PATNA: बीमा की धनराशि डकारने के लिए अवैध ढंग से महिलाओं का गर्भाशय निकालने वाले डॉक्टरों पर हाईकोर्ट का शिकंजा कस गया है। पीडि़त महिलाओं को मुआवजा देने के निर्देश के साथ इस मामले में अनुसंधान पूरा कर आरोप पत्र दाखिल करने का आदेश पटना हाईकोर्ट ने दिया है। इस बड़ी घटना को शर्मनाक बताते हुए हाईकोर्ट ने मंगलवार को पीडि़ताओं को 45 दिन के अंदर मुआवजा देने का निर्देश दिया है। 2012 में सामने आया यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया था दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने पीडि़ताओं की आवाज को कोख में दम तोड़ता न्याय शीर्षक से खबर प्रकाशित कर उठाया था।

2012 में सामने आया था मामला

2012 में बीमा की रकम डकराने के लिए डॉक्टर और नर्सिग होम ने बड़े पैमाने पर महिलाओं की कोख निकाल दी है। नेशनल हेल्थ इंश्योरेंस स्कीम के तहत घटना को अंजाम दिया गया। मानवाधिकार आयोग ने मामले में नोटिस लेते हुए पीडि़त महिलाओं को मुआवजा दिलाने की पहल की। मुआवजे की राशि भी डेढ़ लाख से लेकर ढ़ाई लाख निर्धारित कर दी गई लेकिन बाद में राज्य सरकार ने पीडि़त महिलाओं को मात्र 50-50 हजार रुपए रुपए देने की घोषणा की। इसके खिलाफ वेटरन फोरम फॉर ट्रांसपिरेन्सी इन प?िलक लाईफ के महासचिव शिव प्रकाश राय ने ने हाई कोर्ट में जनहित याचिका भी दायर की थी।

कोर्ट की सख्ती से न्याय की आस

मुख्य न्यायाधीश मुकेश आर शाह एवं न्यायाधीश आशुतोष कुमार की खंडपीठ ने गर्भाशय मामले में सुनवाई की है। खंडपीठ ने पुलिस अफसरों को 6 सप्ताह में अनुसंधान पूरा कर आरोप पत्र दायर करने का निर्देश दिया। सुनवाई में याचिकाकर्ता के वकील दीनू कुमार, कुमारी नेहा,रीतिका रानी ने कहा कि सिर्फ 540 महिलाओं की जांच के बाद गड़बडि़यों का पर्दाफाश हुआ। 20 साल से 40 साल की महिलाओं को 2.5 लाख, 40 साल से उपर की महिलाओं को डेढ़ लाख रुपए 6 सप्ताह में देने के लिए कहा गया है। अदालत ने एमसीआई को निर्देश जारी कर नर्सिंग होम, डॉक्टर का लाइसेंस रद करने को कहा है ।