- जनसंख्या दवाब बढ़ने के साथ ही पीने के पानी की हो रही है किल्लत

- डेली बर्बाद हो जा रहा है सैकड़ों लीटर पानी

- वहीं गाडि़यों की लगातार तादाद बढ़ने से बढ़ रहा है पॉल्युशन का ग्राफ

GORAKHPUR: रहने को जमीन, सांस लेने का ताजी हवा, पीने का पानी अगर यह तीन चीजें मयस्सर हैं, तो फिर जिंदगी आराम से कट जाएगी। मगर हरे पेड़ों का अंधाधुन कटाव, क्रंक्रीट के जंगल का फैलाव, शहर की आबोहवा में रोजाना हजारों गाडि़यां और फैक्ट्रियों का फैलाया पॉल्युशन इंसान की इन तीन अहम जरूरतों के रास्ते का रोड़ा बन रहा है। सांस लेना तो मुश्किल हो ही रहा है, वहीं अब रहने और पीने के पानी की भी कमी होने लग गई है। लगातार बढ़ रहा पॉल्युशन का ग्राफ, पेड़ों की कटान से कम हो रही ऑक्सीजन और जनसंख्या दवाब की वजह से लोगों का जीना मुश्किल हो गया है। अगर यही हाल रहा, तो आने वाले दिनों में हमें एक-एक सांस लेने के साथ ही पानी की एक-एक घूंट की कीमत चुकानी पड़ेगी और हमारी जिंदगी की गाड़ी जो सरपट दौड़ रही है उसकी राह में दुश्वारियां ही दुश्वारियां होंगी।

2025 तक पानी के लिए जोरआजमाइश

पानी की किल्लत लगातार बढ़ती जा रही है। वॉटर अवेलबिल्टी के बेसिस पर नेशन तीन कैटेगरी में डिवाइड किए गए हैं। इसमें इंडिया अभी ग्रीन जोन में है। मगर वहीं सोर्स लिमिटेड होने की वजह से इसकी अवेलबिल्टी भी कम होती जा रही है। अगर यही हाल रहा तो 2025 में हम सेकेंड यानि कि सप्रेस्ड नेशन की कैटेगरी में आ जाएंगे, इससे यहां पानी के लिए टेंशन का सामना करना पड़ेगा। कुछ हिस्सों में इसकी शुरुआत भी हो चुकी है। वहीं रिसर्च में यह भी सामने आया है कि 2050 तक हम रेड जोन यानि स्केयर्स नेशन की कैटेगरी के करीब पहुंच जाएंगे और पानी के लिए लोगों को किल्लत का सामना करना पड़ेगा।

गोरखपुर है काफी सेंसटिव

ड्रिंकिंग वॉटर की बात की जाए, तो गोरखपुर इस मामले में काफी सेंसटिव है। यहां जो भी नदियां और जलाशय हैं, वह इतने पॉल्युटेड हैं, जिसकी वजह से उनका इस्तेमाल ड्रिंकिंग वॉटर के लिए नहीं किया जा सकता। यहां की पूरी आबादी ग्राउंड वॉटर पर ही निर्भर करती है, लेकिन प्रॉपर रीचार्ज न होने और लगातार ग्राउंड वॉटर का इस्तेमाल होने की वजह से यहां पानी की क्राइसिस लोगों को जल्द ही झेलनी पड़ेगी। इसकी वजह यह है कि गोरखपुर में 70 परसेंट डेवलपमेंट हो चुका है और यहां वॉटर रीचार्ज की कोई व्यवस्था भी नहीं की गई है, जिसकी वजह से वॉटर रीचार्ज में काफी प्रॉब्लम आ रही है और लगातार वॉटर लेवल गिरता ही जा रहा है।

