15 नवंबर: श्री गोपाष्टमी। सौर मार्गशीर्ष मासारंभ।

17 नवंबर: अक्षय नवमी व्रत।

18 नवंबर: रवि दशमी पर्व।

19 नवंबर: प्रबोधिनी एकादशी व्रत। देवात्थानी एकादशी। तुलसी विवाहोत्सव।

यथार्थ गीता

दूरेण ह्यावरं कर्म बुद्धियोगाद्धनज्जय। बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणा: फलहेतव:।।

भगवान कहते हैं, धनंजय, निकृष्ट कर्म, वासनावाले कर्म बुद्धियोग से अत्यंत दूर हैं। फल की कामनावाले कृपण हैं। वे आत्मा के साथ उदारता नहीं बरतते, अत: समत्व बुद्धियोग का आश्रय ग्रहण कर। जैसी कामना है वैसा मिल भी जाए, तो उसे भोगने के लिए शरीर धारण करना पड़ेगा।

आवागमन बना है, तो कल्याण कैसा? साधक को तो मोक्ष की भी वासना नहीं रखनी चाहिए, क्योंकि वासनाओं से मुक्त होना ही तो मोक्ष है। फल की प्राप्ति का चिंतन करने से साधक का समय व्यर्थ नष्ट हो जाता है और फल प्राप्त होने पर वह उसी फल में उलझ जाता है। उसकी साधना समाप्त हो जाती है। आगे वह भजन क्यों करे? वहां से वह भटक जाता है। इसलिए समत्व बुद्धि से योग का आचरण करे।

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