हर सच्चा जिज्ञासु क्रोध से छुटकारा पाकर पूर्ण होना चाहता है, परंतु प्राय: वह अपनी भावनाओं के आवेश में बह जाता है। जब क्रोध आए तो आप क्या कर सकते हैं? आप अपने आपको सौ बार याद दिला सकते हैं कि आपको क्रोध नहीं करना चाहिए। पर जब क्रोध आता है तो आप उस पर काबू नहीं कर पाते हैं। क्रोध एक आंधी की तरह आता है। क्रोध आपके सच्चे स्वभाव की विकृति है, जो आपकी प्रदीप्तिमान चेतना की आभा को धूमिल कर देता हैं।

मनुष्य की चेतना या मन की संरचना एक परमाणु की तरह ही है। जिस प्रकार धनात्मक आवेशित प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन परमाणु के केंद्र में होते हैं और ऋणात्मक आवेशित कण सिर्फ परिधि पर रहते हैं, उसी तरह मनुष्य की चेतना, मन एवं जीवन में भी सभी नकारात्मकता और व्यसन सिर्फ बाहरी परिधि पर ही हैं। क्रोध का प्रदर्शन करना गलत नहीं है, परंतु अपने क्रोध के प्रति सजग नहीं होने से आपको ही नुकसान पहुंचता है।

क्रोध के समय आप पर क्या बीतती है?

क्रोध क्या है? इस पर काबू कैसे पाएं? जानते हैं श्री श्री रविशंकर से

जब आप क्रोधित होते हैं, तब आप पर क्या बीतती है? आप पूरी तरह से हिल जाते हैं। क्रोधित होने के परिणामों को देखिए। क्या आप कभी क्रोध में लिए गए फैसलों से अथवा क्रोध में कहे शब्दों से खुश रहे हैं? नहीं, क्योंकि आप अपनी संपूर्ण सजगता खो देते हैं। क्रोध उन घटनाओं पर होता है, जो पहले ही बीत चुकी हैं। क्या उन बातों पर क्रोध करना उचित है, जिनको आप बदल नहीं सकते?

मन हमेशा भूतकाल एवं भविष्य के बीच में डोलता रहता है। जब मन भूतकाल में होता है, तब वह किसी पूर्व घटना को लेकर क्रोधित होता है, परंतु क्रोध व्यर्थ है क्योंकि हम अतीत को बदल नहीं सकते और मन जब भविष्य में होता है तो वह ऐसी बातों के प्रति चिंतित रहता है जो हो या न हो। मन जब वर्तमान में होता है, तब चिंता एवं क्रोध निरर्थक लगते हैं। साधना से मन केंद्रित हो जाता है। यहीं पर आत्मज्ञान, अपने मन व चेतना के स्वभाव का ज्ञान, और हमारी प्रकृति में विकृति आने के मूल कारण का ज्ञान सहायक होता है।

प्राणायाम से करें मन को शांत

क्रोध क्या है? इस पर काबू कैसे पाएं? जानते हैं श्री श्री रविशंकर से

कुछ श्वास की प्रक्रिया, प्राणायाम एवं ध्यान मन को शांत करने के लिए अत्यंत प्रभावशाली हैं। श्वास के बारे में जानना बहुत आवश्यक है। मन की हर लय के अनुसार, एक विशेष श्वास की लय होती है और श्वास की हर लय के अनुसार एक विशेष भावना पैदा होती है। तो, जब आप अपने मन पर सीधे नियंत्रण नहीं कर पाते, तब श्वास के द्वारा मन को बेहतर तरीके से नियंत्रित कर सकते हैं। यह हर क्षण को स्वीकार करते हुए हर क्षण को संपूर्ण गहराई से जीना है।

श्री श्री रविशंकर जी

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