किसी ने खोए पेरेंटस तो किसी के पास नहीं थे पैसे,जानें सात भारतीय क्रिकेटरों के संघर्ष की दर्द भरी कहानी

विराट कोहली
विराट कोहली ने अपने पैशन की बड़ी कीमत दी है और इसीलिए आज जब उनके फार्म को लेकर सवाल उठाये जाते हैं या कमेंट किए जाते हैं तो उन्हें बेहद तकलीफ होती है। विराट कर्नाटक के खिलाफ रणजी मैच खेल रहे थे जब खेल के बीच उन्हें पता चला था कि उनके पिता जी नहीं रहे। विराट के पिता उनके सबसे बड़े सर्पोटर और प्रेणना थे। इसके बाद भी वो अपनी इनिंग्स पूरी करके घर गए और पिता की अंतिम क्रियायें पूरी करके टीम के साथ वापस जुड़ गए।

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रविंद्र जडेजा
सर जडेजा के नाम से मशहूर अब एक ऑलराउंडर बन चुके क्रिकेटर रवींद्र जडेजा के लिए भी जिंदगी फूलों का बिछौना नहीं रही है। उनके पिता एक शिपिंग कंपनी के कांप्लेक्स में सिक्योरिटी गार्ड थे और वो आर्थिक परेशानियों से जूझते हुए इस मुकाम पर पहुंचे हैं। उस पर भी महज 17 साल की उम्र में जडेजा ने अपनी मां को खो दिया था।

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उमेश यादव
विदर्भ की ओर से खेलते हुए भारतीय क्रिकेट टीम में शामिल होने वाले उमेश यादव पहले क्रिकेटर हैं। उमेश के पिता एक कोयला खान मजदूर थे और उनका बचपन नागपुर के कोयला मजदूरों के गांव में बीता है। 2007 से पहले उमेश टेनिस बॉल क्रिकेट ही खेला करते थे। भारतीय टीम के स्थायी सदस्य बनने से पहले उमेश ने पुलिस की नौकरी के लिए भी आवेदन किया था।
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वीरेंद्र सहवाग
आज जिसे हम नजफगढ़ का सुल्तान या मुलतान का सुल्तान कहते हैं। जिनकी धमाकेदार पारियों पर उछल पड़ते थे उन वीरेंद्र सहवाग का सफर भी आसान नहीं था। ज्वाइंट फेमिली में रहने वाले एक अनाज व्यपारी के बेटे वीरू का बचपन सगे और चचेरे मिला कर छब्बीस भाई बहनों के बीच गुजरा है। क्रिकेट के शौक के चलते वो अपने कॉलेज से प्रतिदिन 42 किलोमीटर बस से सफर करके क्रिकेट ग्राउंड प्रैक्टिस और मैच खेलने के लिए पहुंचते थे। वीरु के चुटीले कमेंट और उनका स्कूल सहवाग इंटरनेशनल स्कूल शायद उन्हीं बचपन की यादों से इंस्पायर है।
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भुवनेश्वर कुमार
उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास एक गांव के रहने वाले वाले हैं तेज गेंदबाज भुवनेश्वर कुमार। सब इंस्पेक्टर पिता के बेटे भुवी के पास आर्थिक समस्याओं के चलते क्रिकेट क्लब में शामिल होना आसान नहीं था। एक वक्त में उनके पास खेलने के लिए ढंग के स्पोर्टस शूज भी नहीं हुआ करते थे। वो इस मुकाम तक ना पहुंच पाते अगर उनकी बहन ने उनकी मदद ना की होती। उनको पहचान 2008 और 2009 के दौरान रणजी ट्रॉफी के लिए खेले गए एक मैच से मिली जब उन्होंने सचिन तेंदुलकर को शून्य पर आउट किया और मैन ऑफ द मैच का खिताब जीता।
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इरफान और यूसुफ पठान
अहमदाबाद की एक मस्जिद में मुअज्जिन पिता के ये दो बेटे गरीबी से लड़ कर आज अंतराष्ट्रीय शोहरत की मंजिल पर पहुंचे हें। उनके पिता इन दोनों को इस्लाम का स्कॉलर बनाना चाहते थे। मस्जिद में आने वाले कई लोग पठान भाइयों के क्रिकेट खेलने के खिलाफ ही नहीं थे बल्कि उनका मजाक भी बनाते थे अौर उनके मुअज्जिन पिता से उन्हें रोकने के लिए कहते थे।

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महेंद्र सिंह धोनी
फिल्म एम एस धोनी ए अनटोल्ड स्टोरी में कई लोग भारतीय टीम के सबसे कामयाब कप्तान के संघर्ष की कहानी से वाकिफ हो चुके हैं। एक मामुली नौकरी करने वाले धोनी के पिता पान सिंह उनके क्रिकेटर बनने के इरादे से कोई खास खुश नहीं थे।  कैप्टन कूल कहे जाने वाले माही ने कामयाबी से पहले ट्रेन टिकट एग्जामिनर यानि टीटी की नौकरी की है।

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