छ्वन्रूस्॥श्वष्ठक्कक्त्र: लौहनगरी में नाबालिग छात्र-छात्राओं का बाइक से स्कूल जाना-आना छात्रों और उनके पैरेंट्स के लिए मुसीबत का सबब बन सकता है. मोटर व्हीकल एक्ट के तहत नाबालिग छात्र-छात्राओं के वाहन चलाने में प्रतिबंध है. ऐसे में बाइक चलाने की अनुमति देना बच्चे की जान के साथ ही किसी अन्य आदमी की जान के लिए भी खतरा हो सकता है. दैनिक जागरण आई नेक्स्ट बच्चों और पेरेंट्स की समस्याओं को लेकर 'बच्चों की जान लोगे क्या' अभियान चलाया जा रहा हैं. मंगलवार को आईनेक्स्ट की पड़ताल में बाइक से स्कूल आने जाने वाले बच्चों पर नजर डाली गई. जिसमें ज्यादातर बच्चे 13 से 17 साल के बीच मिले. इनमें अधिकतर बच्चे दो से तीन लोग और बिना हेलमेट के मिले. गाड़ी और रफ्तार के दीवाने यह युवा चेकिंग के डर से रास्ते बदलकर गाड़ी चलाते हैं, जिससे कभी भी बड़ा हादसा हो सकता हैं. इस संबंध में स्कूल के प्रधानाचार्य से बात करने पर उन्होंने बताया कि हम छात्रों को स्कूल बाइक से आने से मना करते हैं, जिसके बाद भी बहुत से स्टूडेंट बाइक से आते हैं. स्कूल-कॉलेज नियम के अनुसार बाइक को गेट के अंदर प्रवेश की अनुमति नहीं है, छात्र बाहर ही बाइक लगाकर क्लास में आते हैं.

पेरेंट्स पर कार्रवाई

मोटर व्हीकल एक्ट के अंतर्गत नाबालिग स्टूडेंट से एक्सीडेंट होने पर गाड़ी जब्ती के साथ ही पेरेंट्स पर कार्रवाई होगी. यह जिम्मेदारी पेरेंट्स की है वह अपने बच्चों को समझाएं कि वैध लाइसेंस होने के बाद ही वह बाइक चलाएं. ऐसा करने पर बच्चे और उनके पेरेंट्स दोनों ही सेफ रहेंगे. बच्चों को बाइक देने के मामले में पेरेंट्स की लापरवाही अधिक देखने को मिलती है. ऐसे में आप का प्यार लाडले के जीवन को बर्बाद कर सकता है.

स्कूल में बाइक लाने पर प्रतिबंध

शहर के प्रमुख स्कूल के प्रिंसिपल्स से बात करने पर उन्होंने बताया कि स्कूल आने के लिए बाइक से आना मना है. राजेंद्र विद्यालय, दयानंद विद्यालय और एमएनपीएस सहित सभी विद्यालयों के कैंपस में बाइक से आने पर प्रतिबंध है. लेकिन छात्र कैंपस के बाहर बाइक पार्क करके स्कूल आते हैं. बताया गया कि बाइक से आने वाले छात्र-छात्राओं के पेरेंट्स को नोटिस दिया जाएगा.

पेरेंट्स के बोल

बच्चे और पेरेंट्स किसी मुसीबत न फंसें, इसके लिए माता-पिता को इनीसिएटिव लेना होगा. बच्चों को समझाएं कि गाड़ी चलाने की एक उम्र होती है. ऐसा करने से आप और उनके परिवार का जीवन सुरक्षित रहेगा. बच्चों को स्कूल ही नहीं बल्कि आस-आस भी गाड़ी लेकर न जाने दें.

सूरजभान शर्मा, मागनो

15 से 16 साल की उम्र में बच्चों को बाइक देकर माता-पिता बहुत बड़ी गलती करते हैं. शहर में नाबालिग द्वारा एक्सीडेंट की कई घटनाएं हो चुकी हैं. बेटे से प्रेम के चक्कर में आप उसका बुरा नहीं कर सकते हैं. बच्चों को किसी भी गलत काम करने पर रोके उसे साइकिल से जाने के लिए प्रेरित करें.

मनोहर कुमार, डिमना बस्ती

स्कूल भी बड़ी भूमिका निभा सकते हैं. बच्चों को बाइक के स्थान पर साइकिल से जाने के लिए प्रेरित करें. कई बार आपके गाड़ी नहीं देने पर बच्चे आपसे गुस्सा हो जाते हैं. ऐसे में बच्चों को समझाएं कि बड़े होने पर उन्हें गाड़ी दी जाएगी, लेकिन अभी वह साइकिल या बस से स्कूल जाएं

नीतू पांडेय, बाराद्वारी

बच्चों को गाड़ी देना खतरे से खाली नहीं हैं. ऐसा करने से आप अपनी मदद के साथ ही किसी अनजान आदमी की भी मदद करते हैं, जो कि किसी नाबालिग का शिकार हो सकता है. अक्सर हमारी लापरवाही हमारे और बच्चों के लिए घातक साबित होती है, इसलिए बच्चों को गाड़ी से दूर रखे.

संजय कुमार, काशीडीह

मोटर व्हीकल एक्ट के तहत नाबालिग बच्चों के बाइक या किसी गेयर वाली मोपेड चलाने पर प्रतिबंध है. नियम का उल्लंघन करने पर गाड़ी को जब्त करने के साथ ही संबंधित वाहन मालिक पर कार्रवाई की जाती है. छात्र वैध लाइसेंस लेकर ही गाड़ी चला सकते हैं.

शिवेंद्र कुमार, डीएसपी ट्रैफिक, जमशेदपुर