गंगा बैराज के जंगल में पिछले 112 दिनों से दो दर्जन से ज्यादा गांवों के करीब 25 हजार लोगों के लिए मुसीबत बन चुकी बाघिन अब भी उनका पीछा छोड़ने का नाम नहीं ले रही है। उसको पकड़ने के लिए लगी टीमें आज भी खाली हाथ हैं। टीमों के अब तक खाली हाथ रहने की वजह से गंगा बैराज का 'ऑपरेशन टाइगर' अब तक सबसे बड़ा और महंगा ऑपरेशन साबित हो रहा है। इस बड़े और महंगे ऑपरेशन की वजह से हजारों ग्रामीणों की जिंदगी भी बदल गई है। इन कुछ महीनों में आर्थिक नुकसान के साथ ही उनको मानसिक आघात भी पहुंचा है। पहले दिन से हम बाघिन के हर मूवमेंट की खबर आई नेक्स्ट आप तक पहुंचा आ रहा है। पिछले चार दिनों से बाघ का कोई अता-पता नहीं लग रहा है। ऐसे में आज ऑपरेशन के साथ-साथ बात उन ग्रामीणों की जिनकी जिंदगी को मुश्किल बना दिया है इस ऑपरेशन ने

पिछले 112 दिनों से दहशत का पर्याय बनी बाघिन बैराज की तलहटी में है। जिससे गंगा बैराज समेत आसपास के इलाके के हजारों लोग खौफजदा हैं। इतने दिनों से बाघिन के खौफ से सहमे कुछ गांवों में तो ग्रामीणों ने उससे कहर से बचने की परमानेंट तैयारी भी कर ली है। पान की गुमटी से लेकर गांव के हर घर में एक ही चर्चा हो रही है कि आखिर वो कब पकड़ी जाएगी? परिजन बच्चों को शाम होते ही घर के अंदर कर लेते हैं। दहशत उनके मन में बस गई है। बड़ा मंगलपुर के किशन ने बताया कि घर के बड़े बुजुर्ग किसी को घर से अकेले नहीं निकलने दे रहे हैं। आई नेक्स्ट की टीम इसकी सच्चाई पता करने के लिए गंगा बैराज के जंगल और आसपास कई गांवों में गई, जहां बाघिन के होने की पुष्टि हो चुकी है। तब मालूम चला कि ग्रामीण कितने ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं।

11 नवंबर को दिखी थी पहली बार

गंगा बैराज के जंगलों में पिछले 112 दिनों से ग्रामीण बाघिन के खौफ के साए में जी रहे हैं। उसको 11 नवंबर को एक महिला ने देखा था। वो शौच करने जा रही थी। तभी बाघिन उसके सामने आ गई और वो दहशत में बेहोश हो गई। कनवापुर के राकेश निषाद ने बताया कि खेतों में तो दिन में ही मरघट जैसा सन्नाटा पसरा रहता है। महिलाएं भी एहतियात के तौर पर ग्रुप में दोपहर में ही घर से बाहर जाती हैं। खेतों में जाना होता है तो कई बार सोचना पड़ता है। दिनभर खेतों में बिताना और फसल की देखभाल करने का काम पिछले कई महीनों से नहीं कर पा रहे हैं। इस बार बहुत नुकसान हो रहा है। गेहूं की फसल बर्बाद हो गई है। बीरू ने बताया कि हर साल गंगा बैराज के खेतों में करीब 1 लाख क्विंटल गेहूं पैदा हो जाता है, लेकिन इस बार 25 हजार क्विंटल भी पैदा होना मुश्किल लग रहा है। कई खेतों में तो बुआई ही नहीं हुई। जहां-जहां हुई वो भी रखवाली करने नहीं गए तो जानवर बाली ही खा गए।

चूल्हा नहीं अब जलती है अंगीठी

वन विभाग के जवानों ने ग्रामीणों के जंगल की ओर जाने पर पूरी तरह रोक लगा रखी है। हाल ये है कि गांव वाले लकड़ी लेने भी नहीं जा पा रहे हैं। नत्थापुरवा के रामवीर ने बताया कि दो महीने से कोयले वाली अंगीठी का यूज कर रहे हैं। वैसे हम लोग चूल्हा जलाते थे और उसके लिए जंगल से काफी लकड़ी मिल जाती थी। पर अब बाघिन की वजह से वहां जाना मुश्किल हो गया है। वन विभाग वाले जाने ही नहीं देते हैं। ऐसे में उनके सामने बड़ा संकट आ गया है। अब अंगीठी के लिए कोयला खरीद कर लाना पड़ता है।

