कोई राह में थम न जाए, बस चले चलो

राहों में आने वाली तमाम अड़चनों को पार कर आधी आबादी हर दिन सफलता की नई इबारत लिख रही है। इसके साथ ही समाज के कमजोर तबके को भी उडऩे के लिए नया आसमां दे रही है। इंटरनेशनल वीमेंस डे पर सिटी की कुछ ऐसी चुनिंदा महिलाओं से हम आपको मिलवाने जा रहे हैं, जो समाज के लिए नई मिसाल खड़ी कर रही हैं। इस डेडीकेशन को हम सैल्यूट करते हैं। खास रिपोर्ट।

सेवा से ही लाइफ में सुकून

55 साल की उम्र में लोग सुकून से घर में रहना प्रिफर करते हैं पर अजरा आलम की कहानी कुछ और ही है। जब तक वह मरीजों का दुख-दर्द शेयर नहीं कर लेतीं, उन्हें चैन ही नहीं मिलता। सिटी के जसोली मोहल्ले में रहने वाली अजरा आलम लास्ट थ्री ईयर्स से हॉस्पिटल में मरीजों की मदद में जुटी हैं। अजरा बताती हैंकि कई बार वह पेशेंट्स से बात कर उनकी परेशानी दूर करने की कोशिश करती हैं। यही नहीं जब कोई बीमार होता है तो उसके घर जाकर भी दवा देती हैं। अजरा जब से हॉस्पिटल से जुड़ी हैं, उसके बाद से बहुत खुश हैं। शायद अपनी जिंदगी में सबसे ज्यादा खुश। घर में रहकर उन्हें नींद न आना, भूख न लगने की बीमारियां हो गईं थीं। पर जब से यहां आना शुरू किया, सब बीमारियां खुद उनसे भागने लगीं। अजरा हमेशा ही सोशल सर्विस से जुड़ी रही हैं। कभी मोहल्ले की लड़कि यों को पढ़ाना तो कभी बीमार की सेवा करना। उनके दिल में बसा सेवा भाव ही उन्हें हॉस्पिटल तक खींच लाया।

इस खुशी का कोई मोल नहीं

बीटेक स्टूडेंट का ख्याल आते ही हाथों में गैजेट्स, फैशनेबल ड्रेसिंग, पार्टीज की मस्ती जेहन में उभरती है लेकिन नेहा कपिल की कहानी इससे अलग है। नेहा अपनी स्टडीज के साथ देश का भविष्य भी संवार रही हैं। नेहा आरयू में बीटेक फाइनल ईयर की स्टूडेंट हैं.  बीटेक ज्वॉइन करने के बाद से ही प्राइमरी और जूनियर स्कूल्स के स्टूडेंट्स को पढ़ा भी रही हैं। इस समय उनके पास तकरीबन 15 स्टूडेंट्स पढ़ रहे हैं। नेहा ने बीटेक करने से पहले ऐसा कु छ सोचा नहीं था, पर जब उन्होंने आस-पास के स्टूडेंट्स को पढऩे की उम्र में भी पढ़ाई से दूर देखा तो उनके मन में इन्हें एजुकेट करने की इच्छा जगी और अब वह आगे भी ऐसी सोशल सर्विसेज से जुड़े रहना चाहती हैं। वह कहती हैं कि खुद के लिए तो सब कुछ करते हैं पर देश और समाज के लिए योगदान देने में जो उमंग होती है, वह बहुत खास है। उनका मानना है कि इन बच्चों क ो पढ़ाने से उनका कॉन्फिडेंस लेवल और ग्रेडिंग इंप्रूव हुई है।