प्योर वॉटर की जबरदस्त कमी

शहर में शुद्ध पानी की भीषण कमी है। जलकल विभाग के आंकड़ों पर नजर डाले तो एक आदमी को रोजाना 3.50 लीटर पानी की जरूरत पड़ती है। ऐसे में शहर की 13 लाख की आबादी को रोजाना 45.5 लाख लीटर प्योर वॉटर की जरूरत पड़ेगी, जबकि जलकल विभाग डेली 30 लाख लीटर पानी की सप्लाई कर रहा है। इस तरह शहर में डेली 15 लाख लीटर पानी की कमी हो रही है। इसकी पूर्ति लोग खरीदकर या अशुद्ध पानी से पूरा कर रहे हैं। जलकल विभाग का यह भी कहना है कि हम लोगों के 30 प्रतिशत पाइप लाइन 1990 के लगभग बिछाई गई है। जो अक्सर टूट जाती है। जिसके प्रति दिन 25 से 30 प्रतिशत पानी सड़कों और नालियों में बहकर बर्बाद हो जाता है।

कुछ जगह पीने लायक नहीं है पानी

गोरखपुर जिले की बात करें तो यहां का पानी पीने लायक भी नहीं है। आर्सेनिक फ्लोराइड की मात्रा लगातार बढ़ती जा रही है, जिससे पानी दूषित हो रहा है। एमएमएमयूटी के स्टूडेंट अंकित शर्मा ने जिले के सभी ब्लॉक्स से पानी के सैंपल लेकर वॉटर क्वालिटी जांच की तो इस दौरान 12.9 फीसद सैंपल में फ्लोराइड और 6.45 फीसद सैंपल में आरसेनिक की मात्रा अधिक पाई गई। वहीं टोटल सैंपल में 14.1 फीसद फ्लोराइड और 29.84 फीसद आरसेनिक मानक के बराबर पाए गए हैं। इससे साफ है कि करीब 25 फीसद सैंपल में फ्लोराइड और 35 फीसद सैंपल में आरसेनिक खतरे के निशान या उससे ऊपर है। यह पानी पीने लायक नहीं कहा जा सकता है।

कुछ इस तरह से गिरा वाटर लेवल

एरिया वाटर लेवल (2010) वाटर लेवल (अब)

रुस्तमपुर 40 80

रेती 30 100

सूरजकुंड 30 100

गोरखनाथ 35 120

राप्तीनगर 40 150

पादरी बाजार 45 60

बिछिया 25 25

मोहद्दीपुर 20 20

कूड़ाघाट 25 25

बक्शीपुर 30 40

पछले दस साल में लगातार गिरा है जल स्तर

वर्ष जल स्तर

बडे़ ट्यूबवेल मिनी ट्यूबवेल इंडियामार्का हैंडपंप

2007 400 फीट 350 फीट 110 फीट

2008 400 फीट 360 फीट 110 फीट

2009 410 फीट 370 फीट 110 फीट

2010 420 फीट 380 फीट 110 फीट

2011 450 फीट 380 फीट 110 फीट

2012 480 फीट 380 फीट 110 फीट

2013 500 फीट 390 फीट 110 फीट

2014 550 फीट 400 फीट 110 फीट

2015 600 फीट 450 फीट 110 फीट

2016 620 फीट 480 फीट 110 फीट

नोट- यह आंकड़ें शहर में पानी सप्लाई व्यवस्था को देखने वाली संस्था जलकल की है। 2017 में अभी तक एक भी ट्यूबवेल लगे तो नहीं है, लेकिन जिन ट्यूबवेलों की स्वीकृत मिली है, उनका लेवल 650 फीट से अधिक का है।

स्टैटिक्स -

इयर पॉप्युलेशन ग्रोथ परसेंट

2011 - 4,440895 17.81

2001 - 3769456 22.94

पाप्युलेशन शेयर व‌र्ल्ड - 16 परसेंट

वॉटर्स सोर्स शेयर व‌र्ल्ड - 4 परसेंट

वॉटर नीड पर कैपिटा - 135 लीटर (अर्बन)

वॉटर नीड पर कैपिटा - 70 लीटर (रूरल)

