JAMSHEDPUR: जमशेदपुर में गुरुवार को अंतरराष्ट्रीय जनजातीय सम्मेलन 'संवाद' की शुरुआत हो गई। पांच दिनों तक चलने वाले इस कार्यक्रम में 137 जनजातीय समुदाय के बीच संवाद होगा। इसमें नौ देशों व 23 राज्यों के आदिवासियों के प्रतिनिधि शिरकत कर रहे हैं। सभी आदिवासियों में आए सामाजिक बदलाव पर चर्चा करेंगे। इसका आयोजन टाटा स्टील कर रही है। इस कार्यक्रम में आदिम जनजातियों की संस्कृति, सभ्यता, उनकी भाषा, इलाज की पद्धति, व्यंजन सहित रहन-सहन व पहनावे से भी परिचित होने का लोगों को मौका मिलेगा। आयोजन का उद्देश्य, देश में खत्म होते आदिम जनजातियों की समस्याओं को समझते हुए उनकी कला-संस्कृति को बचाए रखने के लिए मंच प्रदान करना है। जनजातीय समारोह में 23 राज्यों से 101 वैद्य आ रहे हैं, जो गोपाल मैदान में अपने स्टॉल लगाएंगे और पारंपरिक तरीके से इलाज करेंगे। इसके साथ ही शहरवासियों को विभिन्न बीमारियों पर विशेषज्ञ राय भी देंगे। ट्राइबल कल्चर सेंटर में 16 से 19 नवंबर के बीच हर सुबह संस्कृति व पहचान, वन और वनाधिकार, पारंपरिक गर्वनेंस व विवादों के बीच शांति पर परिचर्चा भी होगी।

बिरसा मुंडा को श्रद्धांजलि

गोपाल मैदान में गोलाकार मंच पर करीने से सजे 101 नगाड़ों की थाप के बीच गुरुवार की शाम भगवान बिरसा मुंडा को श्रद्धांजलि दी गई। इसके साथ ही पांच दिनों तक चलने वाले 137 जनजातीय समुदाय के बीच संवाद की शुरुआत हो गई।

पारंपरिक तरीके से शुरू

संवाद का आगाज पूरी तरह से आदिवासी परंपराओं के अनुसार हुआ। पीटर ब्लूहॉफ, संजीव पॉल, बैजू मुर्मू, दिगंबर हांसदा, पिट्रिशा मुखीम, निता रुवा कुरी, उषा मांडवी, जनकम्मा, केशव मति सहित विभिन्न आदिवासी समुदायों से आए अतिथियों को पहले आदिवासी साफा (पगड़ी) पहनाकर सम्मानित किया गया। इसके बाद इन्हें खुशहाली का प्रतीक जौ दिया गया। जिसका अनावरण कर धार दिशोम परगना (आदिवासी स्वशासन की इकाई के प्रमुख) बैजू मुर्मू की उद्घोषणा के साथ संवाद का आगाज हुआ। इसके बाद जमशेदपुर के उरांव, भूमिज, चेरो, हो, खेरवार, मुंडा, पहाडि़या व संताल समाज के द्वारा पारंपरिक गीत व नृत्य से अतिथि का स्वागत किया गया।

आदिवासी रंग में रंगा गोपाल मैदान

गुरुवार की शाम बिष्टूपुर का गोपाल मैदान पूरी तरह से आदिवासी रंग में सराबोर दिखा। यहां देश-विदेश से आए आदिवासी कलाकार अपने परिधान में दिखे। मैदान के बीच में गोलाकार मंच, जो चारो ओर से दुधिया रोशनी से चमक रहा है। वहीं, मंच के दोनो ओर मचान बना हुआ है जहां बैठकर कार्यक्रम का लुत्फ उठाने का स्थान बनाया गया है। वहीं, मैदान के सभी किनारों पर वैद्य, हैंडीक्राफ्ट व आदिवासी व्यंजनों के स्टॉल इसे मेले का रूप दे रहे हैं। जबकि मैदान के द्वार के सामने ही भगवान बिरसा की प्रतिमा इसे झारखंड की पहचान को दर्शा रही है।

थिरके अतिथि

101 नगाड़ों की थाप की धुन इतनी मनमोहक रही कि टाटा स्टील के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर पीटर ब्लूहोफ, रुचि नरेंद्रन, श्रीमंती सेन, वाइस प्रेसिडेंट संजीव पॉल, केपीओ ऑपरेशन के वाइस प्रेसिडेंट राजीव कुमार, इंटक के राष्ट्रीय सचिव राकेश्वर पांडेय सहित देश-विदेश से आए कलाकार खुद को झूमने से रोक नहीं पाए। इसमें समां बांधा साउथ अफ्रीका से आए दो कलाकार ने। पारंपरिक परिधान में इन्होंने सांबा डांस की तरह पैरों को थाप के नृत्य कर सबका ध्यान अपनी ओर खींचने में कामयाब रहीं।

संस्कृति से होंगे रूबरू

पांच दिन तक चलने वाले इस कार्यक्रम में आदिम जनजातियों की संस्कृति, सभ्यता, उनकी भाषा, इलाज की पद्धति, व्यंजन सहित रहन-सहन व पहनावे से भी देश-दुनिया को परिचित कराना है। आयोजन का उद्देश्य, देश में खत्म होते आदिम जनजातियों की समस्याओं को समझते हुए उनकी कला-संस्कृति को बचाए रखने के लिए मंच प्रदान करना है।