लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज की एक टीम ने नए टिश्यू बनाने के लिए पॉलीमर के साथ मिली हुई कोशिकाओं का निरंतर प्रवाह इस्तेमाल किया.

शोधकर्ताओं का मानना है कि ट्रांसप्लांट के लिए अंग बनाने में दूसरी तकनीकों के मुकाबले इस तकनीक से ज़्यादा बेहतर नतीजे मिल सकते हैं.

इन शोधकर्ताओं ने इस तकनीक का परीक्षण चूहों में खून लाने-ले जाने वाली नसें बनाने में किया.

अभी प्रयोगशालाओं में अंग बनाने के लिए कई विधियों का इस्तेमाल हो रहा है.

'प्रयोगशाला में अंग'

कुछ विधियों में एक कृत्रिम ढांचे से शुरुआत होती है जिसमें मरीज़ की ख़ुद की कोशिकाओं को डाल दिया जाता है और फिर इसे कलम की तरह लगा दिया जाता है.

कुछ मरीज़ों में इस तकनीक का इस्तेमाल कर ब्लैडर बनाए गए हैं.

एक अन्य तकनीक में किसी शव से किसी अंग को लिया जाता है, जैसा अंग प्रत्यर्पण में होता है, फिर एक डिटर्जेंट का इस्तेमाल कर पुरानी कोशिकाओं को हटा दिया जाता है और प्रोटीन का एक ढांचा बचा रह जाता है.

इस ढांचे में उस मरीज़ की कोशिकाएं लगाई जाती हैं जिसे अंगों की ज़रूरत है. इस तकनीक का इस्तेमाल कर सांस की नलियां बनाई गई हैं.

"अभी कोई भी तकनीक अंग बनाने में सक्षम नहीं है, हम एक ख़राब अंग की मरहम पट्टी की प्रक्रिया ला रहे हैं न कि उसे बदलने की."

-डॉक्टर सुवान जयसिंघे, यूनिवर्सिटी कॉलेज, लंदन

लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज के शोधकर्ता अंग बनाने के लिए 'इलेक्ट्रोस्पिनिंग' तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं.

इन शोधकर्ताओं का मानना है कि पहले ही कोशिकाएं बन जाने से एक कृत्रिम ढांचे में कोशिकाएं डालने की चुनौतियों से पार पाना आसान होगा.

इस विधि में शुरुआत कोशिकाओं और पॉलीमर का एक शोरबा बनाने से होती है.

'बहुत आसान नहीं'

फिर 10 हज़ार वोल्ट की एक इलेक्ट्रिक सुई का इस्तेमाल कर तंतु बनाया जाता है.

डॉक्टर सुवान जयसिंघे ने कहा, "जैसे एक मकड़ी अपना जाला बुनती है वैसे ही हम पॉलीमर और कोशिकाओं का इस्तेमाल कर एक निरंतर जाला बुनने में सक्षम हैं."

जयसिंघे बताते हैं, "हम एक गद्दे जितना मोटा जाला बुन सकते हैं और इसमें कोशिकाएं डाल सकते हैं."

इलेक्ट्रोस्पिनिंग तकनीक का इस्तेमाल कर के एक घूमते हुए सिलेंडर पर तंतुओं को आपस में बुन दिया गया और नसें तैयार हो गई.

ये घूमता हुआ सिलेंडर जीवित कोशिकाओं को पोषण देने के लिए एक द्रव्य में डूबा हुआ था.

'स्मॉल' नाम के शोधपत्र में प्रकाशित ताज़ा अध्ययन में दिखाया गया है कि चूहों की तीन परतों वाली नसें बनाई जा सकती हैं.

डॉक्टर जयसिंघे ने कहा, "अभी कोई भी तकनीक अंग बनाने में सक्षम नहीं है, हम एक ख़राब अंग की मरहम पट्टी की प्रक्रिया ला रहे हैं न कि उसे बदलने की."

आइडिया ये है कि ह्रदय की कोशिकाओं का एक पैच दिल के दौरे के बाद काम सुधार सकता है.

हालांकि ये इलेक्ट्रोस्पिनिंग के लिए शुरुआती दिन हैं.

इसकी तुलना में मरीज़ों में अंग बनाने की दूसरी विधियां पहले ही इस्तेमाल हो रही हैं.

डॉक्टर जयसिंघे कहते हैं, "कुछ कामयाबी मिली है जो अच्छी बात है लेकिन मुझे नहीं लगता कि ये उतना आसान है जैसा लोग कहते हैं और न ही ये आसान होने वाला है."

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