कैसोवैरी चिड़िया को बचपन से ही बाकी चिड़ियों के बच्चे चिढ़ाते थे। कोई कहता, जब तू उड़ नहीं सकती तो चिड़िया किस काम की। तो कोई उसे ऊपर पेड़ की डाल पर बैठ कर चिढ़ाता कि जब देखो जानवरों की तरह नीचे चरती रहती हो, और ऐसा बोलकर सब के सब खूब हंसते! कैसोवैरी चिड़िया शुरू-शुरू में इन बातों का बुरा नहीं मानती थी, लेकिन किसी भी चीज की एक सीमा होती है।

बार-बार चिढ़ाये जाने से उसका दिल टूट गया! वह उदास बैठ गयी और आसमान की तरफ देखते हुए बोली, हे ईश्वर, तुमने मुझे चिड़िया क्यों बनाया और बनाया तो मुझे उड़ने की काबिलियत क्यों नहीं दी। देखो, सब मुझे कितना चिढ़ाते हैं। मैं इस जंगल को हमेशा के लिए छोड़ कर जा रही हूं। और ऐसा कहते हुए कैसोवैरी चिड़िया आगे बढ़ गयी।

अभी वो कुछ ही दूर गयी थी कि पीछे से एक भारी-भरकम आवाज आई- रुको कैसोवैरी! तुम कहां जा रही हो! कैसोवैरी ने आश्चर्य से पीछे मुड़ कर देखा, वहां खड़ा जामुन का पेड़ उससे कुछ कह रहा था। कृपया तुम यहां से मत जाओ! हमें तुम्हारी जरूरत है। पूरे जंगल में हम सबसे अधिक तुम्हारी वजह से ही फल-फूल पाते हैं। वो तुम ही हो

जो अपनी मजबूत चोंच से फलों को अन्दर तक खाती हो और हमारे बीजों को पूरे जंगल में बिखेरती हो। हो सकता है बाकी चिड़ियों के लिए तुम मायने ना रखती हो, लेकिन हम पेड़ों के लिए तुम से बढ़कर कोई दूसरी चिड़िया नहीं है। मत जाओ। तुम्हारी जगह कोई और नहीं ले सकता! पेड़ की बात सुन कर कैसोवैरी चिड़िया को जीवन में पहली बार एहसास हुआ कि वो इस धरती पर बेकार में मौजूद नहीं है, भगवान ने उसे एक बेहद जरूरी काम के लिए भेजा है।

कैसोवैरी चिडिय़ा बहुत खुश थी, वह खुशी—खुशी जंगल में वापस लौट गयी। कैसोवैरी चिड़िया की तरह ही कई बार हम इंसान भी औरों के गुणों को देखकर खुद को नकारात्मक विचारों में जकड़ लेते हैं। असल में हर इंसान खुद में खास है। बस उस खास को पहचानने की जरूरत है।

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