ये तो हमारी जिम्मेदारी है

मैंने अपने पापा को जरूरतमंदों की मदद करते देखा था, तब मुझे इससे मिलने वाली संतुष्टि का अहसास नहीं था। लास्ट 12 ईयर्स से कुछ बच्चों को एडॉप्ट करके उनकी एजुकेशन की पूरी जिम्मेदारी उठाती हूं, तो मुझे अच्छा लगता है। यह कहना है आरयू के आईईटी के ईसी डिपार्टमेंट की असिस्टेंट प्रोफेसर इंद्रप्रीत कौर का। इंद्रप्रीत बताती हैं कि पहले हसबैंड की हेल्प और बाद में जॉब में आई तो खुद की सैलरी से आस-पास रहने वाले गरीब तबके के बच्चों को अडॉप्ट करती हूं। इस समय इंद्रप्रीत 4 स्टूडेंट्स की पढ़ाई करवा रही हैं। वह बच्चों की स्कूल फीस, कोचिंग फीस के साथ पेरेंट्स-टीचर मीटिंग, सेल्फ स्टडीज पर भी पूरा ध्यान देती हैं। वह अपनी जॉब और भरा-पूरा परिवार भी संभालती हैं। इस भागदौड़ भरी जिंदगी में जहां लोगों के पास अपने लिए समय नहीं होता है, इंद्रप्रीत सोसायटी के लिए भी पूरा समय देती हैं। वह इसे समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी मानती हैं। इनका मानना है कि समाज तभी उन्नत होगा, जब सब विकास करेंगे। और फिर बच्चे तो हमारी आने वाली पीढ़ी हैं।

महिलाओं के जीवन में ‘जागृति’

रूरल बेल्ट में रहने वाली महिलाएं भी सेल्फ इंप्लॉयड हो सकें, इसके लिए जरूरी है कि उन्हें सही टे्रनिंग दी जाए। महिलाओं के उत्थान के लिए ‘जागृति’ से यह बीड़ा उठाया सीमा रस्तोगी ने। सीमा की मानें तो उन्हेंं इसकी प्रेरणा अपनी मदर से मिली। वह उनके साथ ही गांव में जाया करती थीं। शादी के बाद से उनके मन में यह चाहत दबी थी, जो बेटे के बड़े होने के बाद ‘जागृति’ के रूप में सामने आई। अपनी संस्था के माध्यम से वह वह रूरल एरियाज में फ्री ट्रेनिंग कैंप्स लगाती हैं। यहां महिलाओं को ट्रेनिंग देने के बाद वह उन्हें रॉ मैटीरियल से लेकर मार्केट तक पहुंच भी सुनिश्चित कराती हैं। रूरल एरिया की लेडीज को एजुकेट करने के साथ-साथ रोजगार भी दे रही हैं। इस समय उनके साथ जुड़ी महिलाओं की संख्या सैकड़ों में है। सीमा कहती हैं अभी तो शुरुआत है, आगे बहुत कुछ करना है। लंबा सफर तय करना है।

ताकि यहां भी हो एंपॉवरमेंट

नैनीताल से आईं नीतिका और लखनऊ की शिल्पी लास्ट 7 ईयर्स से बरेली में सोशल सर्विस कर रही हैं। नीतिका ने जहां दिल्ली, पंजाब, हरियाणा में वीमेन एंपॉवरमेंट का काम किया है, वहीं शिल्पी ने यूपी को ही कार्यक्षेत्र बनाया है। पर जब इस सोशल सर्विस के बीच उन्हें जानकारी मिली कि वेस्टर्न यूपी में वीमेन एंपॉवरमेंट के लिए काम करने वाली संस्थाओं की कमी है तो दोनों ने तुरंत इस ओर रुख किया और काम में जुट गईं। अब वह रूरल एरिया की तकरीबन 350 गल्र्स को एजुकेशन, हेल्थ और लीगल अवेयरनेस प्रोग्राम से जोड़ चुकी हैं। दलित एवं मुस्लिम महिला अधिकार कार्यक्रम के जरिए महिलाओं में कॉन्फिडेंस जगाया। अब तक  उनके प्रोजेक्ट्स से तकरीबन 100 गांव जुड़ चुके हैं। नीतिका और शिल्पी इसे सोसायटी के प्रति महज अपना फर्ज ही मानती हैं और जीजान से इस काम में लगी हुई हैं। वे चाहती हैं कि और महिलाएं भी इसके लिए आगे आएं।