पड़ोस से जोर-जोर से चीखने-चिल्लाने की आवाज आ रही थी. आवाज जिसे सुनकर हम और आप आमतौर पर खामोश रह जाते हैं. एक पति अपनी पत्नी की बेरहमी से पिटाई किए जा रहा था. उसे रोकने वाला कोई नहीं था. चीखने-चिल्लाने की आवाज घर का कामकाज निपटा रही संपत के कानों में भी पड़ी. उससे रहा न गया उसने पड़ोसी के घर पहुंचकर अपनी पत्नी को पीट रहे पति को रोकने की कोशिश की. जब वह नहीं रूका तो उसने उस पर हाथ छोड़ दिया. अगले दिन फिर किस्सा दोहराया गया और संपत ने एक बार फिर पड़ोसी की पिटाई कर दी. अब संपत पाल और समाज आमने-सामने थे...

इस वाकये के बाद संपत को अपने परिवार के साथ गांव छोडऩा पड़ा. दूसरी जगह पहुंचकर गुजारे के लिए संपत ने चाय की दुकान खोली. यहां भी दबंगों और पुलिस ने उसे परेशान करना शुरू कर दिया. एक दिन उसने पुलिस के दरोगा की लाठियों से पिटाई कर दी. 12 बरस की उम्र में ब्याह दी गई संपत को इस बात का अहसास हो गया था कि अगर सिर उठाकर जीना है तो उत्पीडऩ की शिकार महिलाओं को साथ लाना होगा. 2006 में पांच महिलाओं के साथ गुलाबी गैंग की शुरुआत हुई. पुरुष प्रधान समाज के ढांचे को चुनौती देने वाली संपत ने एक ऐसा रंग चुना था जिसे आमतौर पर बेहद सौम्य माना जाता है. वह कहती हैं, ‘महिलाओं का स्वभाव गुलाब की तरह हैं लेकिन अगर कोई उनका उत्पीडऩ करेगा तो उसे कांटे भी चुभेंगे.

दबंगई के खिलाफ आवाज

देश के सबसे पिछड़े 200 जिलों में से एक बांदा में अब संपत और उनका गुलाबी गैंग जाना-पहचाना नाम है. सिर्फ महिला उत्पीडऩ ही नहीं भ्रष्टाचार के खिलाफ भी संपत और उनके साथियों ने जंग छेड़ रखी है. संपत पुराने दिनों को याद कर कहती हैं, ‘बचपन से ही महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचार देखती थी. मुझे बहुत खराब लगता लेकिन मैं कुछ नहीं कर सकती थी. मेरी आंखों में आंसू आ जाते जब दिन भर कड़ी मेहनत के बाद भी रात में उनके पति उन्हें पीटते. उन्हें कोई आजादी नहीं मिलती. मैं बदौसा अर्तरा बांदा में चाय की दुकान चलाती थी. थाने-चौकी से आने वाले दरोगा सिपाही से लेकर दबंग लोग मुझे परेशान करते. एक दिन गुस्से में आकर मैंने वहां के दरोगा को लाठियों से पीटा. इसके बाद मेरे परिवार के ऊपर कई मुकदमे लगाए गए. मैंने हार नहीं मानी, मैंने अपने साथ पांच महिलाओं को जोड़ा और गुलाबी गैंग बनाकर अन्याय के खिलाफ आवाज उठाई.

कुछ तो बदल रहा है

जिस गांव से कभी संपत को जाना पड़ा था आज उनका बेटा बीएससी करने के बाद उसी गांव का प्रधान है. घर में पति की मार खाकर चुप रह जाने वाली महिलाओं को संपत के रूप में आवाज मिल गई है. रेप की शिकार लड़कियां गुनहगारों को जेल की सलाखों के पीछे भेजने के लिए सामने आने लगी हैं. बदलाव की कहानी लिखी जा रही है. ब्रिटिश डाक्यूमेंट्री मेकर किम ने पिछले साल पिंक सारीजनाम से गुलाबी गैंग पर फिल्म बनाई है. एक किताब संपत पाल, गैंग लीडर इन ए पिंक साड़ीभी आ चुकी है. अब संपत महिला अधिकारों के लिए लडऩे के अलावा एक स्कूल चला रही हैं जिसकी ड्रेस भी गुलाबी है.