लाखों का नुकसान, अमरूद की फसल चौपट

गंगा बैराज के आसपास करीब 1000 से ज्यादा अमरूद के बाग हैं। चार महीने से ज्यादा समय यहां बाघिन के आतंक का बीत चुका है। वो टाइम अमरूद की फसल से फायदा कमाने का होता है। सन्नीसराय के विक्रम बताते हैं कि उन चार महीनों को मिलाकर पूरे सीजन में यहां करीब 25-30 लाख रुपए के अमरूद बेचा जाता है। यहां का अमरूद इलाहाबाद, फतेहपुर, बिंदकी, इटावा, औरेया समेत कई शहरों में जाता है, लेकिन इस बार पेड़ से अमरूद तोड़कर कानपुर में बेचना भी मुश्किल काम हो गया। अमरूद की फसल बहुत खराब हुई है। इसकी वजह बाघिन है। अमरूदके बड़े व्यापारी किशन बताते हैं बाघिन की वजह से इस बार लाखों का नुकसान हुआ है।

चार किमी। का एरिया हुआ 'तबाह'

गढ़ीसिलौली से गंगा बैराज की दूरी करीब चार किलोमीटर है। इन दोनों के बीच गंगौली, पीपरी और शंकरपुर सराय गांव पड़ते हैं। इतना ही नहीं आसपास के और भी दर्जनों गांव पड़ते हैं। यहां करीब 25 हजार लोग रहते हैं। ये वो लोग हैं जिनका नाम वोटर लिस्ट में है। इसके अलावा सैकड़ों लोग वो भी शामिल हैं जिनका नाम वोटर लिस्ट में नहीं है। बाघिन के डर से पूरा एरिया 'तबाह' हो गया है। पीपरी के विकास निषाद ने बताया कि गांवों की चहल-पहल चली गई है। लोगों को हमेशा यही डर रहता है कि कहीं बाघिन न आ जाए? बाघिन के शंकरपुर सराय पहुंचने की बात सामने आई है। वहां से गंगा बैराज करीब सवा किलोमीटर दूर है। ग्रामीणों के चेहरे में बाघिन का खौफ अभी से देखा जा सकता है। मेन रोड से जुड़े गंगा बैराज में भी लोग सबसे ज्यादा खौफजदा हैं। आई नेक्स्ट की टीम कल्लूपुरवा, नत्थापुरवा, शंकरपुर सराय गई, तो लोगों का कहना है कि करीब चार महीने में उनकी जिंदगी बिल्कुल खराब हो चुकी है। कल्लूपुरवा के अवधेश ने बताया कि गंगा कटरी में बाघिन आ चुकी है। लोगों का कहना है कि वो रात में शिकार के लिए निकलती है। ऐसे में रातों की नींद उड़ गई है।

स्पेशल टीमों समेत 45 जवान लगे हैं

बाघिन को पकड़ने के ऑपरेशन में दो दर्जन स्पेशल टीमें, वन विभाग के ऑफिसर्स समेत 45 जवान लगे हैं। साथ ही दुधवा नेशनल पार्क से दो हाथी लाए गए है। जिनके जरिए टीम कॉम्बिंग कर रही है। महावत अनीस और इंद्रीश ने बताया कि दोनों हाथी ट्रेंड हैं। ये चार आपरेशन में शामिल हो चुके हैं। इसके अलावा जंगल में छह कैमरे लगाए गए हैं। जिसमें बाघिन की मूवमेंट कैद हुई है। डॉ। संजय के मुताबिक टीम सुबह 5.30 बजे से 11 बजे तक काम्बिंग करती है। जिसके बाद दोपहर 2 बजे से शाम 5.30 बजे तक दोबारा काम्बिंग की जाती है। अंधेरा होने पर काम्बिंग बन्द हो जाती है। इसके बाद वन विभाग की टीम पेट्रोलिंग करती है। जंगल के बीचो बीच एक विशालकाय केज (पिंजरा) भी लगाया गया है। जिसमें दो बार बाघिन मांस खाने आ चुकी है लेकिन पिंजड़ा बंद नहीं होने की वजह से वो वहां से निकल गई।

क्यों पसंद है नीलगाय?