यहां बर्बाद हो रहा है पानी -

- ब्रशिंग

- शेविंग

- टॉयलेट

- नहाने

- कपड़े धोने

- गार्डनिंग

- लीकेज

- आरओ

- धुलाई

ऐसे भी हो सकता है बचाव

- वॉटर की वेस्टेज को कम करने के लिए अवेयरनेस प्रोग्राम चलाए जाएं

- घर-घर जाकर, नुक्कड़ नाटक, एड, पोस्टर और बैनर के थ्रू पानी के वेस्टेज को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

- पानी को री-साइकिल कर इसके वेस्टेज को और कम किया जा सकता है।

- प्लांटेशन से भी ग्राउंड वॉटर रीचार्ज करने में मदद मिलती है।

- रीसाइकिल पानी का इस्तेमाल गार्डन में पौधों को पानी देने के लिए इसका यूज कर सकते हैं। ग्रे वॉटर, जिसमें टॉयलेट वॉटर नहीं आता, उनको दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है। टॉयलेट वॉटर में ऑर्गेनिक पॉल्युशन होता है, इसलिए इसको रीसाइकिल कर यूज नहीं किया जा सकता।

- घर में पानी के लिए जगह-जगह टैप और फिटिंग्स लगी रहती हैं। इनसे पहले काफी पानी वेस्ट होता था, लेकिन इन दिनों कंपनीज ने इनकी डिजाइन काफी चेंज कर दी है, जिससे कि 25 परसेंट तक पानी के वेस्टेज को कम किया जा सकता है।

- पानी वेस्टेज का एक बड़ा रीजन लीकेज भी होता है। अगर एक सेकेंड में एक ड्रॉप भी वेस्ट हो रही है, तो 2700 गैलन वॉटर पर इयर वेस्ट हो रहा है। टैप के वॉशर को रिपेयर कराकर इसे बचाया जा सकता है।

- खेतों की मेढ़ को ऊंचा करके रेन वॉटर हार्वेस्टिंग की जा सकती है।

बॉक्स -

75 फीसद के पास पक्का मकान

गोरखपुर जिले की बात की जाए, तो यहां की करीब 75 फीसद आबादी पक्के मकान में रहती है। इनके मकान की छत और दीवारें में सिमेंट, ईट जैसे पक्के मैटेरियल्स का इस्तेमाल किया गया है। वहीं करीब 11 फीसद लोग ऐसे हैं, जिनके घर सेमी परमनेंट हैं, वहीं 10 फीसद ऐसी आबादी है, जो कच्चे मकान में रहने के लिए मजबूर है। पक्के मकान में भी कई भी कई कैटेगरी बांटी गई है, इसमें मकान मालिक, किराएदार के साथ ही दूसरे ऑप्शन भी हैं। इसमें पांच सब कैटेगरी है, जिसके तहत हॉल के साथ ही सिंगल रूम और थ्री रूम से ज्यादा के घर शामिल किए गए हैं।

