-नगर निगम सीमा विस्तार से पंचायतों पर दोहरी मार
- कागजी काम हो रहे हैं, पर विकास कार्यो के लिए बजट नहीं
देहरादून, सरकार ने नगर निगम का सीमा विस्तार कर पंचायतों के सामने दोहरी मुसीबत खड़ी कर दी है। एक ओर जहां प्रतिनिधियों के विरोध के बावजूद जबरन निगम में शामिल किया गया तो वहीं दूसरी ओर प्रधानों के अधिकार को सीज न करने से ग्राम पंचायत के प्रतिनिधियों को जनता का विरोध लगातार झेलना पड़ रहा है। लोग प्रतिनिधियों से पूछ रहे हैं कि जब सभी कागजी कार्रवाई की जा रही है, तो पेंडिंग पड़े विकास कार्य को करने में दिक्कत क्यूं आ रही है। ऐसे में प्रतिनिधियों के पास सरकार को कोसने के अलावा कोई चारा नहीं है।
बजट पर लगाई रोक
पंचायत प्रतिनिधियों के मुताबिक केन्द्र सरकार से पंचायत के विकास के लिए बजट आवंटित किया जा रहा है, लेकिन जिले से बजट को स्वीकृत नहीं होने दिया जा रहा, कई बार ग्राम पंचायत अधिकारी बजट स्वीकृत करने के लिए सरकार को लेटर जारी कर चुके हैं। बावजूद बजट को स्वीकृत नहीं किया जा रहा है।
पिछले साल हुआ था नोटिफिकेशन
सरकार की ओर से पिछले साल 22 सितंबर को 72 ग्राम पंचायतों को नगर निगम में शामिल करने का नोटिफिकेशन जारी किया गया था। जिसके बाद आपत्तियों का दौर भी चला। सुनवाई सही तरीके से नहीं हो पाया, हालांकि अभी पंचायतों का मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।
प्रधानों के अधिकार
- जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र बनाने का अधिकार
- पट्टा जारी करने का अधिकार
- राशन कार्ड बनाने का अधिकार
- पेंशनर फार्म पर दस्तखत करने का अधिकार
इन दिक्कतों से गुजर रहा
- केन्द्र से जारी होने वाले बजट पर रोक
- राज्य वित्त के बजट पर रोक
- स्टेशनरी के बजट पर रोक
- विकास कार्य ठप
- प्रधानों के मिलने वाले भत्ते पर रोक
क्या कहते प्रतिनिधि
केन्द्र से बजट आ रहा है, लेकिन जिले से वितरण नहीं किया जा रहा, जिससे विकास कार्य नहीं हो पा रहे हैं और नहीं पंचायत के रखरखाव कर पा रहे हैं। स्टेशनरी का खर्चा भी नहीं मिल रहा है। जिससे दिक्कते हो रही है।
घनश्याम पाल, प्रधान लाडपुर
बजट न मिलने से नालियों के पेंडिंग पड़े निर्माण कार्य ठप हैं। जनता पूछ रही है कि जब सभी दस्तावेजों पर प्रधान की मुहर लग रहे तो विकास कार्य न होने की वजह क्या है। ऐसे में जवाब देना मुश्किल हो रखा है।
सुलेमान अंसारी, प्रधान, मेहूवाला
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सड़कों पर गड्डे बनने हुए है, जिनके निर्माण के लिए बजट नहीं है। ऐसे में एक्सीडेंट का खतरा बना हुआ है। कई बार शासन को लिखित रूप से भी समस्या से अवगत कराया गया है, बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हो रही।
कुसुम वर्मा, प्रधान, भारूवालाग्रांट
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- लाइट की सबसे ज्यादा दिक्कत है। जो लाइट पहले खराब है, उनको रिप्लेश करने के लिए बजट नहीं है। सरकार ने पंचायतों का ऐसे विस्तार किया कि न तो इधर की रही न उधर की पूरे इलाके में अंधकार छाया हुआ है।
शबनम थापा , प्रधान, बालावाला