- लखनऊ की ब्लड बैंकों पर लगते रहे हैं आरोप

-छापे में मिली अनियमितताएं, नहीं होती कड़ी कार्रवाई

LUCKNOW: लखनऊ में ब्लड का काला कारोबार का यह मामला पहली बार नहीं है। इससे पहले भी ब्लड बैंकों पर कई बार अति गम्भीर आरोप लग चुके हैं, लेकिन लचर कानून और जिम्मेदार विभागों की लापरवाही के कारण आरोपी बच निकलते हैं और फिर से गोरखधंधा शुरू कर देते हैं। कई बार जांच टीमों को चौंकाने वाली अनियमितताएं मिली, लेकिन ठोस कार्रवाई न होने के कारण धंधा लगातार जारी है।

दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने किया था खुलासा

वर्ष 2015 में दैनिक जागरण आईनेक्स्ट ने मेडिसन ब्लड बैंक में प्रोफेशनल डोनर्स से ब्लड दिलाने के रैकेट का खुलासा किया था। 'खून का काला कारोबार' शीर्षक से खबर छपने के बाद इसका संज्ञान लेते हुए एफएसडीए के ड्रग कंट्रोलर एके मल्होत्रा ने जांच कमेटी गठित कर दी थी। उन्होंने जांच का जिम्मा ड्रग इंस्पेक्टर संजय कुमार और शशि मोहन गुप्ता को असिस्टेंट कमिश्नर एसके पंत के सुपरविजन में दी थी। जांच के बाद ब्लड बैंक को दोषी पाया गया था और गंभीर खामियां मिलने पर नोटिस देते हुए ब्लड बैंक का लाइसेंस कई माह के लिए सस्पेंड किया गया था।

केजीएमयू में गार्ड चलाता था रैकेट

छह साल पहले केजीएमयू की ब्लड बैंक में सिक्योरिटी गार्ड शुक्ला द्वारा रैकेट चलाने का भंडाफोड़ हुआ था। सिक्योरिटी गार्ड को रंगे हाथों पकड़ा गया था और उसके साथ आया प्रोफेशनल डोनर भाग निकला था। यह गार्ड वहां पर सेवा प्रदाता कंपनी की ओर से तैनात था। वह अपने पुराने साथी भवानी के साथ धंधा करता था और एक यूनिट के लिए पांच हजार से अधिक वसूलता था। ब्लड बैंक प्रभारी ने इन्हें रंगे हाथों पकड़वाया था।

बिना जांच देते थे ब्लड

एफएसडीए की टीम ने चौक स्थित कोहली ब्लड बैंक में भी छापेमारी कर खून का खेल पकड़ा था। बिना टेस्ट किए ही जांच ब्लड को टेस्टेड बता दिया जाता था, जिससे एचआईवी, मलेरिया, हेपेटाइटिस सहित अन्य जानलेवा बीमारियां होने का अंदेशा बना रहता है। टीम को मौकेसे ऐसी 6 यूनिट मिली थी, जिनमें बिना टेस्ट के ही टेस्टेड करार दिया गया था। टीम ने सभी को कब्जे में ले लिया था। डोनर और रिसीपिएंट के दस्तावेज भी गायब मिले थे, लेकिन नोटिस देकर ब्लड बैंक को छोड़ दिया गया था। आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।

कोहली व शेखर को मिला था नोटिस

वर्ष 2013 में कोहली की अलीगंज, चौक ब्रांच और शेखर हॉस्पिटल एंड ब्लड बैंक में छापेमारी के दौरान बड़े पैमाने पर गम्भीर गड़बडि़यां मिली थी। चौक के कोहली ब्लड बैंक से इलाहाबाद ब्लड भेजा गया था, जिसमें कोल्ड चेन उपलब्ध नहीं थी और ब्लड बैग के स्टॉक में भी भिन्नता पाई गई थी। शेखर में तय कीमत 850 की बजाए 13 सौ से ज्यादा वसूलने का भी आरोप लगा था। डोनर और पेशेंट के रिपोर्ट के साथ आकस्मिक चिकित्सा के उपकरण भी गायब थे। इन ब्लड बैंकों में एलाइजा की बजाए रैपिड किट से जांच की भी शिकायतें मिली थी, लेकिन मामले में नोटिस देने के बाद कोई कड़ी कार्रवाई नहीं की गई थी।

सेंट्रल की टीम ने की कार्रवाई

वर्ष 2013 में राजधानी की ही नेशनल ब्लड बैंक में तय सीमा से अधिक ब्लड निकालने का मामला पकड़ा गया था। सेंट्रल गवर्नमेंट की टीम ने मामले को पकड़ा था। जिसके बाद इस ब्लड बैंक को बंद करा दिया गया था। हालांकि उसके बाद इतनी कड़ी कार्रवाई किसी ब्लड बैंक के खिलाफ नही हुई।

नहीं होती कार्रवाई

एफएसडीए के सूत्रों के मुताबिक गम्भीर आरोप मिलने पर भी ब्लड बैंकों को सिर्फ नोटिस दी जाती है या कुछ समय के लिए सस्पेंड किया जाता है। उसके बाद फिर उन्हें चलाने की परमीशन मिल जाती है। अधिकारियों की मानें तो ब्लड की कमी को देखते हुए सरकार जानबूझकर अपनी आंखे मूंदे रहती है। इसका फायदा ये काले कारोबारी उठाते हैं।

नहीं होती नियमित जांच

नियमों के मुताबिक ब्लड बैंकों की हर वर्ष नियमित रूप से जांच होनी चाहिए, लेकिन शहर की ज्यादातर ब्लड बैंकों की पिछले कई वर्षो से जांच नहीं की गई। न तो इंस्पेक्शन हुआ ना ही नोटिस जारी हुआ। जहां की शिकायत मिलती है या फिर लाइसेंस का रिन्यूअल होता है वहीं की जांच की जाती है।

क्राइम ब्रांच ने पकड़ा था खेला

दो वर्ष पहले ठाकुरगंज के एक मकान में खून के काले कारोबार के धंधे को क्राइम ब्रांच की स्वाट टीम ने देररात छापा मारकर पकड़ा था। आरोपी मो। आरिफ ने पुलिस को बताया कि वह शहर की नामी गिरामी ब्लड बैंक और हॉस्पिटल्स में ब्लड की सप्लाई कर रहा था। आरोपी पहले खुद का खून बेचता था फिर उसने दूसरों का खून निकालना सीख लिया, जिसके बाद उसने इसे धंधा बना दिया था।