डब्लूटीआई के ऑफिसर डॉ। संजय सिंघई के मुताबिक बाघिन की सबसे पसन्दीदा खुराक नील गाय है। वो नील गाय का शिकार कर उसको झाडि़यों के बीच छुपा देती है। नील गाय बड़ा जानवर होता है। इसलिए वो एक बार में उसका गोश्त नहीं खा पाती। वो दो से तीन दिन तक उसका गोश्त खाती है। जिससे वो अगले एक-दो दिन शिकार करने से बच जाती है। अगर वो नील गाय का शिकार नहीं कर पाती है, तो वो जंगली सुअर और फिर बछड़े को टारगेट करती है।

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बाघिन कब कहां पहुंची?

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4 दिनों बाद मालूम हुआ की दूर गई वो

5 अक्टूबर को सुबह करीब 6 बजे फॉरेस्ट अधिकारी प्रियम ने ये सूचना अपने अधिकारियों को दी कि दुधवा नेशनल पार्क की सीमा से बाहर एक बाघिन दिखाई दी है। आनन-फानन में वन विभाग की कई टीमों ने उसको फॉलो करना शुरू कर दिया। लेकिन वन अधिकारियों की लाख कोशिश के बाद भी वो पकड़ में नहीं आई। वन विभाग, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के अधिकारियों ने हार नहीं मानी और उसको पकड़ने के लिए ऑपरेशन जारी रखा लेकिन करीब चार दिनों बाद मालूम चला कि वो लखीमपुरखीरी की सीमा से दूर चली गई है।

और फिर शुरू की चतुराई

डॉ। सौरभ सिंघई के मुताबिक इसके बाद आवारा बाघिन गोमती नदी को पार करके मिश्रिख के आसपास दिखाई दी। फिर करीब पांच दिनों तक यहां उसने खूब मटरगस्ती की। यहां भी टीमों ने उसको फॉलो किया और पकड़ने के लिए कई टेक्निक का यूज किया लेकिन फिर वो सबको चकमा देकर करीब 5 दिनों के बाद वहां से फरार हो गई यानि 9 दिनों तक तो उसने अपनी चतुराई से सबको बेवकूफ बनाया। बाघिन को फिर नाइटविजन कैमरे से ट्रेस किया गया तब तक करीब 19 दिन गुजर चुके थे। डब्ल्यूटीआई के डॉ। सौरभ के मुताबिक इतना समय गुजरने के बाद कई बार ऐसा लगा कि कहीं इंसान इसके करीब न चले जाए, लेकिन पब्लिक को उससे दूर रखने में टीमें कामयाब रहीं। जिसका फायदा ये हुआ कि वो आदमखोर नहीं बन पाई। जिससे वो भी सुरक्षित है और पब्लिक भी।

सीतापुर में दिखी बाघिन

इसके बाद बाघिन सीतापुर के आसपास के जंगलों में ट्रेस की गई। यहां भी वन विभाग की टीमों ने करीब 6 दिनों तक उसको फॉलो किया। यहां टीमों ने जाल बिछाकर उसको पकड़ने की कोशिश की लेकिन कामयाबी हाथ नहीं लगी। करीब 19 दिनों के बाद भी एक दर्जन ये ज्यादा टीमें खाली हाथ ही रहीं। लेकिन सबसे खास बात ये रही कि चालबाज बाघिन पर लगातार टीमों ने अपनी निगाह बनाए रखी।

अब तक हो चुके हैं कई महीने

सीतापुर के बाद बाघिन की लोकेशन हरदोई के आसपास मिली। यहां करीब दो दिन तक उसकी कोई लोकेशन नहीं मिली लेकिन अचानक टीमों को लोगों ने बताया कि वो हरदोई से करीब 50 किलोमीटर दूर जंगल में विचरण कर रही है फिर वन विभाग की टीमें उसके पीछे लग गई। अत्याधुनिक यंत्रों से लैस टीमों ने फिर उसको फॉलो करना शुरू किया। उसके खाने-पीने पर नजर रखी और जैसे ही टीम को लगा कि कई दिनों की मेहनत रंग लाने वाली है वो वहां से गोपरामऊ पहुंच गई। गोपरामऊ पहुंचने में उसने करीब पांच दिन लगाए यानि 30 दिनों के बाद भी वो बाघिन किसी की पकड़ में नहीं आया। फिर उसने अपने ट्रैक को मोड़ा और फिर गोमती नदी पार करते हुए गंगा बैराज पहुंच गई। यहां तक पहुंचने में उसको करीब 37 दिन लगे। इसके बाद वो करीब 109 दिनों से गंगा बैराज के आसपास है। इतने दिनों के बाद अभी कोई ये बताने की स्थिति में नहीं है कि वो यहां कितने दिन और यहां रुकेगी?