गोरखपुर में किसके पास कैसे मकान

तहसील परमनेंट सेमी परमनेंट टेंप्रेरी

कैंपियरगंज 73.64 9.81 13.53

सहजनवा 76.77 9.24 8.29

गोरखपुर 81.13 8.11 5.83

चौरीचौरा 74.88 10.35 11.57

बांसगांव 71.35 13.53 11.96

खजनी 69.48 13.17 14.98

गोला 67.54 12.78 16.2

टोटल 75.46 10.29 10.27

नोट - डाटा परसेंटेज में है।

गाडि़यों से बढ़ रहा है पॉल्युशन का ग्राफ

गोरखपुर में गाडि़यां भी पॉल्युशन का ग्राफ बढ़ाने में काफी आगे हैं। गोरखपुर में 4.98 लाख दोपहिया, 2.87 लाख कार और बड़े वाहन रजिस्टर्ड हैं। हर साल करीब 60 हजार गाडि़यों मार्केट से सेल हो रही हैं। इनमें 75 फीसदी गाडि़यां शहरी इलाके में हैं। इससे शहरी एरिया में पॉल्युशन काफी तेजी से बढ़ रहा है। वहीं गाडि़यों की तादाद बढ़ने से दूसरी तरह की प्रॉब्लम भी सामने आने लगी हैं। इसमें एक सबसे बड़ी समस्या है पार्किंग। जीडीए ने कालोनी और मार्केट बसाते वक्त भी पार्किंग का इंतजाम नहीं किया। अब फ्लैट कल्चर को शहर में बढ़ावा मिला तो यहां पार्किंग की समस्या और विकराल होने लगी है। कॉलोनियों से लेकर बाजारों तक में लोग सड़कों पर ही गाडि़यां खड़ा करने को मजबूर हैं, जिसकी वजह से लोगों को घंटों जाम से भी जूझना पड़ जाता है।

गाडि़यां फैलाती हैं 68 परसेंट पॉल्युशन

शहर की जनसंख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इसकी वजह से पॉल्युशन का ग्राफ दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है। शहर की आबोहवा में फैले पॉल्युशन की बात करें तो टोटल एयर पॉल्युशन का 68 फीसद हिस्सा सिर्फ गाडि़यों से निकलने वाले धुएं का होता है। इससे सबसे ज्यादा एयर क्वालिटी प्रभावित होती है, जो दमा और अस्थमा वाले मरीजों के लिए काफी खतरनाक और जानलेवा है। वहीं दूसरे तरह के पॉल्युशन भी होते हैं, जिनमें प्लास्टिक या वेस्ट जलाने, फायर व‌र्क्स भी शामिल हैं। यूं तो सिटी में हर वक्त नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड और सल्फर डाईऑक्साइड लोगों को परेशान कर रही है। मगर पॉल्युशन विभाग के जिम्मेदारों की मानें तो इनका सबसे ज्यादा प्रकोप शाम में छह बजे से लेकर रात के 10 बजे के बीच होता है। इन दोनों गैसेज का सबसे कम कॉन्संट्रेशन लेवल रात में दो बजे से सुबह छह बजे के बीच होता है, जब लोग गहरी नींद में सो रहे होते हैं।

जनवरी 2018

कैटेगरी - एक्यूआई

आवासीय 117

कॉमर्शियल 177

इंडस्ट्रियल 192

फरवरी 2018

कैटेगरी - एक्यूआई

आवासीय 117

कॉमर्शियल 181

इंडस्ट्रियल 193

मार्च 2018

कैटेगरी - एक्यूआई

आवासीय

कॉमर्शियल

इंडस्ट्रियल

पैरामीटर्स एंड इफेक्ट्स -

0-50 - मिनिमम इंपैक्ट

51-100 - सेंसिटिव लोगों को सांस लेने में थोड़ा प्रॉब्लम

101-200 - लंग, हर्ट पेशेंट के साथ बच्चों और बुजुर्गो को सांस लेने में दिक्कत

201-300 - लंबे समय तक संपर्क में रहने वालों को सांस लेने में प्रॉब्लम

301-400 - लंबे समय तक संपर्क में रहने वालों को सांस की बीमारी

401 या ऊपर - हेल्दी लोगों को भी सांस लेने में दिक्कत, रेस्पिरेटरी इफेक्ट

गोरखपुर की पॉप्युलेशन लगातार बढ़ रही है। वॉटर सोर्स जो मौजूद हैं, वह इस लायक नहीं है कि इसका इस्तेमाल पीने के लिए किया जा सके। यहां के लोग पूरी तरह से ग्राउंड वॉटर पर डिपेंड हैं, लेकिन क्रॉन्क्रीट के जंगल और लगातार हो रहे डेलवपमेंट की वजह से वॉटर रीचार्ज नहीं हो पाता। वहीं वॉटर रीचार्ज के लिए लोग अपने घरों में व्यवस्था नहीं करते हैं, इसकी वजह से पानी की किल्लत हो जा रही है। वहीं गाडि़यों की तादाद लगातार बढ़ने और पेड़ों की कटान होने से एयर पॉल्युशन भी लगातार बढ़ रहा है।

- डॉ। गोविंद पांडेय, एनवॉयर्नमेंटलिस्ट