-जेडी की मान्यता के बिना चल रहे हैं सीबीएसई और आईसीएसई स्कूल

-बिना मान्यता चल रहे 50 परसेंट आईसीएसई स्कूल

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Meerut आपको यह जानकर हैरानी होगी कि मेरठ में 30 परसेंट सीबीएसई स्कूल बिना मान्यता के ही चल रहे हैं। इन स्कूलों संयुक्त निदेशक माध्यमिक शिक्षा कार्यालय में पंजीकरण नहीं है और न ही एनओसी जारी की गई है। इन स्कूलों का रिकॉर्ड विभाग में दर्ज हैं। एक ओर जहां पब्लिक स्कूलों ने अवैध फीस वसूली और कमीशन के बड़े खेल ने पेरेंट्स की जेब को हल्का करने में कसर नहीं छोड़ी है। वहीं दूसरी और यह बिना मान्यता के चल रहे कुछ पब्लिक स्कूल पेरेंट्स को धोखा भी दे रहे हैं। ऐसे में इन स्कूलों की न तो कोई अधिकारी सुध ले रहा है न ही शासन कोई कार्रवाई कर रहा है।

सौ से भी अधिक हैं पब्लिक स्कूल

शहर में सौ से अधिक पब्लिक स्कूल चल रहे हैं, जिनमें 97 के आसपास सीबीएसई स्कूल और सात आईसीएसई स्कूल हैं। इसके अलावा सीबीएसई प्राइमरी स्कूल भी मेरठ में चल रहे हैं। जेडी विभाग के पास इनमें से 30 परसेंट पब्लिक स्कूल और 50 परसेंट आईसीएसई स्कूलों की मान्यता का रिकॉर्ड तक नहीं है। हालांकि विभागीय आलाधिकारी इससे टालमटोल करते हुए बचने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन वास्तविकता तो यह है कि विभाग के पास इन 30 परसेंट स्कूलों का दूर-दूर तक रिकॉर्ड भी नहीं है।

एनओसी से मिलता है एफिलिएशन

विभागीय जानकारी के अनुसार अगर किसी स्कूल को सीबीएसई या आईसीएसई से एफिलिएशन लेना है तो उसके लिए पहले एनओसी जरुरी होती है। 18 बिंदुओं के आधार दी जाने वाले इस एनओसी के बाद ही स्कूलों द्वारा संबंधित विभाग में एफिलिएशन के लिए अप्लाई किया जा सकता है। यह एनओसी प्रशासनिक अधिकारी व जेडी और एमडीए की टीम मिलकर पास करती है।

नेशनल बिल्डिंग कोड प्रमाण पत्र जरुरी

एमडीए के माध्यम से स्कूल की बिल्डिंग का नक्शा पास किया जाता है और उसके बाद ही ज्वाइंट डायरेक्टर ऑफ एजुकेशन और प्रशासनिक अधिकारियों की कार्रवाई के बाद स्कूलों को एनओसी दी जाती है। एमडीए के माध्यम से स्कूलों की बिल्डिंग का नक्शा पास किया जाता है, जिसमें यह देखा जाता है कि स्कूल की बिल्डिंग भूकंपरोधी है या नहीं। इसके बाद ही स्कूलों को नेशनल बिल्डिंग कोड प्रमाण पत्र दिया जाता है। इसके बाद ही 18 बिंदुओं की जांच करने के बाद ही स्कूल को एनओसी दी जाती है।

यह है 18 बिंदु, जिन पर मिलती है एनओसी

1- विद्यालय की पंजीकृत सोसाइटी की नवीनीकरण पत्र व ट्रस्ट की नियमावली की प्रमाणित प्रति उपलब्ध कराई जाए।

2- विद्यालय की प्रबंध समिति में आप द्वारा नामित कराए गए शिक्षा विभाग के सदस्य का नाम।

3- विद्यालय में दस प्रतिशत स्थान अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के मेधावी बच्चों के लिए संचालित विद्यालयों के निर्देश हैं। जिन्हें नि:शुल्क एजुकेशन दी जानी है उसका ब्यौरा।

4- विद्यालय में कार्यरत शिक्षक व कर्मचारियों के वेतन का विवरण।

5- विद्यालय में प्रत्येक कक्षा के लिए मदवार लिए जाने वाले शुल्क का पूर्ण स्पष्ट विवरण मासिक व वार्षिक उपलब्ध कराए।

6- नेशनल बिल्डिंग कोड 2005 में प्राविधानित सुरक्षा मानकों के अनुरुप विद्यालय के भवन का निर्माण हुआ है तो उसका ब्यौरा।

