KANPUR: एक्टिंग में आने की कब सोची थी? 
मैंने एक्टिंग नहीं, फिल्म इंडस्ट्री में आने की सोची थी। उसकी वजह मेरे पिता हैं। हम दोनों ने उन्हें कभी नौ से पांच की नौकरी करते नहीं देखा था। हमारे लिए पिता का महीने के आधे दिन बाहर रहना या देर रात शूटिंग करते देखना आम बात थी। चार्टर एकाउंटेंट (सीए) की पढ़ाई के दौरान ही समझ में आ गया कि मैं नौकरी के लिए फिट नहीं हूं। मैंने 'माई फ्रेंड पिंटो' में बतौर असिस्टेंट काम किया था। वहां से एक्टिंग को लेकर आत्मविश्वास आया। मैंने कुछ समय थियेटर किया। फिल्म 'गुंडे' में अली अब्बास जफर को भी असिस्ट किया। 
आपका और विक्की का का करियर आसपास शुरू हुआ..? 
बिल्कुल। सफर तकरीबन साथ-साथ आरंभ हुआ। मैं जब 'माई फ्रेंड पिंटो' से जुड़ा तो विक्की 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' में असिस्ट करने लगे। उन्होंने मुझसे पहले 'मसान' की। हम दोनों आपस में फिल्म को लेकर चर्चा नहीं करते थे, किसी प्रकार की शंका होने पर पापा से बातचीत करते थे। अब मैं विक्की के साथ थोड़ा बहुत फिल्मों पर बात करता हूं। हम दोनों हम उम्र हैं। एक-दूसरे को बेहतर समझते हैं।
 'सनशाइन म्यूजिक टूर ऐंड ट्रैवल' से डेब्यू कितना सही फैसला लगता है?
उस फिल्म से पहले मैं काफी ऑडिशन और विज्ञापन वगैरह कर चुका था। 'सनशाइन..' का मैंने ऑडिशन दिया था। चयन होने पर उसकी कहानी मुझे पसंद आई थी। मुझे ब्रेक चाहिए था। उससे पहले मैंने कुछ ठोस नहीं किया था। मेरे पास खोने के लिए कुछ नहीं था। मुझे लगा मौका मिला है तो उसका सदुपयोग करो। खेल से कितना लगाव रहा है आपका?-खेल से मेरा बिल्कुल लगाव नहीं रहा। मेरा स्पो‌र्ट्स से 36 का आंकड़ा रहा है। विक्की को खेल पसंद है। मेरा झुकाव आर्ट और कल्चर की तरफ रहा है। '
गोल्ड' से कैसे जुड़ना हुआ? 
कास्टिंग डायरेक्टर नंदिनी श्रीकंद के ऑफिस से कॉल आया। उन्होंने ऑडिशन देने को कहा। तीन राउंड बाद मेरा चयन हुआ। उसके बाद हॉकी सीखना आरंभ हुआ। जमीनी हकीकत पता चली कि मेरी बॉडी एथलीट वाली नहीं है। लिहाजा खुद को मानसिक तौर पर तैयार किया। मेरा मानना है कि एथलीट की भूमिका निभाने के लिए फिजिकल से ज्याादा मानसिक तौर पर तैयार होना जरूरी था। एथलीट कभी हार नहीं मानते। उनमें जुनून होता है। मुझे लगा कि मैं रोल नहीं कर पाऊंगा। फिर खुद को मानसिक तौर पर तैयार किया और हॉकी सीखने में मजा आने लगा।
 'गोल्ड' की शूटिंग का पहला दिन कैसा रहा था? 
मेरे पहले शूट में मेरा और अमित साध का एक सीन था। मैंने भारत की जर्सी पहन रखी थी। तैयार होने पर खुद को पहचान नहीं पा रहा था। जोश और उमंग से लबरेज था। पता चला कि सीन में मुझे सिर्फ उदास होकर बैठना है। फिर खुद को शांत करना पड़ा। रीमा कातगी और अमित साध ने बहुत सपोर्ट किया। 
'गोल्ड' में अपने किरदार के बारे में बताएं? 
मेरे किरदार का नाम हिम्मत है। वह अमृतसर से है। मैं खुद भी पंजाबी हूं। लिहाजा किरदार आसानी से आत्मसात कर लिया। फिल्म में भी थोड़ा पंजाबी लहजा है। दरअसल, घर में भी हम आपस में पंजाबी में ही बात करते हैं।
स्मिता श्रीवास्तव 

मुंबई(ब्यूरो)। एक्टिंग में आने की कब सोची थी? 

