क्त्रन्हृष्ट॥ढ्ढ : राज्य के सबसे बड़ हॉस्पिटल रिम्स में एकबार फिर व्यवस्था फेल हो गई है. जहां मरीजों को न तो डायलीसिस के लिए स्टोर से सामान मिल रहा है और न ही ब्लड बैंक से खून. स्थिति यह है कि ब्लड टेस्ट के लिए लिमिटेड मरीजों का ही सैंपल कलेक्ट किया जा रहा है. इससे उनके सामने विकट स्थिति हो गई है. प्राइवेट सेंटरों में उन्हें रिम्स की तुलना में हर काम के लिए चार से पांच गुना अधिक पैसे चुकाने पड़ रहे हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर रिम्स की व्यवस्था कब पटरी पर लौटेगी?

डायलीसिस किट खत्म, कट रही जेब

हॉस्पिटल में हर दिन दो दर्जन मरीजों का डायलीसिस किया जाता है. लेकिन सोमवार को सेंटर का स्टॉक ही खत्म हो गया. इससे परिजन डायलीसिस के लिए पूरा किट बाहर से लेकर आएं तभी उनके मरीज का डायलीसिस होगा. वहीं किट खत्म होने से मेडिकल स्टोर वालों की चांदी है. जहां दुकानवालों ने किट के लिए पूरे पैसे वसूल किए. इस चक्कर में परिजनों की जेब ढीली हो गई. चूंकि रिम्स में डायलीसिस के लिए सभी जरूरी सामान उपलब्ध कराए जाते हैं.

कैपासिटी 1000 यूनिट, है मात्र 48 यूनिट ब्लड

रिम्स में राज्य का सबसे बड़ा मॉल ब्लड बैंक है, जहां एक हजार यूनिट से अधिक ब्लड के स्टोरेज की कैपासिटी है. इसके अलावा प्रॉसेसिंग के लिए लेटेस्ट मशीन भी लगाई गई है. लेकिन इतने बड़े ब्लड बैंक में सोमवार को मात्र 48 यूनिट ही खून ही अवेलेबल था. इससे हॉस्पिटल में इलाज करा रहे मरीजों को भी खून नहीं मिल पा रहा है. वहीं डोनर लाने पर ही मरीजों को खून दिया जा रहा है. ब्लड बैंक स्टाफ की मानें तो कैंप में भी ज्यादा ब्लड कलेक्शन नहीं हो पा रहा है. इस वजह से ही ऐसी स्थिति बनी है. इसके अलावा डोनर भी जागरूक नहीं हो रहे हैं. अगर लोग खुद से ब्लड डोनेट करना शुरू कर दें तो क्राइसिस खत्म हो जाएगी.

यूनिट अवेलेबल

ए पॉजीटिव : 8

ए निगेटिव : 0

बी पॉजीटिव : 21

बी निगेटिव : 4

ओ पॉजीटिव : 5

ओ निगेटिव : 2

एबी पॉजीटिव : 7

एबी निगेटिव : 1

लिमिटेड मरीजों का ही ब्लड सैंपल

ओपीडी में हर दिन इलाज के लिए 1500-2000 मरीज आते हैं. इसमें से लगभग 200 मरीजों को डॉक्टर एलएफटी, आरएफटी, यूरिक एसिड टेस्ट कराने की सलाह देते हैं. लेकिन सेंट्रल कलेक्शन सेंटर से मरीजों का लिमिटेड सैंपल ही कलेक्ट किया जा रहा है. इसके तहत एलएफटी-आरएफटी के 40-40 सैंपल लिए जा रहे हैं. वहीं यूरिक एसिड की जांच रिम्स में बंद कर दी गई है. चूंकि बायोकेमिस्ट्री मशीन दो महीने से खराब पड़ी है. ऐसे में सैंपल को टेस्ट के लिए लैब मेडिसीन में भेजा जा रहा है. अब इनडोर के मरीजों का लोड अधिक होने के कारण लैब मेडिसीन ने भी टेस्ट करने से हाथ खड़े कर दिए हैं. इसका खामियाजा मरीजों को 5-8 गुना तक अधिक पैसे चुकाकर भुगतना पड़ रहा है.

डायरेक्टर डॉ. डीके सिंह से सीधी बात

डीजे आईनेक्स्ट : डायलीसिस के मरीजों को हॉस्पिटल से किट नहीं मिल रहा है?

जवाब : मुझे सूचना मिली है. संबंधित विभाग को शॉर्ट टेंडर कर समस्या का समाधान करने को कहा गया है.

डीजे आईनेक्स्ट : बायोकेमिस्ट्री की मशीन लंबे समय से खराब पड़ी है, उसे कब ठीक कराया जाएगा?

जवाब : हमने कंपनी को नोटिस करने के लिए कहा है. अब एक-एक मशीन को देखना तो संभव नहीं है. बस मरीजों को बेहतर सुविधा मिले, इसका ध्यान रखा जाएगा.

डीजे आईनेक्स्ट : हॉस्पिटल की व्यवस्था पटरी पर कब लौटेगी?

जवाब : हमलोग व्यवस्था सुधारने का पूरा प्रयास कर रहे हैं. काफी कुछ सुधार भी आया है.