7- स्कूल में क्लास और सेक्शन वाइज स्टूडेंट्स की संख्या व विवरण।

8- स्कूल में पिछले दो सालों का आय-व्यय का विवरण।

9- स्कूल में यूनिफार्म व पुस्तकों की बिक्री नहीं की जाती है व किसी एक दुकान से बुक्स लेने का नियम बाध्य है।

10- स्कूल में कार्यरत टीचर और स्टाफ जो ईपीएफ व पीएफ योजना में शामिल हैं।

11- स्कूल में स्टूडेंट्स का प्रमाण पत्र व किसी अन्य स्थान पर विद्यालय के टीचर्स द्वारा ट्यूशन पर प्रतिबंध है।

12- यूपी सरकार द्वारा प्रदान किया गया अनापत्ति प्रमाण-पत्र और काउंसिल फॉर इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एक्जामिनेशन, नई दिल्ली व सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंड्री एजुकेशन द्वारा दिए गए पत्रों की प्रमाणित प्रतियां उपलब्ध कराई जाए।

13- 2009 के नियम आरटीई का पालन किया जा रहा है या नहीं इस आशय का प्रमाण पत्र।

14- अग्निशमन अधिकारी का प्रमाण पत्र। स्कूल में पर्याप्त अग्निशमन यंत्र स्थापित है या नहीं इसका प्रमाण पत्र और यंत्र हेतु प्रशिक्षित स्टाफ की आख्या।

15- यदि एसी प्लांट स्कूल में लगा हो तो प्रभावी देखरेख की व्यवस्था की जाए।

्र16- स्कूल में वाहनों की पार्किंग सुविधा है या नहीं।

17- सभी टीचर न्यूनतम शैक्षिक योग्यता के आधार पर रखे जाने होंगे।

18- बेसमेंट में दो बड़े दरवाजे होना आवश्यक है और बेसमेंट में क्लास चलाया जाना प्रतिबंधित है, इसके साथ ही क्लास रूम में दो दरवाजे सुनिश्चित कराए जाने आवश्यक हैं।

विभाग कर रहा है टाल मटोल

स्कूलों के पास एनओसी न होने की बात पर विभाग भी टालमटोल करते हुए बचने का प्रयास कर रहा है। विभागीय आलाधिकारी तो नियमों की दुहाई देते हुए बचने का प्रयास कर रहे हैं। जेडी डॉ। महेंद्र देव के अनुसार 1999 से पहले जेडी कार्यालय से एनओसी पास नहीं की जाती थी, सीधे शासन के माध्यम से ही स्कूल एनओसी ले लिया करते थे। इसलिए उस समय के ही स्कूलों को विभाग की तरफ से एनओसी नहीं दी गई है।

रिकॉर्ड रखने में लापरवाही

विभाग के अनुसार 99 से पहले के स्कूलों को सीधा शासन ने ही एनओसी दी है, जिसका रिकॉर्ड विभाग में रखना जरुरी नही समझा गया। लेकिन ध्यान दिया जाए तो प्रशासनिक अधिकारियों व शिक्षा विभाग की टीम द्वारा हर साल स्कूलों की जांच की जाती है। हर साल टीम द्वारा लगभग 18 बिंदुओं पर जवाब भी स्कूलों से मांगे जाते हैं, जिनमें सबसे पहला प्वाइंट होता हैं स्कूलों की मान्यता पर। ऐसे में क्या आलाधिकारियों की टीम स्कूलों से जवाबदेही मांगना भी ठीक नहीं समझती।

ये हैं बड़े सवाल

-आखिर क्यों नहीं है विभाग में रिकॉर्ड

- सवाल तो यह उठता है कि अगर 1999 से पहले के स्कूलों को सीधे शासन की एनओसी है तो फिर उसका रिकॉर्ड विभाग के पास मौजूद क्यों नहीं है।

- अगर विभाग के पास इसका रिकॉर्ड नहीं है तो आखिर विभाग ने स्कूलों से रिकॉर्ड मांगने की जरुरत तक क्यों नहीं समझी।

- इतने सालों से कैसे चल रहे हैं यह बिना मान्यता के स्कूल

इसके लिए शहर के सभी स्कूलों से 18 बिंदुओं पर सूचना मांगी जाएगी, विभाग में स्कूलों की एनओसी से संबंधित सभी बिंदुओं पर स्कूलों को जवाब देना होगा।

डॉ। महेंद्र देव, जेडी