव श्रृंखला बनाई गई। सिग्नेचर कैंपेन चलाया गया।

लकीर पीट रही पुलिस

बूटी मोड़ में महीनों पूर्व हुई घटना का राज अभी तक खुला नहीं है। अफसाना की मौत ने यह गवाही दे दी कि बेटियां सुरक्षित नहीं हैं। प्रशासन हाइटेक का लबादा ओढ़े सुरक्षा के दावों का डपोरशंख पीट रहा है और बेटियों की अस्मत लूटने वालों का सुराग नहीं ढूंढ पा रहा है। शहर में मोबाइल पैट्रोलिंग कमोबेश हर इलाके में है, सूचना तंत्र है, थानों में पुलिस कर्मियों की फौज है लेकिन उन परिजनों के आंख के आंसू पोंछने वाला नहीं, जिनकी बेटियां अब इस दुनियां में नहीं हैं।

न्याय के लिए रास्ता निहारती नजर

जिनकी बेटियों की अस्मत लुटी फिर उनकी हत्या हुई, उन्हें इंसाफ की आस है। उन परिजनों को कौन बताये कि प्रशासन हमेशा हादसे के बाद जागता है, और फिर जांच की नौटंकी होती है और नये हादसे की सूचना के लिए गहरी नींद में सो जाता है। निर्भया कांड इसका जीता जागता उदाहरण है। हमने निर्भया फंड तो बना दिया लेकिन हम कई निर्भया को न्याय नहीं दिला पा रहे हैं। सवाल ये भी है कि विज्ञापन पर करोड़ों खर्च करने वाली सरकारें बेटियों की सुरक्षा को लेकर बनाए गए कानून का अनुपालन करने में क्यों कतराती हैं। बेटियों की सुरक्षा के लिए बनाई गई ईकाइयों की मॉनिटरिंग क्यों नहीं हो पा रही है? सवाल कई हैं बेशक सरकार के पास जवाब भी कई होंगे, लेकिन राजधानी की निर्भया के परिजन सिर्फ बेटियों की सुरक्षा की गारंटी मांग रहे हैं। बस इतना रहम कर दीजिए और बेटियों को निर्भया होने से बचा लीजिण्।