अनदेखी और अतिक्रमण की जद में शाहपीर मकबरा

लापरवाही के चलते जर्जर हो रहा मुगलकालीन मकबरा

Meerut। शाहपीर मकबरे के ऐतहासिक महत्व को देखते हुए भारतीय पुरात्तव सर्वेक्षण विभाग ने इसे धरोहर में शामिल कर रखरखाव का जिम्मा लिया, लेकिन आज यह मकबरा जर्जर हालत में है। इस्लामिक गुरु शाहपीर की नौंवी पीढ़ी के वंशज आज भी इस मकबरे की देखभाल करते हैं। प्रशासनिक और पुरातत्व विभाग की अनदेखी के चलते मकबरे में जगह-जगह दीवारें क्षतिग्रस्त हो चुकी है। झरोखे और दरवाजे टूटने लगे हैं। आने-जाने के रास्ते पर कूडे़ व गंदगी का ढेर लगा है।

चारो ओर अतिक्रमण

दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की टीम ने सोमवार को शहर के बीचों बनी करीब 400 साल पुरानी मुगलकालीन इमारत का जायजा लिया और सुधार की गुंजाइश तलाशी। इंदिरा चौक पर गुलमर्ग सिनेमा के पास बना शाहपीर का मकबरा मेन रोड से मार्ग 100 मीटर अंदर बना हुआ है, लेकिन अतिक्रमण के चलते मकबरा अब सड़क से भी दिखाई नही देता। प्रवेश मार्ग पर दुकाने, ढाबे, खोखे और आसपास ऊंची ऊंची इमारतें बन चुकी हैं जिस कारण से यह लोगों की आंखों से ओझल होता जा रहा है। मकबरे को आने वाले एकमात्र रास्ते पर भी चाय खोखे वालों का इस कदर अतिक्रमण हो चुका है कि मार्ग की शुरुआत ही गुम हो चुकी है। गेट पर पब्लिक टॉयलेट तक बना दिए गए हैं।

सुरक्षा व संरक्षण की दरकार

इस मकबरे पर रोजाना सैकडों अकीदतमंद अपनी मुराद लेकर आते हैं। लोकल पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था न होने से आए दिन यहां असमाजिक तत्वों का जमावड़ा रहता है, जो कब्रों और मकबरे को क्षतिग्रस्त करते हैं।

बलुआ पत्थरों की बिल्डिंग

इतिहासकारों के अनुसार सन 1633 में मुगल बादशाह जहांगीर के शासनकाल में उनके इस्लामिक गुरु शाहपीर रहमतउल्लाह अलैह के खूबसूरत मकबरे की संग-ए-बुनियाद रखी गई। कहा जाता है कि शाहपीर ने जहांगीर को झेलम नदी की ओर जाने से मना किया था, अपने गुरु की बात न मानने का खामियाजा भी जहांगीर को उठाना पड़ा था। झेलम की ओर कूच पर जहांगीर के सिपेहसालार महावत खान ने उन्हें बंधक बना लिया था। इस मकबरे की भव्यता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि मकबरे में आगरा व दिल्ली के लाल किले के बलुआ पत्थरों व नक्काशी का प्रयोग किया गया है। कहावत है कि जहांगीर ने अपने गुरु के कदमों में ताज उतारकर रख दिया था, जिसके निशान आज भी नक्काशी में मौजूद हैं।

देश-विदेश में मान्यता

इस मकबरे की मान्यता है कि यहां मांगी गई मन्नत या दुआ पूरी होती है। एक पर्चे पर लिखकर मुराद को पीर पर रख दिया जाता है। इसलिए शाहपीर का मकबरा देश विदेश में प्रसिद्ध है। साथ ही साथ एक कहानी यह भी है कि इस मकबरे पर गुंबद नही होने के बाद भी बारिश के एक बूंद इसकी खुली छत से अंदर नही गिरती है। इस मकबरे के आसपास आज भी मकबरे के निर्माण से संबंधित मुगलकालीन पत्थर पडे हुए हैं।

इस ऐतिहासिक इमारत को नुकसान खुद पुरातत्व विभाग पहुंचा रहा है। विभाग की मिलीभगत के चलते आज मकबरे के चारों तरफ अतिक्रमण हो चुका है। दूर से दिखने वाला मकबरा आज सड़क से दिखाई नही देता है।

सैय्यद मोहम्मद अली, केयर टेकर और वंशज

शाहपीर बाबा की मान्यता है इसलिए आज भी इस दरगाह में सैकडों लोग रोजाना मन्नत मांगने आते हैं और उनकी मन्नत पूरी भी होती है, लेकिन प्रशासनिक बेरुखी के कारण यह दरगाह अपनी पहचान खोती जा रही है।

हैदर,

यहां आने वाले अकीदतमंद खुद इस जगह की साफ सफाई रखरखाव में सहयोग कर रहे हैं, इसलिए यह आज भी मौजूद है। पुरातत्व विभाग का कोई सहयोग नही मिल रहा है। पुरातत्व विभाग यहां पर अवैध निर्माण को बढ़ावा दे रहा है।

सगीर अहमद

एक समय में यहां हर साल दरगाह पर मेला लगता था। दूर दराज से लोग आया करते थे, लेकिन आज सुरक्षा के अभाव और प्रशासनिक अनदेखी के चलते मेला लगना बंद हो गया है। यह मकबरा अपनी पहचान खोता जा रहा है।

मुंताज आलम

मकबरे में आने वाले मार्ग को अतिक्रमण मुक्त और साफ सफाई कर दी जाए तो भी इस मकबरे का काफी हद तक सुधार हो जाएगा। इमारत क्षतिग्रस्त हो चुकी है इसको मरम्मत की जरुरत है।

नावेद मोहम्मद