मैंने एक्टिंग नहीं, फिल्म इंडस्ट्री में आने की सोची थी। उसकी वजह मेरे पिता हैं। हम दोनों ने उन्हें कभी नौ से पांच की नौकरी करते नहीं देखा था। हमारे लिए पिता का महीने के आधे दिन बाहर रहना या देर रात शूटिंग करते देखना आम बात थी। चार्टर एकाउंटेंट (सीए) की पढ़ाई के दौरान ही समझ में आ गया कि मैं नौकरी के लिए फिट नहीं हूं। मैंने 'माई फ्रेंड पिंटो' में बतौर असिस्टेंट काम किया था। वहां से एक्टिंग को लेकर आत्मविश्वास आया। मैंने कुछ समय थियेटर किया। फिल्म 'गुंडे' में अली अब्बास जफर को भी असिस्ट किया। 

आपका और विक्की का का करियर आसपास शुरू हुआ..? 

बिल्कुल। सफर तकरीबन साथ-साथ आरंभ हुआ। मैं जब 'माई फ्रेंड पिंटो' से जुड़ा तो विक्की 'गैंग्स ऑफ वासेपुर' में असिस्ट करने लगे। उन्होंने मुझसे पहले 'मसान' की। हम दोनों आपस में फिल्म को लेकर चर्चा नहीं करते थे, किसी प्रकार की शंका होने पर पापा से बातचीत करते थे। अब मैं विक्की के साथ थोड़ा बहुत फिल्मों पर बात करता हूं। हम दोनों हम उम्र हैं। एक-दूसरे को बेहतर समझते हैं।

 'सनशाइन म्यूजिक टूर ऐंड ट्रैवल' से डेब्यू कितना सही फैसला लगता है?

उस फिल्म से पहले मैं काफी ऑडिशन और विज्ञापन वगैरह कर चुका था। 'सनशाइन..' का मैंने ऑडिशन दिया था। चयन होने पर उसकी कहानी मुझे पसंद आई थी। मुझे ब्रेक चाहिए था। उससे पहले मैंने कुछ ठोस नहीं किया था। मेरे पास खोने के लिए कुछ नहीं था। मुझे लगा मौका मिला है तो उसका सदुपयोग करो। खेल से कितना लगाव रहा है आपका?-खेल से मेरा बिल्कुल लगाव नहीं रहा। मेरा स्पो‌र्ट्स से 36 का आंकड़ा रहा है। विक्की को खेल पसंद है। मेरा झुकाव आर्ट और कल्चर की तरफ रहा है। '

'गोल्ड' में इस किरदार में दिखेंगे विक्की कौशल के भाई सनी

'गोल्ड' से कैसे जुड़ना हुआ? 

कास्टिंग डायरेक्टर नंदिनी श्रीकंद के ऑफिस से कॉल आया। उन्होंने ऑडिशन देने को कहा। तीन राउंड बाद मेरा चयन हुआ। उसके बाद हॉकी सीखना आरंभ हुआ। जमीनी हकीकत पता चली कि मेरी बॉडी एथलीट वाली नहीं है। लिहाजा खुद को मानसिक तौर पर तैयार किया। मेरा मानना है कि एथलीट की भूमिका निभाने के लिए फिजिकल से ज्याादा मानसिक तौर पर तैयार होना जरूरी था। एथलीट कभी हार नहीं मानते। उनमें जुनून होता है। मुझे लगा कि मैं रोल नहीं कर पाऊंगा। फिर खुद को मानसिक तौर पर तैयार किया और हॉकी सीखने में मजा आने लगा।

 'गोल्ड' की शूटिंग का पहला दिन कैसा रहा था? 

मेरे पहले शूट में मेरा और अमित साध का एक सीन था। मैंने भारत की जर्सी पहन रखी थी। तैयार होने पर खुद को पहचान नहीं पा रहा था। जोश और उमंग से लबरेज था। पता चला कि सीन में मुझे सिर्फ उदास होकर बैठना है। फिर खुद को शांत करना पड़ा। रीमा कातगी और अमित साध ने बहुत सपोर्ट किया। 

'गोल्ड' में अपने किरदार के बारे में बताएं? 

मेरे किरदार का नाम हिम्मत है। वह अमृतसर से है। मैं खुद भी पंजाबी हूं। लिहाजा किरदार आसानी से आत्मसात कर लिया। फिल्म में भी थोड़ा पंजाबी लहजा है। दरअसल, घर में भी हम आपस में पंजाबी में ही बात करते हैं।

स्मिता श्रीवास्तव 

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