सबसे ज्यादा यहां पर

अगर पीलीभीत, लखीमपुरखीरी से चलकर गंगा बैराज पहुंचे घाघ बाघिन की चाल का आंकलन किया जाए तो सबसे ज्यादा वो करीब 216 घंटे तक एक स्थान पर रुकी है। यहां वो इससे ज्यादा टाइम भी रुक सकती है। क्योंकि वरिष्ठ पशुचिकित्सक डॉ। एके सिंह के मुताबिक गंगा बैराज के जंगलों का वातावरण उसके लिए काफी अनुकूल है। लखीमपुर से यहां तक के सफर में सबसे ज्यादा मुफीद जगह यहीं बाघिन को मिली है। ऐसे में वो यहां पूरा एंज्वॉए कर रही है। डब्ल्यूटीआई के वरिष्ठ चिकित्सक डॉ। सौरभ सिंघई के मुताबिक बाघिन काफी शातिर है। इस वजह से जैसे ही उसको थोड़ी सी भनक लगती है वो वहां से निकल जाती है।

पिंजड़ा पहुंच गया, ऑपरेशन जारी है

कनऊपुरवा स्थित वन विभाग के रेस्क्यू प्वाइंट से कुछ किलोमीटर की दूरी पर एक विशालकाय पिंजड़ा रखा गया है। डब्ल्यूटीआई, डब्ल्यूडब्ल्यूएफ और वन विभाग की टीमों ने गंगा बैराज और आसपास के एरिया में डेरा डाल रखा है। डॉ। देवेंद्र कुमार के मुताबिक पिंजड़े में पड़वे को बांधा गया। चूंकि बाघिन वहां कई बार आ चुकी थी। ऐसे में पूरा विश्वास था कि वो पिंजड़े में फंस जाएगी। लेकिन जंगली कुत्ते उस पड़वे को खाने के लिए पिंजड़े में घुस गए फिर बाहर नहीं निकले। बाघिन ने कुत्तों को बंद देखकर पिंजड़े के पास जाना ही बंद कर दिया है। पिछले चार दिनों से उसका कोई पता नहीं चल रहा है।

सुबह मिले ताजा निशान

वरिष्ठ चिकित्सक डॉ। एके सिंह, डॉ। सौरभ सिंघई का कहना था कि चार दिन पहले सुबह करीब 5 बजे के आसपास एक ग्रामीण की निशानदेही पर वो लोग पूरी टीम के साथ वहां पहुंचे तो मालूम चला कि बस कुछ पल पहले बाघिन वहां आई थी। टीम के मेंबर्स का कहना है कि उसका मूवमेंट उसी एरिया में है। ग्रामीणों के मुताबिक रामपुर कटरी का भी बाघ भ्रमण कर चुका है।

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इसलिए है सबसे बड़ा ऑपरेशन

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कितने दिन चला कौन सा ऑपरेशन

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75, 108 के बाद 109 दिन

। यूपी में 2005 में फैजाबाद में आदमखोर हो चुकी बाघिन को सजा-ए-मौत सुनाई गई। वन विभाग को उसे पकड़ने में 75 दिनों का समय लग गया था।

2. वर्ष 2008 में यूपी के किशनपुर के जंगल से वन विभाग ने इंसानों पर हमला करने वाले टाइगर को पकड़ा। इसे चिडि़याघर में रखा गया है। किशनपुर से पकड़े जाने के नाम इसका नाम किशन रखा गया।

3. लखनऊ से सटे रहमानखेड़ा में 2011 में बाघ सामने आया। उस बार बाघ को पकड़ने में वन विभाग की टीम को 108 दिन का समय लगा था।

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यूपी में आदमखोर टाइगर को मारने वाले शिकारी

। डॉ। रामलखन सिंह ने तीन आदमखोर बाघों को मारा।

2. महेंद्र प्रताप सिंह ने पांच बाघों को मौत के घाट उतारा।

3. अशोक सिंह ने एक बाघ को मारा।