यूएस की युनिवर्सिटी ऑफ मैरिलैंड के साइंटिस्ट्स ने बैटरी के कांपोनेनट्स चेक किए हैं जो कि कागज के टुकड़े से भी बहुत पतले हैं.

अकसर बैटरीज में लीथियम यूज किया जाता है पर लीथियम की जगह सोडियम का यूज इस बैटरी को ज्यादा इंवायरमेंट फ्रेंडली बनाता है.  

रिसर्चर्स का कहना है कि सोडियम ज्यादा देर तक एनर्जी स्टोर नहीं कर सकता है इसीलिए इसे मोबाइल की बैटरी बनाते वक्त यूज नहीं किया जाता है. लीथियम की लो कॉस्ट और कॉमन मेटीरियल बहुत सारी  एनर्जी को एक बार में स्टोर करने के लिए आइडियल है.

अभी जो बैटरीज बनती हा वो काफी स्टिफ होती है और इलेक्ट्रांस से बनी होती है जिसकी वजह से श्रिंकिंग या स्वेलिंग को बर्दाश्त नहीं कर पाती हैं और फट जाती हैं पर लकड़ी से बनी बैटरी के फाइबर्स इतने फ्लेक्सिबल हैं कि इन्हें लगभग 400 से भी ज्यादा बार चार्ज किया जा सकता है और श्रिंक और स्वेल होने जैसी प्रॉब्लम्स के चांसेज काफी कम हो जाते हैं. इस बैटरी की इस क्वालिटी की वजह से ये बैटरी लांगेस्ट लास्टिंग नैनोबैटरी की कैटगरी में आती है.

मेटिरियल साइंस के असिसटेंट प्रोफोसर ह्यू का कहना है कि इसका आईडिया पेड़ो को देख कर आया. जिस तरह लकड़ी के फाइबर्स मिनिरल रिच वॉटर को स्टोर कर लेते हैं ठीक उसी तरह ये बैटरी लिक्विड इलेक्ट्रोलायेट्स को आसानी से स्टोर कर लेती है जिससे ये बैटरी सिर्फ बैटरी का बेस ही नहीं बल्कि बैटरी का एक्टिव पार्ट बन जाती है.

लीड ऑथर हांग्ली ज्ह्यू और टीम मेम्बर्स ने बताया कि लकड़ी की बैट्री को कई बार चार्ज करने बाद भी वो इंटैक्ट थी बस उस में कुछ रिंकल्स आ गई थीं. कंप्यूटर मॉडल्स देख कर पता चला कि ये रिंकल्स चार्जिंग और रिचार्जिंग की वजह से पड़ते हैं. स्टडी करने पर पता चला कि रिंकल्स मोबाइल को चार्जिंग और रीचार्जिंग के टाइम स्ट्रेस रिलेक्स करने में हेल्प करते हैं जिसकी वजह से बैटरी को कई बार चार्ज किया जा सकता है.